पराली निस्तारण से किसानों को होगा फायदा, प्रदूषण से मिलेगी राहत : केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि पूसा शोध संस्थान ने पराली को निस्तारित करने के लिए सस्ता और सरल समाधान निकाला है जिससे पराली का डंठल गल कर खाद में बदल जाएगा

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि पूसा शोध संस्थान ने पराली को निस्तारित करने के लिए सस्ता और सरल समाधान निकाला है जिससे पराली का डंठल गल कर खाद में बदल जाएगा।
श्री केजरीवाल ने मंगलवार को दक्षिण पश्चिम दिल्ली स्थित खरखरी नाहर गांव में पराली को गलाने के लिए बनाए गए डी-कंपोजर घोल निर्माण केंद्र का निरीक्षण किया और घोल बनाने की प्रक्रिया को समझा। दिल्ली सरकार, पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूटी की निगरानी में पराली के डंठल को खेत में गला कर खाद बनाने के लिए इस घोल का निर्माण करा रही है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार इस घोल का छिड़काव करीब 700 हेक्टेयर जमीन पर अपने खर्चे पर करेगी और किसानों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। हालांकि किसानों को अपने खेत में इस घोल के छिड़काव के लिए अपनी सहमति देनी होगी। अगले सात दिन के बाद यह घोल बन कर तैयार हो जाएगा और 11 अक्टूबर से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में घोल का छिड़काव किया जाएगा। यह प्रयोग सफल होता है, तो अन्य राज्यों के किसानों को भी पराली का एक समाधान मिल जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हर साल जब पुरानी फसल काटने के बाद किसान को नई फसल की बुवाई करनी होती है, तो किसान के खेत में पराली बच जाती है। जो किसान गैर बासमती चावल उगाते हैं, उनके खेत में यह पराली के मोटे-मोटे डंठल बच जाते हैं। अभी तक किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह थी कि अगली फसल की बुवाई के लिए उनके पास समय कम होता है और उस पराली से वो निजात कैसे पाएं? उसके लिए पराली एक समस्या बन रही थी। किसान उस पराली को जलाता था। पराली को जलाने की वजह से उस जमीन के अंदर फसल के लिए फायदेमंद जीवाणु मर जाया करते थे और पराली के जलाने से निकलने वाले धुंआ से उस किसान और पूरे गांव के लोगों को प्रदूषण से परेशानी होती थी। साथ ही, वह धुंआ दिल्ली समेत उत्तर भारत में फैल जाता था, जिसके चलते सभी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता था। सभी लोग प्रदूषण से पीड़ित होते थे।
श्री केजरीवाल ने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पराली को निस्तारित करने का समाधान निकाला है जो बहुत ही सस्ता और सरल है। पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कुछ कैप्सूल बनाए हैं। इस कैप्सूल के जरिए घोल बनाया जाता है। इस घोल को अगर खेतों में खड़े पराली के डंठल पर छिड़क दिया जाए, तो वह डंठल गल जाता है और वह गल करके खाद में बदल जाता है। डंठल से बनी खाद से उस जमीन की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है, जिसके बाद किसान को अपने खेत में खाद कम देना पड़ता है। इस तकनीक के प्रयोग के बाद किसान को फसल उगाने में लागत कम लगेगी, किसान की फसल की पैदावार अधिक होगी और किसान को खेतों में खड़ी फसल जलानी नहीं पड़ेगी। इसकी वजह से खेत में उपयोगी जीवाणु भी नहीं मरेंगे और लोगों को प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी।


