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सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के लिए आयुष्मान भारत योजना को लेकर निजी अस्पतालों से सवाल किए

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सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के लिए आयुष्मान भारत योजना को लेकर निजी अस्पतालों से सवाल किए
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जानना चाहा है कि क्या देश के वे निजी अस्पताल, जिन्हें सरकार ने मुफ्त में जमीन दी है, वे आयुष्मान भारत योजना के लिए तय कीमत पर कोविड-19 मरीजों का इलाज करने के लिए तैयार हैं? प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक हलफनामे में निजी अस्पतालों को अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।

शीर्ष अदालत ने वकील सचिन जैन द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह प्रश्न सामने रखा। वकील सचिन जैन ने दलील दी कि निजी अस्पतालों को मुफ्त में जमीन दी गई है, जहां कोविड-19 मरीजों से भारी शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने 27 मई को जनहित याचिका पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह सभी निजी अस्पतालों से कोविड-19 के कुछ मरीजों का मुफ्त इलाज करने के लिए नहीं कह रहे हैं। उन्होंने कहा, धर्मार्थ अस्पताल ऐसा क्यों नहीं कर सकते, जिन्होंने सरकार से बहुत लाभ उठाया है (नि: शुल्क भूमि सहित), तो कुछ प्रतिशत काम मुफ्त होना चाहिए।

अस्पतालों के महासंघ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और अस्पतालों के संघ की ओर से मुकुल रोहतगी ने अदालत के इस सुझाव का विरोध किया और कहा कि यह आर्थिक रूप से टिकने वाला नहीं है।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि कोविड-19 महामारी के कारण अस्पताल पहले से ही एक बड़ी राजस्व हानि उठा रहे हैं क्योंकि कई अन्य रोगी अन्य बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल नहीं आ रहे हैं।

रोहतगी ने सर गंगा राम अस्पताल को एक समर्पित कोरोनावायरस अस्पताल में बदलने के दिल्ली सरकार के आदेश का हवाला दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह अस्पताल केवल कोविड-19 रोगियों का इलाज करेगा, जो इसके राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और कोई भी उपचार के लिए अस्पताल नहीं जाएगा। उन्होंने कहा, इससे अंतत: अस्पताल बंद हो जाएंगे।

साल्वे और रोहतगी दोनों ने कहा कि निजी अस्पतालों का राजस्व 60 से 70 प्रतिशत के बीच गिर गया है, क्योंकि लोग महामारी के दौरान अस्पताल आने से बच रहे हैं।

साल्वे ने कहा, लोग इलाज के लिए अस्पतालों में नहीं आ रहे हैं। लोगों के आने का ग्राफ नीचे चला गया है।

जैन ने दलील दी कि निजी अस्पतालों का समर्थन करने वाला सरकारी रवैया सही नहीं है। उन्होंने पीठ के समक्ष दलील दी कि केंद्र की आयुष्मान भारत योजना के तहत एक लाभार्थी से प्रति दिन 4000 रुपये लिए जाते हैं, जबकि निजी अस्पताल उस व्यक्ति के लिए 50,000 रुपये लेते हैं, जो इस योजना के तहत लाभार्थी नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को कहा कि अगर अदालत लागत के पहलू पर एक आदेश देती है तो लागत का निर्धारण कौन करेगा?

इस पर जैन ने दलील दी कि आयुष्मान भारत योजना में अस्पताल का लाभप्रदता पहलू शामिल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालत सामाजिक कल्याण पहलू पर विचार करते हुए एक मानक दर निर्धारित कर सकती है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि यह योजना समाज के सबसे निचले तबके के लिए बनाई गई है, खासकर उन लोगों के लिए, जो निजी स्वास्थ्य सेवाओं की उच्च लागत वहन नहीं कर सकते। मेहता ने कहा, योजना में शामिल लोग कूड़ा बीनने वाले, भिखारी आदि हैं।

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कहना सही नहीं है कि संकट की इस घड़ी के दौरान केंद्र निजी अस्पतालों के साथ है।

रोहतगी ने कहा कि निजी अस्पताल आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों का भी इलाज करते हैं और यह सुविधा उन लोगों तक नहीं बढ़ाई जा सकती है, जो लाभार्थी नहीं हैं।


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