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कूटनीति में ऐसी फ़ज़ीहत?

28 अक्टूबर 2019 को यूरोपीय संघ के 22 दक्षिणपंथी सांसदों को नई दिल्ली लाकर मोदी से मिलवाया गया

कूटनीति में ऐसी फ़ज़ीहत?
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- पुष्परंजन

28 अक्टूबर 2019 को यूरोपीय संघ के 22 दक्षिणपंथी सांसदों को नई दिल्ली लाकर मोदी से मिलवाया गया, फिर वो कश्मीर के हालात का जायज़ा लेने के वास्ते विशेष विमान से भेजे गये। क्या वो सब हमारे अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं था? यूरोप के सांसद आपके मन की बात कहें, तो सही। सवाल करें, तो आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप।

पहले अमेरिका में फ़ज़ीहत, फिर ब्रसेल्स और फ्रांस में। किसी शब्द विज्ञानी को शायद यह अटपटा लगे, किंतु हरियाणवी में इसे 'बेइज्ज़ती ख़राब करना' कहते हैं। फ्रांसीसी अखबार ल मोंदे की एक ख़बर की हेडलाइन थी, 'हाउ इंडियाज नरेंद्र मोदी बिकम अ की-येट कंट्रोवर्शियल-ग्लोबल पार्टनर' (कैसे भारत के नरेंद्र मोदी एक अहम-विवादास्पद-वैश्विक साझीदार बन गये)। उसी अखबार के ओप-एड पेज की हेडलाइन थी, नरेंद्र मोदी हैज फोस्टर्ड स्टेट-स्पांसर्ड वायलेंस फॉर डिकेड्स (नरेंद्र मोदी ने दशकों राज्य प्रायोजित हिंसा को बढ़ावा दिया)। बैस्टिल दिवस समारोह के लिए पधारे मुख्य अतिथि के लिए ऐसे शब्द?

4 लाख 80 हज़ार प्रसार संख्या वाले प्रसिद्ध अखबार ल मोंदे के बराबर लेस इकोस कहीं नहीं ठहरता, जो केवल 1 लाख 40 हज़ार छपता है। यूरोप के कई देशों में इस अखबार को कोई जानता तक नहीं, लेकिन भारत के भक्त चैनल इसे 'लीडिंग मीडिया समूह' की मुहर लगाकर मोदी के छपे इंटरव्यू का यशोगान कर रहे हैं। 'लेस इकोस' ने पीएम मोदी की तस्वीर पर उनके गढ़े वाक्य को हेडलाइन बनाया है-'ग्लोबल साउथ को लंबे समय से नकारा गया है।' ग्लोबल साउथ के देशों में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन, ओशिनिया (जिसमें न्यूज़ीलैंड व ऑस्ट्रेलिया शामिल नहीं हैं ) और इज़राइल, जापान व दक्षिण कोरिया छोड़कर शेष एशियाई देश आते हैं। पीएम मोदी इन देशों के स्वयंघोषित प्रतिनिधि बन बैठे हैं।

ल मोंदे अखबार की रिपोर्ट और ओप एड पेज में लिखे शब्द पिघले हुए शीशे की तरह हैं। एलिस मोगवे व पैट्रिक बोंदे के साझा आलेख में सवाल किया गया है कि बैस्टिल दिवस समारोह के लिए ऐसे व्यक्ति को गेस्ट ऑफ ऑनर के बतौर बुलाया गया है जिसका ह्युमन राइट्स रिकार्ड बदतर रहा है। लेखक द्वय ने सवाल किया है कि क्या हम इस सच को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं कि मोदी के नेतृत्व में भारत एक गंभीर संकट से गुज़र रहा है? 'इनके देश में एनजीओ, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। मैंक्रों और मोदी की मिलीभगत का परिणाम है कि इनकी कूटनीतिक टोली ने बैस्टिल दिवस समारोह के लिए यह सब कुछ तय कर लिया। 2002 के नरसंहार में मुख्यमंत्री रहते ये सीधे तौर पर शामिल थे, जिसमें दो हज़ार मौतें हुई थीं, उस वजह से इन्हें 'बूचर ऑफ गुजरात' कहा जाता है।'

