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जुड़ने-जीतने को कटिबद्ध 'इंडिया' की सफल रैली

28 दलों के संयुक्त विपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' ने रविवार को नयी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में विशाल शक्ति प्रदर्शन करते हुए मोदी सरकार को साफ संकेत दे दिया कि 18वीं लोकसभा का चुनाव सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिये वैसा आसान नहीं होने जा रहा है

जुड़ने-जीतने को कटिबद्ध इंडिया की सफल रैली
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28 दलों के संयुक्त विपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' ने रविवार को नयी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में विशाल शक्ति प्रदर्शन करते हुए मोदी सरकार को साफ संकेत दे दिया कि 18वीं लोकसभा का चुनाव सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिये वैसा आसान नहीं होने जा रहा है जैसा कि वह और उसके राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन यानी एनडीए के घटक दल मानकर चल रहे हैं। कहने को तो यह मेगा रैली इंडिया के एक सहयोगी दल आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कथित शराब घोटाले के आरोप में गिरफ्तारी के खिलाफ आयोजित की गई थी, पर उसके अब कहीं अधिक व्यापक सन्दर्भ, परिप्रेक्ष्य तथा उद्देश्य बन गये हैं। इसके अनुरूप उसका प्रतिफल लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी नज़र आये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये। इस रैली से अगर भाजपा, विशेषकर तीसरे कार्यकाल की उम्मीद लगाये बैठे नरेन्द्र मोदी चिंतित होते हैं तो वह स्वाभाविक ही हैं।

उल्लेखनीय है कि ठीक दो माह पूर्व झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता व झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद केजरीवाल की गिरफ्तारी (21 मार्च) से सम्पूर्ण विपक्ष उद्वेलित हो उठा है। सोरेन ने जहां गिरफ्तार होने के पहले इस्तीफा दे दिया था, तो वहीं केजरीवाल पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें सीएम रहते गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने पद छोड़ने से इंकार कर दिया है और वे इस जिम्मेदारी को अब भी सम्भाले हुए हैं। विपक्षी नेताओं को बुरी तरह से कुचला जा रहा है- इस भावना को व्यक्त करने के लिये गठबन्धन ने यह रैली आयोजित की थी जिसमें सभी दलों ने शिरकत कर यह साबित किया कि गठबन्धन न केवल एकजुट है बल्कि इतना मजबूत हो चुका है कि इस चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देगा। यह भावना और संकल्प विभिन्न नेताओं के भाषणों से बार-बार तथा कई-कई स्वरूपों में व्यक्त हुआ।

स रैली ने भाजपा, उसके साथी दल तथा उसके द्वारा पोषित मीडिया द्वारा निर्मित इस मिथक को खंडित कर दिया कि यह गठबन्धन सत्ता पाने के लिये बना है। उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम के सभी राज्यों व क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे विभिन्न दलों के तमाम वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि वे सभी देश में लोकतंत्र को बचाने के उद्देश्य से एकत्र हुए हैं। कई नेताओं, यहां तक कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने स्वीकार किया कि गठबन्धन में शामिल कई दलों से उनकी सीटों के बंटवारे को लेकर परस्पर सहमति नहीं है और वे मिलकर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, परन्तु वे सभी लोकतंत्र एवं संविधान को बचाने की लड़ाई इकठ्ठे लड़ रहे हैं और इस मंच पर उपस्थित हैं। पंजाब में आप व कांग्रेस अलग-अलग लड़ रही हैं तो वहीं पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस से सीट शेयरिंग पर सहमति न बन सकने के बावजूद टीएमसी गठबन्धन का हिस्सा है और उसके प्रतिनिधियों ने रैली में भागीदारी की। वर्तमान लड़ाई की तुलना उन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन से की जिसमें सभी लोग आपसी मतभेद भूलकर शामिल थे।

मोदी व भाजपा के तानाशाहीपूर्ण ढंग से शासन चलाने के तरीके तथा विपक्षी दलों को कुचलने की कोशिशों को सभी नेताओं ने जनता के समक्ष रखते हुए देश में लोकतंत्र की बहाली तथा संविधान की रक्षा के महत्व को प्रतिपादित किया। 18 मार्च को मुम्बई के शिवाजी पार्क में आयोजित हुई कामयाब सभा के बाद इंडिया के जो हौसले बढ़े थे, वे इस रैली में नई बुलंदियों का स्पर्श करते दिखे। अपने दस वर्षीय कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने जिस निरंकुश तरीके से शासन चलाया, उसकी कटु व बेखौफ आलोचना सभी दलों ने की। इनमें से ज्यादातर वे दल हैं जिनके नेताओं को केन्द्रीय जांच एजेंसियों-ईडी, आयकर, सीबीआई आदि द्वारा परेशान किया जा रहा है। कई दलों के नेता सलाखों के पीछे हैं या फिर उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है। इसके अलावा इस चुनाव में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को किस प्रकार से आयकर की नोटिसों से परेशान किया जा रहा है, यह मसला उठाकर रैली ने मोदी सरकार, जांच एजेंसियों तथा केन्द्रीय निर्वाचन आयोग की जमकर बखिया उधेड़ी जो भाजपा की इस मनमानी की ओर से आंखें मूंदकर बैठा हुआ है। सभी को समान परिस्थितियां मुहैया कराने का दावा करने वाले चुनाव आयोग को विशेष रूप से निशाने पर लिया गया जो अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह करने में असफल रहा है। लोकतंत्र पर छाये संकट को उजागर करने में रैली बड़े पैमाने पर सफल रही जिसे लेकर कहा जा सकता है कि इसका संदेश दूर तलक जायेगा।

रैली में अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता तथा हेमंत सोरेन की पत्नी कविता की उपस्थिति ने भी बड़ा असर डाला। सुनीता केजरीवाल ने जेल से उनके पति द्वारा भेजे संदेश को पढ़कर सभी पर भावनात्मक असर डाला। केजरीवाल व हेमंत को जेल में डालकर मोदी सरकार ने जो भूल की है उसका आभास रैली की विशालता तथा उसके असर को देखकर हो सकता है। राहुल गांधी, राष्ट्रीय जनता दल के नेता व बिहार के पूर्व सीएम तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी सुप्रीमो व उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव जैसे युवा नेताओं ने फिर से एहसास कराया कि लोकतंत्र को बचाने वाली नयी पीढ़ी तैयार हो चुकी है। प्रियंका गांधी ने जिस प्रकार से मोदी को लक्षित कर रामायण की कथा का सार बतलाया, कि 'सत्ता सदैव नहीं रहती और अहंकार चूर-चूर हो जाता है', वही इस रैली का मूल संदेश है।


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