दो परिवारों की कहानी
यूट्यूबर और बिग बॉस का विजेता एल्विश यादव अब जेल की सलाखों के पीछे है

- सर्वमित्रा सुरजन
कभी एल्विश यादव जैसे त्वरित और क्षणिक सफलता प्राप्त करने वाले लोग युवाओं को लुभा रहे हैं या फिर कभी उन्हें कांवड़ यात्रा या अन्य शोभा यात्राओं में उलझाया जा रहा है। उनकी शिक्षा के बेहतर इंतजाम और नौकरी या व्यवसायों के लिए संसाधन और सुविधाएं जुटाने की जगह उन्हें रील्स और मीम्स का दर्शक बनाकर छोड़ दिया गया है, वहीं सत्ता और संपत्ति से संपन्न लोगों के बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं, ऊंची नौकरियां कर रहे हैं।
यूट्यूबर और बिग बॉस का विजेता एल्विश यादव अब जेल की सलाखों के पीछे है। नोएडा की एक रेव पार्टी में सांपों का जहर उपलब्ध कराने के लिए एल्विश को गिरफ्तार किया गया है। रेव पार्टियों यानी गुपचुप तरीके से आयोजित ऐसा जश्न, जिसमें मौज-मस्ती के नाम पर मादक पदार्थों की खरीद-बिक्री और सेवन से लेकर तमाम अनैतिक और अवैध काम किए जाते हैं। साधारण लोग फिल्मों या धारावाहिकों में इस तरह की पार्टियों के दृश्य देखते हैं, लेकिन रेव पार्टियां भारतीय समाज का एक कड़वा सच बन चुकी हैं। कई शहरों के आलीशान रिहायशी इलाकों, फार्म हाउसों में अतिसंपन्न घरों के लोग ऐसी पार्टियां आयोजित करते हैं, इनमें बड़ी भागीदारी युवाओं की होती है। सोशल मीडिया के जरिए गुपचुप तरीके से उन्हें बुलाया जाता है, क्योंकि ऐसी पार्टियां अवैध होती हैं। कुछ घंटों की पार्टी के लिए लाखों रूपए खर्च कर दिए जाते हैं। रेव पार्टी के इस विस्तार में जाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कुछ वक्त पहले तक राजनेताओं से लेकर कई पत्रकार जिस एल्विश यादव को युवाओं के आदर्श के तौर पर पेश कर रहे थे, वो ऐसी ही एक रेव पार्टी का हिस्सा बनने के लिए अब कानून के शिकंजे में है।
पिछले साल अगस्त में एल्विश यादव बिग बॉस ओटीटी सीजन 2 में वाइल्ड कार्ड से एंट्री लेकर पहुंचा था। बिग बॉस जैसे शो इसीलिए सुर्खियों में रहते हैं, क्योंकि यहां खास तौर पर ऐसी हस्तियों को शामिल किया जाता है, जो किसी न किसी किस्म के विवाद में जुड़े रहते हैं या फिर विवाद पैदा करने की क्षमता रखते हैं। एल्विश यादव ने बिग बॉस में शामिल होने से पहले बतौर यूट्यूबर सफलता हासिल कर ली थी। यहां सफलता से तात्पर्य है कि यूट्यूब पर एल्विश को लाखों लोग देखते रहे हैं। इसलिए बिग बॉस ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए एल्विश को प्रतिभागी बनाया। यहां एल्विश का सिस्टम बोलने का तरीका युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय हो गया। सोशल मीडिया पर उसकी खूब चर्चा रही। इंस्टाग्राम पर मीम्स और रील्स सिस्टम को लेकर बनने लगे। सोशल मीडिया में ऐसे ही लोग इंफ्लूएंसर कहलाते हैं, मतलब जो समाज को इंफ्लूएंस अर्थात प्रभावित कर सकें। सोशल मीडिया से पहले के दौर में खिलाड़ी, कलाकार, पत्रकार, नेता, उद्यमी ऐसे लोग समाज को प्रभावित करते थे, जो अपने संघर्षों से आगे बढ़े और समाज में अपना मुकाम बनाया। अब सोशल मीडिया पर जिसकी जितनी पहुंच है वो उतना बड़ा इंफ्लूएंसर हो जाता है। विडंबना यह है कि यह इंफ्लूएंस केवल सोशल मीडिया पर नहीं रहता, बल्कि इसे समाज में स्वीकृति दिलाने का काम अब राजनेता और पत्रकार करने लगे हैं। कम से कम एल्विश यादव के प्रकरण से ऐसा ही लगता है।
बिग बॉस में रहने के दौरान ही मीडिया ने एल्विश यादव की तारीफ के कशीदे काढ़ने शुरु कर दिए थे कि कैसे उसने साधारण परिवार से उठकर आलीशान जीवन तक का सफर तय किया। एल्विश के करोड़ों के घर और गाड़ियों की चर्चा होने लगी। इसी तरह बिग बॉस जीतने के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गणपति महोत्सव में एल्विश यादव को आमंत्रित किया। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो एक कार्यक्रम में यहां तक कह दिया था कि एल्विश यादव आगे बढ़ेगा तो देश आगे बढ़ेगा। लेकिन अब एल्विश यादव पर कानूनी शिकंजा कसा हुआ है तो श्री खट्टर सफाई दे रहे हैं कि मेरा उससे पुराना परिचय नहीं था, मुझे लगा वो नशामुक्ति अभियान में जुड़ रहा है, तो मैंने उसकी तारीफ कर दी थी।