'ल मोंदे' में ब्रूनो फि लीप की रिपोर्ट में गुजरात नरसंहार के हवाले से मोदी को मुख्य अतिथि बनाये जाने पर आपत्ति की गई है।फ्रांस का सोशल मीडिया भी गरमाया हुआ है। बैस्टिल दिवस समारोह चाक-चौबंद पुलिस व्यवस्था के बल पर आयोजित हो रहा है। इससे लगता नहीं कि फ्रांस में सब कुछ सहज और सामान्य है। लेकिन पीएम मोदी का आना, उस पूर्व नियोजित सौदे का हिस्सा है, जिसे बहुत पहले तय कर लिया गया था। मैक्रों के इस मुख्य अतिथि के विरूद्ध यूरोपीय संसद में जो पांच प्रस्ताव बैस्टिल समारोह के ठीक एक दिन पहले रखे गये, वो वास्तव में शर्मनाक हैं।

13 जुलाई, 2023 को रूल 144 (5) और 132 (4) के तहत रखे पांच प्रस्तावों को आरोप ही कहिए। यूरोपीय संसद में ध्वनित हुआ है कि मैतेई और कूकी समुदायों को लड़ाया गया। 3 मई 2023 से जारी हिंसा में 120 लोग मारे गये हैं, 50 हज़ार से अधिक उजड़ गये। 1700 घर, 250 चर्च, कई मंदिर, स्कूल नेस्तनाबूद किये जा चुके, और मोदी चुप रहे। एक बड़ा आरोप यह भी है कि अतिवादी समूहों को हिंदू बहुसंख्यकवाद की ओर से बढ़ावा मिल रहा है। इससे सामाजिक विषमता गहराने लगी है। तीसरा, सुरक्षाबलों के पक्षपातपूर्ण रवैये से अविश्वास का वातावरण बनता जा रहा है। सिविल सोसायटी व मीडिया के लोगों को सूचनाओं की तह तक जाने से रोका गया। पाचवां आरोप यह था कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने नागरिक समाज के लिए सिकुड़ते जा रहे स्पेस पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत सरकार से अनुरोध किया था कि वो लोगों के अधिकारों की रक्षा करें, लेकिन उसे अनसुना किया गया।

यूरोपीय संसद ने भारत सरकार से अनुरोघ किया है कि आप जातीय और धार्मिक हिंसा तत्काल रोकें, मणिपुर के ईसाइयों समेत सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। नेता भड़काऊ बयान न दें। सभी पक्ष संयम बरतें, आपसी भरोसे की बहाली हो। जो लोग शासन के आचरण के आलोचक हैं, उन्हें अपराधी नहीं बनाया जाए। सिविल सोसायटी के लोग, धर्मगुरू, यहां के राजनेता सौहार्द्र का वातावरण बनायें। जो हिंसा हुई है, उसकी स्वतंत्र जांच हो। इंटरनेट की सुविधा बहाल हो, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों व पत्रकारों को मणिपुर जाने दिया जाए। सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफ स्पा) निरस्त किये जाएं। ईयू-इंडिया मानवाधिकार संवाद सुदृढ़ हो। यूरोपीय संसद और भारतीय संसद नियमित रूप से विमर्श आरंभ करे।

यूरोपीय संसद में जो कुछ गुरूवार को हुआ, वह भारत सरकार के निकम्मेपन पर करारा कन्टाप है। इस प्रस्ताव का टाइमिंग काफी बेचैन करने वाला है।फ्रांस में हर साल 14 जुलाई को आयोजित होने वाले बैस्टिल दिवस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी मुख्य अतिथि थे। पैरिस से केवल 300 किलोमीटर की दूरी पर ब्रसेल्स है, जहां यूरोपीय संसद में निंदा प्रस्ताव पास होता है। वह भी उस देश के विरूद्ध, जो इस समय जी-20 का अध्यक्ष देश है, जिसे दो माह बाद शिखर बैठक का आयोजन दिल्ली के प्रगति मैदान में करना है। सोचिए, जी-20 का सदस्य यूरोपीय संघ मणिपुर के सवाल पर यदि शिखर बैठक का बहिष्कार कर दे, तो क्या होगा?

यह सब इसलिए भी हुआ है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में ढाई महीने से जारी हिंसा पर एक शब्द नहीं बोला है। मोदी भूल गये कि ब्रसेल्स से लेकर वैटिकन सिटी तक भारतीय ईसाई समुदाय की चिंता करने वाले लोग बैठे हुए हैं। मणिपुर पर मोदी की चुप्पी, एक पत्थरदिल प्रधान सेवक की पहचान बन चुकी है। मोदी की तरह राष्ट्रवाद मैक्रों की रगों में भी दौड़ता है। मैक्रों भी मुसलमानों को दबाने वाली कुटिल राजनीति करते हैं, और एक्सपोज होते हैं।

