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नोटबंदी पर बोला सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई से 6 महीने तक विचार-विमर्श करने के बाद लिया गया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में केंद्र सरकार के 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच नोटबंदी को लेकर छह महीने तक विचार-विमर्श हुआ था।

नोटबंदी पर बोला सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई से 6 महीने तक विचार-विमर्श करने के बाद लिया गया फैसला
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नई दिल्ली, 2 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में केंद्र सरकार के 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच नोटबंदी को लेकर छह महीने तक विचार-विमर्श हुआ था। बता दें, केंद्र सरकार ने 2016 को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद कर दिया था। नोटबंदी के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस.ए. नजीर और जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया, लेकिन न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस फैसले पर असहमति जताई।

न्यायमूर्ति गवई ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी फैसले को इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वो सरकार ने लिया था। रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि नोटबंदी को लेकर आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच 6 महीने तक विचार-विमर्श हुआ।

नोटबंदी के दौरान उर्जित आर. पटेल आरबीआई के गवर्नर थे और उनसे पहले रघुराम राजन थे, जिनका कार्यकाल 4 सितंबर 2013 से 4 सितंबर 2016 तक था।

शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यह माना गया है कि आर्थिक नीति से संबंधित मामलों में दखल देने के मामले में बहुत संयम बरतना पड़ता है और अदालत अपने फैसले को विधायिका या कार्यपालिका के फैसले से बदल नहीं सकती है।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध थी और समानता की कसौटी पर खरी उतरती है और इस अधिसूचना को निर्णय लेने की प्रक्रिया के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है।

वहीं, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि धारा 26 (2) की जांच का मतलब नोटबंदी के गुण-दोषों पर चर्चा नहीं है और इसलिए यह इस अदालत द्वारा खींची गई 'लक्ष्मण रेखा' के भीतर है। मामले में विस्तृत निर्णय दिन में बाद में अपलोड किया जाएगा।

सुनवाई के दौरान, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों के वैध नोटों को वापस लेने का निर्णय परिवर्तनकारी आर्थिक नीति कदमों की सीरीज में महत्वपूर्ण कदमों में से एक था और यह निर्णय आरबीआई के साथ विचार-विमर्श के बाद लिया गया था।

वित्त मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा, कुल करेंसी वेल्यू के एक महत्वपूर्ण हिस्से के टेंडर एक सोचा-समझा निर्णय था। यह आरबीआई के साथ विचार-विमर्श और अग्रिम तैयारियों के बाद लिया गया था।

इसमें आगे कहा गया कि नकली पैसे, टेरर फाइनेंसिंग, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए विमुद्रीकरण भी एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था। 08.11.2016 को जारी अधिसूचना नकली नोटों के खतरे से लड़ने, बेहिसाब संपत्ति के भंडारण और विध्वंसक गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए एक बड़ा कदम था।


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