Top
Begin typing your search above and press return to search.

सर्वोच्च न्यायालय ने बहुविवाह, निकाह और हलाला पर शीघ्र सुनवाई से किया इनकार

 सर्वोच्च न्यायालय ने आज मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह प्रथा और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर शीघ्र सुनवाई से इनकार कर दिया

सर्वोच्च न्यायालय ने बहुविवाह, निकाह और हलाला पर शीघ्र सुनवाई से किया इनकार
X

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने आज मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह प्रथा और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर शीघ्र सुनवाई से इनकार कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अपना जवाब दाखिल करने के बाद उचित अवधि (इन ड्यू कोर्स) में मामले की सुनवाई की जाएगी।

पीठ ने याचिकाकर्ता समीना बेगम से कहा, "सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ उचित अवधि (इन ड्यू कोर्स) में मामले की सुनवाई करेगी।" समीना बेगम ने मंगलवार को याचिका पर सुनवाई का आग्रह किया था और कहा था कि उसे याचिका वापस लेने के लिए धमकियों का सामना करना पड़ रहा है।

केंद्र सरकार ने याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय की मांग की थी, जिसे पीठ ने मंजूरी दे दी थी।

इससे पहले केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने कहा था कि हालांकि यह प्रथाएं मुस्लिम पसर्नल लॉ के तहत अमल में लाइ जा रही हैं लेकिन यह संविधान के तहत न्यायिक समीक्षा से मुक्त नहीं हैं।

समीना बेगम, नफीसा खान, मौअल्लियम मोहसिन और भाजपा नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बहुविवाह प्रथा, निकाह हलाला, निकाह मुता (शिया समुदाय में अस्थाई विवाह की प्रथा) और निकाह मिस्यार (सुन्नी समुदाय में कम अवधि के विवाह की प्रथा) को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और इन्हें संवधिान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन बताया है।

संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी, अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग, स्थान और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित और अनुच्छेद 21 जिंदगी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की गारंटी प्रदान करता है।

उपाध्याय ने अदालत से कहा कि अलग-अलग धार्मिक समुदायों को विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित किया जाता है। उन्होंने दलील दी कि व्यक्तिगत कानूनों को संवैधानिक वैधता और नैतिकता के मानदंडों को पूरा करना होगा क्योंकि वे संविधान के अनुच्छेद 14, 15,21 का उल्लंघन नहीं कर सकते।

मुस्लिम महिलाओं पर बहुविवाह प्रथा, निकाह हलाला और अन्य प्रथाओं के पड़ रहे 'भयावह प्रभाव' को चिन्हित करते हुए वरिष्ठ वकील मोहन पारासरन ने अदालत को बताया कि 2017 के फैसले ने तीन तलाक को असंवैधानिक जरूर करार दिया लेकिन इन दो मुद्दों को हल नहीं किया गया था।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it