मंगलवार 27 जून 2023 को पैरिस के उपनगर नांतेरे में 17 साल के किशोर नाहेल को ट्रैफिक पुलिस ने जिस बर्बरता से गोली मारी थी, उसे सही ठहराते हुए राष्ट्रपति मैक्र्रों ने जो दो बयान दिये थे, उसने जनाक्रोश की आग में घी का काम किया था। 27 जून 2023 की इस घटना के अगले दिन राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रों दो बातें बोल गये। पहला, 'ट्रैफि क पुलिस ने जो किया, सही किया'। दूसरा, 'कुछ लोग किशोर नाहेल की मौत को आंदोलन का अस्त्र बना रहे हैं, इसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे'। मैक्रों के बयान पर पैरिस, लीले, ल्यों, मर्सिले, श्ट्राशबुर्ग, ग्रीनोबेल जैसे नगर हिंसा की चपेट में आ गये।

लेकिन संसद में गृहमंत्री जेराल्ड दरमेंदा ने जो विडियो फु टेज दिखाये, वो सबको हतप्रभ कर गया। दो ट्रैफिक पुलिस वाले 17 साल के किशोर नाहेल को यातायात उल्लंघन की वजह से निशाने पर ले चुके थे। एक पुलिस वाले ने कहा, 'मार इसको'। पिस्तौल ताने दूसरे ने कहा, ' इसकी खोपड़ी में दागता हूं गोली'। संसद में जिसने भी फुटेज देखा हतप्रभ रह गया। जो कुछ हुआ, गनीमत है कि संसद में उसकी लीपापोती नहीं हुई। 2023 की यह दूसरी घटना है, जब सड़क यातायात नियमों के उल्लंघन की वजह से गोली मारी गई। 2022 में ऐसी 138 घटनाएं दज़र् की गईं थीं, जिसमें 13 लोग मारे गये। यह वही देश है, जहां 'स्वतंत्रता-समानता और बंधुत्व' का संवैधानिक संकल्प लिया गया था। जिस दिन हिंसा की घटना हुई, मैक्रों ब्रसेल्स में ही थे। यूरोपीय संसद का सत्र छोड़कर मैक्रों फ्रांस लौट गये। 23 साल के बाद किसी फे्रंच राष्ट्रपति को जर्मनी जाना था, मैक्रों ने वहां जाना भी रद्द कर दिया।

मगर, यूरोपीय संघ भी कोई दूध का धुुला नहीं है। यूरोपीय नेताओं को पता है किफ्रांस में हिंसा की वजहें क्या रही हैं। 27 यूरोपीय देशों का समूह यदि फ्रांस में पश्चिमी अफ्र ीकी देशों के प्रवासियों को दबाने, ट्रैफिक पुलिस द्वारा साल दर साल हिंसक कृत्य करने, मानवाधिकार हनन की निंदा नहीं करते, तो ईयू की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा होता है। भारत में हिंसा हो तो उसकी खाट खड़ी कर दो, फ्रांस में हिंसा हो, तो चुप लगा जाओ। ये तो कंगारू कोर्ट वाला हाल हो गया।

यूरोपीय संघ के प्रस्ताव से भारत को शदीद मिर्ची लगी है। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने नई दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि भारत ने इस मुद्दे पर यूरोपीय संसद के सांसदों को इस मुद्दे को उठाने से रोकने की कोशिश की थी। भारत ने अपना दृष्टिकोण उनके सामने रखा था, बावजूद इसके वो ये मुद्दा उठा रहे हैं। यह पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। क्वात्रा ने एक मणिपुरी अखबार की उस ख़बर पर टिप्पणी से इनकार कर दिया जिसमें इसका ज़िक्र था कि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर लॉबीइंग के लिए ब्रसेल्स में एक कंपनी 'अल्बेर एंड जिजर' को हायर किया था। मतलब, भारत सरकार ने यूरोपीय संसद में प्रस्ताव रोकने के लिए अपने तमाम घोड़े खोल दिये थे। सारी तदबीरें जब उलटी हो गई, तब प्रतिक्रिया दी गई कि यूरोपीय संघ भारत के आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है।

अब सवाल यह है कि इसी यूरोपीय संघ के दूतों को कश्मीर क्यों ले गये थे? वो भी एक बार नहीं, कई बार। तब क्यों नहीं लगा कि आप उन्हें देश के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का दावत दे रहे हैं? 28 अक्टूबर, 2019 को 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ के 22 दक्षिणपंथी सांसदों को नई दिल्ली लाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलवाया गया, फिर वो कश्मीर के हालात का जायज़ा लेने के वास्ते विशेष विमान से भेजे गये। क्या वो सब हमारे अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं था? यूरोप का सांसद आपके मन की बात कहे, तो सही। सवाल करें, तो आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप।
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