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डीयू की गर्भवती छात्रा को राहत देने से सर्वोच्च न्यायालय का इनकार

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा को परीक्षा देने की अनुमति देने संबंधी याचिका पर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया

डीयू की गर्भवती छात्रा को राहत देने से सर्वोच्च न्यायालय का इनकार
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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा को परीक्षा देने की अनुमति देने संबंधी याचिका पर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। कानून की छात्रा गर्भवती होने की वजह से कई लेक्चर में उपस्थित नहीं हो पाई थी। सेमेस्टर चार में उसकी उपस्थिति कम होने के कारण विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी थी।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविल्कर, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने परीक्षा देने संबंधी उसकी याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता के एक पेपर की परीक्षा बुधवार को हुई।

पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता को दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष अपनी याचिका को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को द्वितीय वर्ष की छात्रा अंकिता मीणा को परीक्षा में शामिल होने के लिए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि इसके लिए पहले मामले की विस्तृत जानकारी के बारे में पता लगाने की जरूरत है।

मीणा के वकील आशीष विरमानी और हिंमाशु धुपर इस मामले में मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे और मामले की तत्काल सुनवाई करने की मांग की ताकि छात्रा परीक्षा में बैठ सके।

विश्वविद्यालय के वकील के न्यायालय के समक्ष पेश नहीं होने पर न्यायालय ने विश्वविद्यालय के वकील को पेश होने के लिए कहा।

पीठ ने कहा, "हम दूसरे पक्ष को सुने बिना कैसे कोई आदेश पारित कर सकते हैं? परीक्षा अपरान्ह दो बजे से है और ऐसे में बिना दूसरे पक्ष को सुने हम क्या कर सकते हैं।"

विश्वविद्यालय के वकील अदालत के समक्ष अपरान्ह एक बजे पेश हुए और छात्रा को परीक्षा में बैठने देने का विरोध किया।

विश्वविद्यालय की तरफ से पेश वकील मोहिंदर जे.एस. रूपल ने कहा कि फैकेल्टी ऑफ लॉ के विशिष्ट कानून और बार कौंसिल ऑफ इंडिया के नियम के मुताबिक न्यूनतम उपस्थिति 70 प्रतिशत अनिवार्य है।

इस बात की तरफ इशारा करते हुए कि याचिकाकर्ता ने मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन भी नहीं दिया था, अदालत ने कहा, "यह बहुत असंगत है। हम इस विचार से सहज नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय एक बजे कोई आदेश पारित करे और छात्रा 2 बजे परीक्षा में बैठ जाए। यह कठिन मामला है और कानून आपके पक्ष में नहीं है।"


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