राजनीति में सफलता के लिए परिश्रम, प्रामाणिकता, पवित्रता आवश्यक : सुमित्रा
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आज कहा कि राजनीतिक जीवन में सफलता और दीर्घ प्रभाव के लिए परिश्रम, प्रामाणिकता और पवित्रता आवश्यक है

नई दिल्ली। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आज कहा कि राजनीतिक जीवन में सफलता और दीर्घ प्रभाव के लिए परिश्रम, प्रामाणिकता और पवित्रता आवश्यक है।
विजन इंडिया फ़ाउंडेशन द्वारा नेहरू स्मारक भवन में आयोजित कार्यक्रम के अंतर्गत आईआईटी, एनएलयू, येल, एलएसई, मैनचेस्टर आदि संस्थानों से आए छात्रों और भूतपूर्व छात्रों से बातचीत करते हुए श्रीमती महाजन ने कहा कि स्पीकर्स रिसर्च इनिशिएटिव के माध्यम से सांसदों को विभिन्न मुद्दों पर कार्यशाला आयोजित कर महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही है ताकि वे संसद में कार्य-व्यवहार बेहतर तरीके, कुशलतापूर्वक संपादित कर सकें।
श्रीमती महाजन ने विद्यार्थियों से संवाद में इंदौर से निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में अपनी संसदीय यात्रा और वहां के कार्यों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि अपने निर्वाचन क्षेत्र में अच्छा संपर्क, आर्थिक विकास और समावेशी विकास सुनिश्चित करना उनकी वरीयता रही है। इस संबंध में उन्होंने रेल, वायुयान और सड़क संपर्क सहित इंदौर के विभिन्न क्षेत्रों का विकास सुनिश्चित करने के लिए विगत वर्ष़ों में शुरू की गई कई योजनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने इंदौर के ग्रामीण क्षेत्रों में चौतरफा विकास के लिए किए गए प्रयासों का विशेष रूप से उल्लेख किया।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संसद का मुख्य कार्य लोगों से जुड़े व्यापक मुद्दों पर चर्चा करना, वाद-विवाद करना और निर्णय लेना है। सभा में सार्थक परिचर्चा सुनिश्चित करने के लिए सभा के सुचारु कार्य संचालन के लिए अनेक नियम बनाये गये हैं और इन नियमों का ईमानदारी से पालन करने के लिए सभी सदस्यों को नियमित रूप से इनकी जानकारी दी जाती है, लेकिन कई बार सभा में अशोभनीय दृश्य देखने को भी मिलते हैं जो सभा की गरिमा को कम कर देते हैं और संसद सदस्यों की मूल ज़िम्मेदारी को बेअसर करने लगते हैं।
उन्होंने आगाह किया कि लोग ऐसे अमर्यादित व्यवहार को बड़ी बारीकी से देखते हैं और वे संसद के दोनों सदनों में अपने प्रतिनिधियों द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर चुनावों में अपना मतदान करते हैं। कई अवसरों पर सदन में हंगामा केवल सदस्यों के व्यवहार के कारण नहीं होता। अपने दलों की भावनाओं को व्यक्त करने की ज़िम्मेदारी उनके नेताओं की होती है। उन्होंने सभी के सहयोग की मांग की ताकि महत्वपूर्ण मुद्दों पर ज़िम्मेदारी से और शांतिपूर्ण ढंग से सार्थक वाद-विवाद हो सके।
इस संबंध में उन्होंने अध्यक्षीय शोध पहल (स्पीकर्स रिसर्च इनिशिएटिव) का उल्लेख किया जिसकी संकल्पना विशेषज्ञों से बातचीत के माध्यम से सभा में उठाए जाने वाले मुद्दों को समझने और उन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए सदस्यों का लगातार सहयोग करने के लिए की गई है।
देश के विकास में महिलाओं का योगदान की चर्चा करते हुए हुए उन्होंने कहा कि महिला सांसदों के काम को विधानमंडलों में उनकी संख्या के आधार पर नहीं , बल्कि कार्यवाही में उनके योगदान की गुणवत्ता के आधार पर आंका जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “ हमें इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिए कि महिलाएं समाज और देश के लिए किस तरह योगदान दे रही हैं। जेंडर बजटिंग, महिला अनुकूल प्रौद्योगिकियों और खासकर महिलाओं के लिए नौकरियाँ सृजित करने हेतु नीतियों में बदलाव किया जाना चाहिए ताकि वे अपने घरों और कार्यस्थल के बीच तालमेल बिठा सकें। ”
श्रीमती महाजन ने कहा कि संसद में महिला आरक्षण की मांग जायज है, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महिला सांसद जनादेश को अच्छी तरह समझें और सभा की कार्यवाही में अच्छे और सार्थक ढंग से भाग लें। उन्होंने संसद की कार्यवाही को जनता तक पहुंचाने में मीडिया की भूमिका को अहम बताया। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि हाल ही में मीडियाकर्मियों में यह प्रवृति देखी गयी है कि वे सभा में होने वाले हंगामे को ज्यादा उजागर करते हैं और अच्छे भाषणों तथा विचारों को नजरअंदाज करते हैं। इस बात के मद्देनजर कि वर्ष 2001 के बाद से मीडिया संसद की कार्यवाही की काफी कम कवरेज कर रही है, उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और मीडिया को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि वह विवेकपूर्ण ढंग से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे ताकि लोगों के सरोकारों और आकांक्षाओं को संसदीय कार्य से जोड़ा जा सके।
भारत के 23 राज्यों और 85 कैंपस के 160 से अधिक प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।


