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सुप्रीम कोर्ट ने मप्र लव जिहाद कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यम के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल ठाकरे से कहा, "मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से संपर्क करें

सुप्रीम कोर्ट ने मप्र लव जिहाद कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें धार्मिक रूपांतरण और अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने अध्यादेश की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर रोक लगाते हुए कहा कि वह इस मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के विचार को देखना चाहेगा।

न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यम के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल ठाकरे से कहा, "मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से संपर्क करें। हम हाईकोर्ट के विचार देखना चाहेंगे।"

पीठ ने कहा कि उसने पहले ही इसी तरह के मामलों को हाईकोर्ट में वापस भेज दिया था। दरअसल शीर्ष अदालत ने इससे पहले इसी मुद्दे को लेकर अन्य दलीलों पर भी सुनवाई करने से इनकार कर दिया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश की गई नवीनतम दलील के अनुसार, उत्तर प्रदेश द्वारा लव जिहाद के नाम पर बनाया गया इसी तरह का अध्यादेश (उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अध्यादेश 2020) व्यक्ति की निजता और पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को अंतर-धर्म विवाह के कारण होने वाले धर्मातरण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश को पक्षकार बनाने की एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को अनुमति दे दी थी।

इसके साथ ही अदालत ने मुस्लिम निकाय जमीयत उलमा-ए-हिंद को भी मामले में एक पक्षकार बनने की अनुमति दी थी।

मुस्लिम निकाय का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता एजाज मकबूल ने पीठ के समक्ष दलील दी कि देश के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुषों को इन कानूनों के तहत परेशान किया जा रहा है।

पिछले महीने शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विवादास्पद कानूनों की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसका उद्देश्य अंर्तजातीय विवाह के कारण धार्मिक रूपांतरण को विनियमित करना था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इन कानूनों को रोकने से इनकार कर दिया था और मामले में राज्य सरकारों से जवाब मांगा था।

अधिवक्ता विशाल ठाकरे, गैरसरकारी संगठन सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस और अन्य ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

विवादास्पद यूपी अध्यादेश न केवल अंतर-विवाह विवाहों से जुड़ा हुआ है, बल्कि सभी धार्मिक रूपांतरणों और ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं का पालन निर्धारित करता है, जो किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होने की इच्छा रखते हैं।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपने आवेदन में मुस्लिम युवाओं के मौलिक अधिकारों का मुद्दा उठाया है, जिन्हें कथित तौर पर अध्यादेश का इस्तेमाल करके निशाना बनाया जा रहा है।


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