Top
Begin typing your search above and press return to search.

वस्त्रों और परिधानों की कहानी, पांडुलिपि चित्रों की जुबानी

राष्ट्रीय संग्रहालय में पांडुलिपि में दर्शाए गए चित्र की प्रदर्शनी लगाई गई है।

वस्त्रों और परिधानों की कहानी, पांडुलिपि चित्रों की जुबानी
X

नई दिल्ली, 18 दिसंबर: राष्ट्रीय संग्रहालय में पांडुलिपि में दर्शाए गए चित्र की प्रदर्शनी लगाई गई है। जिसमें जैन पांडुलिपियों में दिखाए गए वस्त्र, रंग कलाकृतियां, रेखाएं के द्वारा यह दिखाया गया कि किस तरह यह सभ्यता, यह संस्कृति लगभग 1000 साल से लेकर आज तक हमारे वस्त्रों में जिंदा है और यह संस्कृति यह सभ्यता हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में भी जिंदा है। डॉक्टर पवन जैन ने बताया कि किस तरह हिंदुस्तान का कपड़ा और उस पर छपी ये आकृतियां पूरी दुनिया में फैली। कपड़ों पर फैली आकृतियां इंडोनेशिया से लेकर इजिप्ट तक कई देशों में फैली हुई है जिससे हमें भारत का कपड़ा उद्योग की अनंत सीमाएं जानने का मौका मिलता है। किस तरह यह 1000 साल से लेकर और अब तक हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी हुई है। आज भी यह चाहे गुजरात हो, राजस्थान हो, हिंदुस्तान के हर राज्य में हमारे वस्त्रों पर इसकी झलक दिखाई देती है। और यह मिसाल हमें केवल भारत में ही मिलती है।

इजिप्ट की भी हजारों साल की सभ्यता है। लेकिन उन लोगों की संस्कृति केवल उनके संग्रहालय तक ही सीमित है। उनके जीवन में और रोजमर्रा की जिंदगी में नहीं है। बल्कि भारत में हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता सिर्फ संग्रहालय तक ही सीमित नहीं है बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में और हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों में भी दिखाई देती है।

इस प्रदर्शनी का एक खास आकर्षण दिल्ली के रहने वाले विश्व ख्याति प्राप्त दास्तानगो सैयद साहिल आगा की वेशभूषा (अंगरक्खा) भी है। उन्होंने बताया कि ये तेरहवीं सदी की एक विलुप्त हो चुकी भारतीय लोक कला है। जिसमें कलाकार कहानियां सुनाता है। इसीलिए दास्तानगो इस पुरानी वेशभूषा को पहनते हैं कि वह भारत की संस्कृति सभ्यता और धरोहर को संयोजित कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर सकें और दर्शक गुजरे हुए इतिहास के आईने में भविष्य को देख सकें। इस वेशभूषा के चित्र इतिहास की पांडुलिपियों में भी मिलते हैं। भारत में दस्तांगोई के जनक अमीर खुसरो सूफी के जमाने में बनी पांडुलिपियों और चित्रों में यह वेशभूषा साफ नजर आती है। जिसे आज गुजरे 800 साल हो गए, यह मौका ना सिर्फ संग्रहालय बल्कि समूचे भारतवर्ष के लिए गौरव का क्षण है। साहिल आगा का अंगरक्खा, जिसे वह पहन कर देश और विदेश में दास्ताने सुना चुके है, नेशनल म्यूजियम में लगने पर उन्हें बहुत खुशी का अहसास हुआ।

प्रदर्शनी की सहायक संयोजक गुंजन जैन ने दिखाया कि किस तरह उनके बनाए कपड़ों में किस तरह पुरानी संस्कृति की छाप है जो आज भी नौजवानों में बहुत पसंद की जा रही है। वह उस पुराने छापे के अंदाज को नए कपड़ों में ढाल रही है। हिंदुस्तान से लेकर विदेशों तक इनकी धूम और लोग अपना प्रेम इसे दे रहे हैं। उन्होंने खासतौर पर बताया कि हिंदुस्तान से इंडोनेशिया तक कपड़ा जाता था और वहां से जड़ी बूटियां आती थी। इसका अर्थ यह हुआ कि हजारों साल से लेकर अब तक हिंदुस्तान का कपड़ा उद्योग दुनिया पर छाया हुआ है, बस जरूरत है सरकारों के सहयोग और जनता के प्रेम की।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it