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बिहार में परिवर्तन की आस में तेजस्वी की आजमाइश

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की लड़ाई को जहां सत्ता पक्ष '15 साल बनाम 15 साल' (15 साल राजग व 15 साल राजद सरकार) बनाने में जुटी है,

बिहार में परिवर्तन की आस में तेजस्वी की आजमाइश
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पटना | बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की लड़ाई को जहां सत्ता पक्ष '15 साल बनाम 15 साल' (15 साल राजग व 15 साल राजद सरकार) बनाने में जुटी है, वहीं मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीतीश सरकार में किए गए कायरे में भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर निशाना साध रही है।

पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में राजद को मिली सफलता की तरह राजद नेताओं को एकबार फिर सफलता की आस है। दीगर बात है इस चुनाव में राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद नहीं है और पूरा दारोमदार तेजस्वी यादव पर है।

लालू की अनुपस्थिति में सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन में उपजे विवाद में तेजस्वी पस्त नजर आ रहे हैं। महागठबंधन के दो प्रमुख घटक दल हिंदुस्तानी अवमा मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) छिटककर दूसरे गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं। इधर, पुरानी सहयोगी कांग्रेस से भी सीट बंटवारे को लेकर उभरा मतभेद नहीं सुलझ पाया है।

वैसे, महागठबंधन के नेताओं को लालू प्रसाद की कमी खल रही है। कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने इशारों ही इशारों में तेजस्वी की कार्यक्षमता पर ही प्रश्नचिह्न उठाते हुए कह दिया कि अगर लालू प्रसाद होते तो सीट बंटवारे में इतनी देर नहीं होती।

बिहार कांग्रेस प्रभारी ने यह भी कहा कि तेजस्वी युवा चेहरा हैं। वहीं, जो कम अनुभवी लोग होते हैं, उन्हें लोग गुमराह भी करते हैं। सीटों के बंटवारे को लेकर बहुत देर हो गई है। अब गेंद राजद के पाले में हैं। जो बातें हुई हैं, उस पर निर्णय जल्दी हो जाए। वैसे, उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस एक राजनीतिक पार्टी है और हर परिस्थिति को लेकर तैयार है।

इसमें कोई शक नहीं कि लालू प्रसाद की भाषण शैली और करिश्माई व्यक्तित्व में मतदाताओं को लुभाने की क्षमता मानी जाती है।

राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी भी कहते हैं कि लालू प्रसाद का करिश्माई व्यक्तित्व अलग है। उनकी पहचान गरीबों के मसीहा के तौर पर होती है। उन्होंने हालांकि कांग्रेस नेताओं के बयान पर कहा कि कांग्रेस को हठधर्मिता छोड़नी चाहिए।

उन्होंने स्पष्ट कहा, कांग्रेस अगर छेड़ेगी, तो राजद छोड़ेगी नहीं।

वैसे, सीट बंटवारे को लेकर ही महागठबंधन में जिस तरह विवाद हो रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि तेजस्वी के लिए पिछले चुनाव की सफलता को दोहरा पाना आसान नहीं है।

पिछले चुनाव में राजद, कांग्रेस और जदयू एक साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। इस चुनाव में स्थिति बदली हुई है। जदयू राजग के साथ हो चुकी है और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी 'हम' भी जदयू के साथ है।

वैसे, राजद के विरोधी अब बिहार में किसी महागठबंधन को ही नकार रहे हैं। भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि महागठबंधन में अब कोई दल बचा ही नहीं है। अब तो सिर्फ वहां राजद है। राजद के उस 15 साल को यहां के लोग कभी नहीं आने देना चाहेंगे।

उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 243 सीटों में से राजद ने 80 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी जबकि उसकी सहयोगी पार्टी जदयू को 71 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।


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