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कहानी संग्रह : मुझमें दिल्ली बसता है

अंधेरे रास्तों का सफ़र करातीं गुमनाम किरदारों की कहानियां

कहानी संग्रह : मुझमें दिल्ली बसता है
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- सुरेश चंद्र रोहरा

'मुझमें दिल्ली बसता है' कथाकार सनीश का एक ऐसा कथा संग्रह है जिसमें मुझमें दिल्ली बसता है सहित 11 कहानियां संग्रहित हैं। अपने भाषा शिल्प में बेजोड़ यह कहानियां अपने आप में अत्यंत भावपूर्ण और रागात्मक हैं। पहली कहानी -'तुम फिर लौट के आना वसंत' मुख्य पात्र मोहन के मानसिक आलोड़न, जिंदगी की पदचाप का सुंदर अंकन है। एक ऐसे हृदय को प्रभावित करने वाली कहानी जिसे पाठक कभी भूल नहीं पाएंगे। कहानी के ईर्द-गिर्द नानक और बुल्ले शाह की कुछ पंक्तियां कहानी को और भी प्रभावशाली बना देती हैं यथा - राह चलने नू दिल न देइयो, चाहे लख चेहरे ते नूर होवे। ओ बुलया दोस्ती सिर्फ उथे करियो , जिसे दोस्ती निभावन दा दस्तूर होवे।

इस कथा संग्रह की अंतिम कहानी मुझमें दिल्ली बसता है भी एक अविस्मरणीय कथा है जो अपने शिल्प में बेजोड़ है। कथा संग्रह के संदर्भ में लेखक के शब्दों में -'जीवन में मिले प्रेम को जिसने मुझे यथार्थवादी बनाया, यह कहानी उस परिवेश और यथार्थ की कहानी है जहां से चलकर मैं आया हूं । यह रास्ता धूल फांकने वाला रास्ता था, भड़काने वाला रास्ता था, बिना अनुमान के अंधेरे में चलने वाला रास्ता, यह कहानी इन्हीं रास्तों के गुमनाम किरदारों की है।' कहानी मुझमें दिल्ली बसता है कि अगर हम बात करें तो यह कहानी रोचक और युवा कथा नायक के मन के उस भाव को बताते चलती है जो आसपास घटित होता है ।

सहज जीवंत शैली में लिखी गई यह कहानी पाठक को अपने साथ प्रवाहित कर ले जाने में सक्षम है। जिसकी एक बानगी देखें- 'अमृतसर जंक्शन। बारिश अभी रुकी ही थी। स्टेशन का पीला बोर्ड बारिश में धुल कर साफ दिख रहा था पर जाने क्यों मोहन को यह सब बदरंग लगा। ट्रेन में सुकल्पिता का फोन आया था, आवाज में थोड़ी निराशा लग रही थी -'अपूर्व को जेजे कॉलेज की फेलोशिप मिल गई है वो कल ही मुंबई जा रहा है।' मोहन को टैगोर का स्मरण हुआ -'बाई ऑल मिंस दे ट्राइ टु होल्ड मी सिक्युर ....दोज हू लव मी इन दिस वर्ल्ड...'

लेखक सनीश की तुम फिर लौट के आना, मगध, सिकंदर, पेरिस्कोप, आंगन में धूप, एक्सप्लेन, काव्या, वर्तिका वैशाली, कप्तान की बीवी, कहानियां इस संकलन में संग्रहित हैं। इन सभी कहानियों को पढ़ते हुए एक हृदय को आल्हादित करने वाला अनुभव होता है । ये कहानियां दिलो दिमाग को झकझोर देने वाली कहानियां हैं। कहानी मुझमें दिल्ली बसता है का भाषा विधान सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की अमर कृति 'शेखर एक जीवनी' की याद दिलाता है तो कहानी का विधान पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का स्मरण कराता है। इन कहानियां में जो पठनीयता है, आकर्षण है, वह अपने आप में इस किताब को महत्वपूर्ण बनाता है और लेखक को हिंदी साहित्य में एक मुकाम हासिल करने की संभावनाएं भी देता है।


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