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अखिलेश और राहुल के गठबंधन से बीजेपी में हड़कंप

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को उत्तर प्रदेश में व्यापक जन समर्थन प्राप्त हो रहा है

अखिलेश और राहुल के गठबंधन से बीजेपी में हड़कंप
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- राहुल लाल

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को उत्तर प्रदेश में व्यापक जन समर्थन प्राप्त हो रहा है। कांग्रेस ने जनसरोकार के मुद्दों विशेष कर सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय को काफी जबरदस्त ढंग से उठाया है। जाति जनगणना का मामला हो या महंगाई और बेरोजगारी- ये मामले अब उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनावी मुद्दे बन गए हैं साथ ही अखिलेश यादव भी लंबे समय से पीडीए अर्थात पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक का मामला उठाते रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन की अधिकृत घोषणा के बाद बीजेपी गठबंधन की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन में टूट के लिए हरसंभव प्रयत्न किया,परंतु 80 लोकसभा सीटों वाली उत्तर प्रदेश में टीम इंडिया अब मूर्तरूप में सामने आ चुकी है। उत्तर प्रदेश में अब सीट शेयरिंग की स्थिति भी स्पष्ट हो चुकी है। कांग्रेस को 17 सीटें मिली हैं और शेष 63 सीटों पर समाजवादी पार्टी अन्य छोटे घटक दलों के साथ चुनाव लड़ेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है। गठबंधन के तहत कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी को एक सीट देगी। बुधवार दोपहर में अखिलेश यादव ने कहा 'हमारे बीच कोई विवाद नहीं है। गठबंधन होगा,जल्द ही सारी चीजें साफ हो जाएंगी। बाकी चीजें तो पुरानी हो गई हैं। अंत भला तो सब भला।


राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को उत्तर प्रदेश में व्यापक जन समर्थन प्राप्त हो रहा है। कांग्रेस ने जनसरोकार के मुद्दों विशेष कर सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय को काफी जबरदस्त ढंग से उठाया है। जाति जनगणना का मामला हो या महंगाई और बेरोजगारी- ये मामले अब उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनावी मुद्दे बन गए हैं साथ ही अखिलेश यादव भी लंबे समय से पीडीए अर्थात पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक का मामला उठाते रहे हैं। बीजेपी ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को बहुत बड़े इवेंट में बदलने की कोशिश की, लेकिन शंकराचार्यों ने जिस तरह खुलकर आधे अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को धर्म विरुद्ध बताया, उससे यह आयोजन बीजेपी के लिए नुकसान ही कर गया। उसके बाद बीजेपी ने काशी और मथुरा के मामले को भी गर्म करने की कोशिश की, लेकिन जनता की समुचित प्रतिक्रिया नहीं मिलने के कारण बीजेपी नित प्रतिदिन अब तक किसी मजबूत मुद्दे की खोज में ही लगी हुई है। उत्तर प्रदेश में जहां टीम इंडिया के पास बेरोजगारी, महंगाई, महिला सुरक्षा, सामाजिक न्याय जैसे गंभीर जनसरोकार वाले मुद्दे हैं, वहीं बीजेपी अब भी किसी भावनात्मक मुद्दे की तलाश में शामिल है।

कांग्रेस को यूपी में 17 सीटें मिली हैं। मुरादाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में गतिरोध की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन इस सीट को समाजवादी पार्टी ने अपने पास रखा है। समाजवादी पार्टी से कांग्रेस बलिया सीट की मांग कर रही थी, लेकिन समाजवादी पार्टी ने बलिया के बदले में कांग्रेस को वाराणसी सीट दी है। इस सीट पर पहले समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित कर दिया था। इसी प्रकार हाथरस के स्थान पर कांग्रेस को सीतापुर सीट मिली है।

कई लोग वर्ष 2017 के आधार पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन की आलोचना कर रहे हैं। 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन के अंतर्गत कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 114 सीटों पर लड़ी थी और शेष सीटों पर समाजवादी पार्टी लड़ी थी। लेकिन तब कांग्रेस को केवल 7 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं समाजवादी पार्टी को भी 47 सीटों पर जीत मिली थी। उस समय अखिलेश यादव को सत्ताविरोधी रूझान का सामना करना पड़ा था। इसके अतिरिक्त समाजवादी पार्टी में घर चाचा-भतीजे में भी संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी।

उत्तर प्रदेश के 2014, 2017, 2019 और 2022 से 2024 का चुनाव पूरी तरह अलग है। इस समय मोदी सरकार के 10 वर्ष पूरे हो चुके हैं और उन्हें भारी सत्ता विरोधी रूझानों का सामना करना पड़ रहा है। मोदी सरकार अब तक अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के समक्ष नहीं रख पाई है। उत्तर प्रदेश में 2017 से डबल इंजन की सरकार चल रही है। सरकार भले ही इवेंट मैनेजमेंट कर उत्तर प्रदेश को 1 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर करने का दावा कर रही हो, लेकिन वास्तव में उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय पड़ोसी पाकिस्तान और कई अफ्रीकी देशों से भी काफी कम है। यही कारण है कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा में युवाओं का उत्साह अभूतपूर्व रूप से सामने आ रहा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश 2024 का चुनाव 2009 की तरह चौंकाने वाला होगा।

