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कॉलेजियम व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने उठाये सवाल

उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिए वर्षों से जारी कॉलेजियम व्यवस्था पर उच्चतम न्यायालय के ही दो न्यायाधीशों ने सवाल खड़े किये हैं

कॉलेजियम व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने उठाये सवाल
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नयी दिल्ली। उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिए वर्षों से जारी कॉलेजियम व्यवस्था पर उच्चतम न्यायालय के ही दो न्यायाधीशों ने सवाल खड़े किये हैं, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून और इससे संबंधित 99वें संविधान संशोधन को निरस्त करने के फैसले का विरोध करने वाले न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर ने इस बार कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सी एस कर्णन से संबंधित प्रकरण में एक बार फिर कॉलेजियम व्यवस्था की ओर अंगुली उठायी है, उनके साथ न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने भी इस व्यवस्था पर सवाल उठाया है।

न्यायमूर्ति कर्णन के खिलाफ अदालत की अवमानना मामले में सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई की थी, जिसने उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर रहते हुए छह माह जेल की सजा सुनायी थी।

यह फैसला सर्वसम्मति से सुनाया गया था, जिसका लिखित ब्यौरा करीब दो माह बाद कल जारी किया गया। इस ब्यौरे में कॉलेजियम प्रणाली पर फिर से विचार करने की बात उजागर हुई है। सात-सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे एस केहर के अलावा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष (अब सेवानिवृत्त) तथा न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ शामिल थे। इनमें से दो सदस्यों- न्यायमूर्ति चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति गोगोई ने मुख्य फैसले से अपनी सहमति जताने के बावजूद अलग से टिप्पणी की है।

दोनों न्यायाधीशों ने लिखा है कि न्यायमूर्ति कर्णन के मामले को देखते हुए उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर फिर से विचार किये जाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ही एकमात्र ऐसे न्यायाधीश हैं, जिन्होंने संविधान पीठ के अन्य सदस्यों से इतर एनजेएसी कानून को सही ठहराया था और कॉलेजियम व्यवस्था पर सवाल खड़े किये थे। इतना ही नहीं उन्होंने कॉलेजियम से खुद को अलग रखने के लिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर को सितम्बर 2016 में पत्र भी लिखा था।

न्यायमूर्ति कर्णन मामले में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति गोगोई ने लिखा है कि मौजूदा मामले से दो बातें उभरकर सामने आयी हैं, पहली- न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया की फिर से व्याख्या करने की जरूरत है और दूसरी- कदाचारी न्यायाधीशों को सुधारने के लिए महाभियोग के अलावा कोई और भी उपाय किये जाने की आवश्यकता है। फैसले के ब्यौरे में कहा गया है कि पूर्व न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ जो आपत्तिजनक बयान दिया उससे भारतीय न्यायिक प्रणाली का देश-विदेश में मजाक बना है।

मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में लिखा है कि न्यायमूर्ति कर्णन ने जो किया और चिट्ठी लिखकर जो गंभीर आरोप न्यायाधीशों के खिलाफ लगाये थे उससे न्यायिक प्रणाली का काफी अपमान हुआ, जिसकी वजह से यह मामला अदालत की अवमानना का बना। गत तीन जनवरी को न्यायमूर्ति कर्णन ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के 20 न्यायाधीशों की सूची भेजी थी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी जांच की मांग की थी।

न्यायालय ने इस पर संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति कर्णन को अवमानना का नोटिस जारी किया था। गत नौ मई को सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने न्यायमूर्ति कर्णन को अवमानना का दोषी मानते हुए छह महीने जेल की सजा सुनाई थी। जिसके बाद से वह फरार चल रहे थे। उन्हें पुलिस ने पिछले दिनों कोयम्बूटर से गिरफ्तार किया था। फिलहाल वह जेल में हैं।


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