अब सवाल ये है कि अगर श्री खट्टर एल्विश को पहले से जानते नहीं थे, तो फिर उन्होंने उसके आगे बढ़ने पर देश के आगे बढ़ने का दावा क्यों किया। क्या श्री खट्टर इस बात से वाकिफ नहीं थे कि जिस पद पर वे बैठे थे, वहां से उनकी कही बात को देश के लोग गंभीरता से लेते हैं या एल्विश यादव की लोकप्रियता को अपने सियासी फायदे के लिए मनोहर लाल खट्टर और एकनाथ शिंदे जैसे लोग भुनाना चाह रहे थे। मीडिया ने भी एल्विश के जिस आलीशान जीवन का खाका खींचा था, उसकी सारी पोल एल्विश के पिता ने ही खोल दी है। एक न्यूज़ चैनल में चर्चा में उन्होंने बताया कि एल्विश के पास जो कार है, वो किश्तों में है, सोशल मीडिया पर प्रभाव बनाए रखने के लिए वो कभी दोस्तों की या किराए की कार अपनी बनाकर दिखाता है। एल्विश एक किराए के घर में अपना स्टूडियो चलाता है और उसके पिता अपनी जमा-पूंजी से अपना घर बना रहे हैं।
एल्विश के जेल जाने के बाद से उसके माता-पिता का कुछ चैनलों ने इंटरव्यू लिया है, जिसमें वे पर्दे के पीछे की सच्चाई बता रहे हैं। एक चैनल में चर्चा के दौरान तो वे अपने बेटे के जेल जाने का जिक्र करते हुए रो भी पड़े। उन्हें लगता है कि उनके बेटे को फंसाया जा रहा है। अब इस मामले की सच्चाई पूरी पड़ताल के बाद ही सामने आएगी, लेकिन इससे पहले आर्यन खान, अर्जुन बिजलानी, स्वरा भास्कर आदि पर विवादास्पद टिप्पणियां एल्विश ने की हैं। एक जिम में मारपीट करने का वीडियो भी पिछले दिनों सामने आया था। इन तमाम घटनाओं को देखें तो एक बात साफ समझ आती है कि एल्विश यादव ने भले ही यू ट्यूब पर हल्के किस्म के वीडियो बनाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल कर ली हो, लेकिन ऐसे व्यक्ति को युवाओं का आदर्श न बताया जा सकता है, न बताना चाहिए। आज एल्विश के मां-बाप एक चैनल से दूसरे चैनल अपने बेटे की सफाई देते फिर रहे हैं, रो रहे हैं।
ये एक बहुत बड़ा सबक उन तमाम अभिभावकों के लिए है, जिनके बच्चों को नौकरी या रोजगार की सहूलियतें न देकर सरकारी नीतियों ने ऐसी ही सफलता और लोकप्रियता की मृगमरीचिका में भटकने के लिए छोड़ दिया है। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के इसी नशे की ओर इशारा किया था और उन्होंने कहा था कि आज के युवा सात-आठ घंटे सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं, जबकि चंद प्रभावशाली लोगों के बच्चे इसी दौरान अपनी पूंजी में इजाफा कर रहे हैं। राहुल गांधी के इस बयान में देश के भविष्य को लेकर एक वाजिब चिंता थी, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने शाब्दिक जाल में फंसाने की कोशिश की। वाराणसी में श्री मोदी ने राहुल गांधी के बयान को गलत तरीके से पेश किया था कि वे वाराणसी के युवाओं को नशे का आदी बता रहे हैं, ये उनका अपमान है। जबकि सच क्या है, इसे नरेन्द्र मोदी भी समझते हैं, लेकिन सियासी फायदा उन्हें इस सच को स्वीकार करने से शायद रोकता है।
कार्ल मार्क्स ने जब धर्म को अफीम की तरह कहा था, तब उन पर धर्मविरोधी होने के आरोप लगे थे, हालांकि उनका आशय था कि धर्म कुछ देर के लिए आपको दर्द में वैसी ही राहत दे सकता है, जैसे अफीम, लेकिन ये दर्द का स्थायी इलाज नहीं है। यही बात आज सोशल मीडिया के नशे के संबंध में कही जा सकती है, जो युवाओं को कुछ देर के लिए आभासी दुनिया में उलझा सकता है, लेकिन इससे उनके वास्तविक जीवन के मसले हल नहीं हो सकते।
देश इस समय एल्विश यादव के मां-बाप को रोते और परेशान होते देख रहा है। कुछ दिनों पहले एक और युवा अनंत अंबानी के मां-बाप मुकेश और नीता अंबानी को फिल्मी गीतों पर औसत से भी निम्न दर्जे की प्रस्तुति करते हुए देश ने देखा था। अपने बेटे की शादी में की जाने वाली ऐसी प्रस्तुति परिवार के बीच पेश न कर पूरी दुनिया में प्रचारित करने की मंशा क्या है, यह समझना कठिन नहीं है। मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रभाव रखने वाले ये लोग दरअसल महंगाई, बेरोजगारी, नफरत और हिंसा के कारणों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ऐसे प्रपंच रचते हैं और देश उनमें फंसता है।
कभी एल्विश यादव जैसे त्वरित और क्षणिक सफलता प्राप्त करने वाले लोग युवाओं को लुभा रहे हैं या फिर कभी उन्हें कांवड़ यात्रा या अन्य शोभा यात्राओं में उलझाया जा रहा है। उनकी शिक्षा के बेहतर इंतजाम और नौकरी या व्यवसायों के लिए संसाधन और सुविधाएं जुटाने की जगह उन्हें रील्स और मीम्स का दर्शक बनाकर छोड़ दिया गया है, वहीं सत्ता और संपत्ति से संपन्न लोगों के बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं, ऊंची नौकरियां कर रहे हैं। लेकिन यादव परिवार और अंबानी परिवार इन दो परिवारों की कहानी और उनके सच को देखकर समझा जा सकता है कि देश के युवाओं के साथ कितना बड़ा छल किया जा रहा है।


