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जापान की तालाबंदी में पिस गए छात्र और रिसर्चर

जापान की इस नीति ने इन छात्रों को तो अधर में लटकाया ही यूनिवर्सिटी और कारोबार जगत के लिए भी मुश्किल पैदा कर दी है.

जापान की तालाबंदी में पिस गए छात्र और रिसर्चर
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विदेशी छात्रों और रिसर्चरों की कमी जापान की बड़ी प्रयोगशालाओं से लेकर छोटी, निजी यूनिवर्सिटियों तक महसूस की जा रही है. इससे पता चलता है कि विदेशी हुनर और उनकी ट्यूशन फी सिमटती आबादी वाले देश के लिए कितना जरूरी है. वायरस को रोकने के लिए अपनाई गई इस नीति ने प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को तो बहुत लोकप्रिय बनाया लेकिन कारोबार जगत के नेता इसके आर्थिक असर के बारे में चेतावनी दे रहे हैं. जापान में श्रम बाजार पहले से ही बहुत मुश्किल में है.

सॉफ्ट पावर

दुनिया भर में जापान की अकादमिक छवि पर भी इसका असर हो सकता है लंबे समय में देश के "सॉफ्ट पावर" पर इसके नतीजे क्या होंगे ये तो कहना फिलहाल मुश्किल है. रिसर्च इंस्टीट्यूट रिकेन के जेनेटिसिस्ट पीयरो कारनिंची का कहना है वो इसके असर को देख रहे हैं. जापान के पास बायोइंफॉर्मेटिक रिसर्चरों की कमी है जो जिनोमिक स्टडीज के लिए बेहद जरूरी हैं लेकिन बीते दो सालों में जापान विदेशी हुनर से इनकी कमी पूरी नहीं कर सका है.

रिकेन के उप निदेशक कारनिची ने बताया, "मेरा लैब निश्चित रूप से धीमा पड़ रहा है और हमारे सेंटर में इस तरह के विश्लेषण के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं." के जेनेटिक्स में पुरस्कार विजेता रिसर्च को 60,000 पेपरों में जगह मिली है. उनका कहना है, "विज्ञान का अंतरराष्ट्रीयकरण बेहद जरूरी है. एक ही देश में सारी विशेषज्ञता नहीं हो सकती."

छात्रों के प्रवेश पर सख्ती

कई देशों ने कोरोनावायरस को रोकने के लिए अपनी सीमाएं सील कर दीं. अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 2020 में उससे पिछले साल के मुकाबले 43 फीसदी गिर गई. पिछले साल करीब प्रवासी मजदूरों के 80000 वीजा बेकार हो गए. हालांकि जापान जी सात समूह के देशों में सबसे सख्त पाबंदी लगाने वाला देश है. जापान ने मार्च 2020 के बा हर तरह के नए गैरनिवासियों को अपने देश में आने से रोक दिया. कोरोना पीड़ितों की संख्या को शून्य रखने के लिए बड़े देशों में सिर्फ चीन ही ऐसा है जिसने जापान से ज्यादा पाबंदी लगाई है.

दांव पर बहुत कुछ लगा है. सरकार से जुड़े एक रिसर्च ने दिखाया है कि अहम वैज्ञानिक शोधपत्रों के प्रकाशन में जापान पिछले साल खिसक कर भारत से नीचे 10वें नंबर पर चला गया है. 20 साल पहले वह चौथे नंबर पर था.

जापान की करीब आधी निजी यूनिवर्सिटियों में जहां चार साल के कोर्स की पढ़ाई होती है वहां पहले साल के सारे कोर्स में 2021 में सीटें नहीं भर पाईं. इससे पहले के साल में यह समस्या सिर्फ 15 फीसदी यूनिवर्सिटियों की यह हालत थी. इसका सबसे बड़ा कारण तो जापानी छात्रों की संख्या में कमी होना है लेकिन विदेशी छात्रों की संख्या भी काफी ज्यादा गिरी है.

सीमा खोलने की मांग

पिछले हफ्ते 100 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय रिश्ते के विशेषज्ञों ने एक पत्र पर दस्तखत किए जिसमें प्रधानमंत्री से सीमाएं खोलने की मांगी की. लोगों ने जापान के दूतावासों के सामने नारेबाजी और प्रदर्शन किए. इनकी मांग है कि छात्रों और मजदूरों को देश में आने दिया जाए. इसमें 33000 से ज्यादा लोगों के दस्तखत हैं.

सरकार ने पिछले हफ्ते कहा कि वह वैकल्पिक व्यवस्था बना कर सरकारी खर्च पर आने वाले 87 छात्रों को देश में आने देगी. समाजशास्त्री वेसले चीक ने रिसर्च के लिए ब्रिटेन का रुख किया है. उनका कहना है, "कई दशकों तक सॉफ्ट पावर का बढ़िया इस्तेमाल करने के बाद अब यह सरकार के लिए अपना ही बड़ा लक्ष्य है. मेरे जैसे लोग जो जापान में रिसर्च के ग्रांट के लिए मांग करते हैं उन्हें निकट भविष्य के लिए कहीं और जाना पड़ रहा है."

अंतरराष्ट्रीय छात्र जापान में पार्ट टाइम काम कर सकते हैं और जापान पारंपरिक रूप से इसके लिए काम मुहैया कराता है. कोरोना वायरस के पहले भी यहां के श्रम बाजार की मांग को पूरा करने के लिए विदेशी छात्र नहीं थे. अंतरराष्ट्रीय नियुक्ति सलाहकार योहइ शिबासाकी का अनुमान है कि पान में महामारी से पहले कारोबार और भाषा के स्कूलों में 170,000 छात्र थे और इनमें से ज्यादातर पार्ट टाइम काम कर रहे थे.

पाबंदियों से नुकसान

ई कॉमर्स ग्रुप राकुटेन विदेशी इंजीनियरों को काम पर रखती है. कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव हिरोशी मिकितानी का कहना है कि पाबंदियों पर दोबारा विचार होना चाहिए क्योंकि वे बहुत कारगर नहीं हैं और "अर्थव्यवस्था के लिए तो केवल घाटा हैं."

पढ़ाई के लिए इंतजार कर रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों की पुकार दिल को झकझोर देने वाली है. मध्यरात्रि में चलने वाले ऑनलाइन क्लास की फीस, स्कॉलरशिप से हाथ धोने और महीनों तक बदलाव के इंतजार में तनाव की जिंदगी के बारे में वह सोशल मीडिया पर लिखते हैं. कुछ छात्रों की सारी बचत खत्म हो गई है तो कुछ ने हार मान कर कहीं और का रुख कर लिया है.

पूर्वी एशिया में अब जापान पढ़ाई और रिसर्च का मुख्य केंद्र नहीं रहा. विदेश में पढ़ाई को बढ़ावा देने वाली एक एजेंसी के प्रमुख बताते हैं कि ज्यादातर छात्र अब दक्षिण कोरिया जा रहे हैं.


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