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प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्टर को लेकर दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि टीकाकरण अभियान के संबंध में मोदी की आलोचना करने वाले पोस्टरों को कथित रूप से चिपकाने के लिए दर्ज प्राथमिकी को किसी तीसरे पक्ष के इशारे पर रद्द नही किया जा सकता है

प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्टर को लेकर दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि टीकाकरण अभियान के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले पोस्टरों को कथित रूप से चिपकाने के लिए दर्ज प्राथमिकी को किसी तीसरे पक्ष के इशारे पर रद्द नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और एम. आर. शाह ने माना कि तीसरे भाग के इशारे पर प्राथमिकी रद्द करना आपराधिक कानून में एक बहुत ही गलत मिसाल कायम करेगा।

अदालत ने अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव, जो कि याचिकाकर्ता-इन-पर्सन थे, को याचिका वापस लेने के लिए कहा, क्योंकि अदालत इस पर विचार करने को तैयार नहीं थी।

हालांकि, इसके साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिका का खारिज होना वास्तव में पीड़ित व्यक्ति की ओर से प्राथमिकी को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाए जाने के आड़े नहीं आएगा।

पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपने जो मामले हमें दिए हैं, उनके विवरण के बारे में हम कैसे पता लगा सकते हैं। हम तीसरे पक्ष के कहने पर एफआईआर रद्द नहीं कर सकते। यह केवल कुछ विशेष मामलों में ही किया जा सकता है, जैसे याचिकाकर्ता अदालत नहीं जा सकता है या उसके माता-पिता यहां हैं, लेकिन किसी तीसरे पक्ष के कहने पर इसे रद्द नहीं किया जा।

मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद, यादव ने अपनी जनहित याचिका को वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे अदालत ने अनुमति दे दी।

शीर्ष अदालत ने 19 जुलाई को यादव से कथित तौर पर पोस्टर चिपकाने के आरोप में दर्ज मामलों और गिरफ्तार लोगों को रिकॉर्ड में लाने को कहा था।

दरअसल याचिकाकर्ता ने टीकाकरण नीति पर सवाल उठाते हुए पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया था कि लोगों से सरोकार वाली अभिव्यक्ति मौलिक अधिकार है और ऐसे में पोस्टर लगाने वाले लोगों के खिलाफ दर्ज केस अवैध है और तमाम केस रद्द होने चाहिए और आगे ऐसे मामले में केस दर्ज न करने का भी निर्देश जारी किया जाए।

इस मामले में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला दिया गया था और कहा गया था कि देश के हर नागरिक को विचार अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है और जो पब्लिक सरोकार से संबंधित मामले में विचार अभिव्यक्ति करता है, वह मौलिक अधिकार है।

यादव ने दलील दी थी कि इन पोस्टरों को चिपकाने के लिए अपने भाषण और अभिव्यक्ति का प्रयोग करने पर निर्दोष आम जनता की अवैध गिरफ्तारी के कारण अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इस पर पीठ ने कहा था कि वह केंद्र की टीकाकरण नीति की आलोचना करने वाले पोस्टर चिपकाने पर कोई व्यापक आदेश जारी नहीं कर सकती है।

याचिका में शीर्ष अदालत से इन पोस्टरों को कथित रूप से चिपकाने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।


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