कांग्रेस को मिली 17 सीटों में रायबरेली और अमेठी पहले से ही कांग्रेस के गढ़ रहे हैं। 2019 में अमेठी में स्मृति ईरानी जीत गई थी, लेकिन अब वहां उनके लिए भारी नाराजगी है। झांसी,बांसगांव, देवरिया, सहारनपुर, महाराजगंज, अमरोहा जैसे सीटों पर अभी से ही कांग्रेस गठबंधन के कारण बढ़त में नजर आ रही है। कांग्रेस की 17 सीटों में से 11 सीटों पर बीजेपी के लिए संकट के बादल अभी से ही मंडराने लगे है।

कांग्रेस के द्वारा प्रत्याशियों के घोषणा के बाद ऐसे सीटों की संख्या में और वृद्धि संभव है वहीं तीन सूचियों में समाजवादी पार्टी अब तक 31 नामों की घोषणा कर चुकी है। इनमें 3 यादव और 3 मुस्लिम चेहरे हैं शेष 25 सीटों पर जो उम्मीदवार उतारे गए हैं, उसमें सपा ने जाति समीकरण विशेषकर पीडीए(पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यक) को साधने का.प्रयास किया है। समाजवादी पार्टी ने गैर यादव ओबीसी पर पर्याप्त बल दिया है। वहीं समाजवादी पार्टी ने अयोध्या से दलित नेता अवधेश प्रसाद को टिकट देकर बीजेपी को अयोध्या में फंसा दिया है।

अवधेश प्रसाद 9 बार के विधायक और कैबिनेट मंत्री रहे हैं। अवधेश प्रसाद के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब वे अयोध्या में होते हैं, तो प्रतिदिन सरयू नदी में स्नान करते हैं। उन्हें अयोध्या के सामान्य जनता के साथ अधिकांश साधु संतों का समर्थन प्राप्त है, जो बीजेपी के लिए काफी चिंता वाली बात है। समाजवादी पार्टी ने जिस सावधानी के साथ उम्मीदवारों का चयन किया है, उससे कम से कम 15 सीटों पर अभी से समाजवादी पार्टी स्पष्ट बढ़त में नजर आ रही है। इस तरह अभी से ही उत्तर प्रदेश में टीम इंडिया की स्ट्राइक रेट कम से कम 50 प्रतिशत की दिख रही है। बीजेपी भले ही यूपी में 80 सीटों का नारा दे रही है,लेकिन सपा और कांग्रेस गठबंधन के घोषणा के बाद से ही बीजेपी में हड़कंप मचा हुआ है। बीजेपी के लिए चुनौती यह है कि आखिर वह यूपी में घट रही सीटों की क्षतिपूर्ति कहां से करेगी? बीजेपी उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में अपने अधिकतम अंक पर खड़ी है।

2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में थी। इस गठबंधन में समाजवादी पार्टी के वोट तो बीएसपी को ट्रांसफर हो गए थे, लेकिन बीएसपी के वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर नहीं हुए थे। यही कारण था कि बीएसपी 10 और समाजवादी पार्टी 5 सीटों पर सिमट गई थी। ऐसे में जहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी खड़े थे, वहां दलितों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के पक्ष में वोट कर गया था। लेकिन इस बार स्थितियां बदल गई हैं।

बीएसपी अकेले चुनाव के मैदान में है, ऐसे में उनके कट्टर समर्थक बहुजन समाज पार्टी के साथ बने रहेंगे। इससे उनके बीजेपी में जाने की संभावना नहीं होगी। वहीं 2022 के बाद दलित वोटरों का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर भी हुआ है। इस स्थिति में फ्लोटिंग दलित वोट सपा और कांग्रेस गठबंधन के साथ आने की पूरी संभावना है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में टीम इंडिया के मूर्तरूप में आने के बाद चुनाव पूर्णत: द्विपक्षीय होगा। ऐसे में बीएसपी के वोट प्रतिशत में और कमी अवश्यंभावी है और टीम इंडिया में उनका जाना तय है। वहीं शेष दलित मत मायावती जी के पास होगा। लेकिन बीजेपी के तरफ दलित मतदाताओं का रूझान न्यूनतम होगा।

बीजेपी लगातार टीम इंडिया के सीट बंटवारे पर प्रश्न उठाते रहती है, परंतु एनडीए में सीट बंटवारे के लिए घमासान की स्थिति बनी हुई है। महाराष्ट्र में शिवसेना एकनाथ शिंदे 20 सीटें मांग रही है, तो एनसीपी अजीत पवार भी 20 सीटों से कम पर तैयार नहीं हैं साथ ही बीजेपी भी कम से कम 22-23 सीटों पर लड़ना चाह रही है। इस तरह महाराष्ट्र में एनडीए को चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 62-63 सीटों की जरूरत है, जबकि कुल सीट 48 ही हैं। इसी तरह किसान आंदोलन के तीव्र गति पकड़ने से राष्ट्रीय लोक दल को भी अधिकृत तौर पर अभी तक एनडीए का हिस्सा नहीं बनाया गया है। बीजेपी भी इस तथ्य से परिचित है कि उन्होंने जयंत को तोड़ तो जरूर लिया है, लेकिन जयंत के मतदाता को नहीं तोड़ पाएं हैं।

पश्चिमी यूपी में किसान अभी भी टीम इंडिया के साथ हैं। वहीं अकाली दल भी किसान आंदोलन का बहाना बनाकर एनडीए से बाहर आया था। अब किसान आंदोलन के कारण अकाली दल पुन: एनडीए गठबंधन में प्रवेश को लेकर सहज नहीं है। उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर कब से ही मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे हैं, चुनाव से पहले राजभर अगर खेमा बदल लें, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। बिहार में बीजेपी अब तक चाचा पशुपति पारस और भतीजा चिराग पासवान के संघर्ष को खत्म नहीं कर सकी है। एक तरफ बीजेपी गठबंधन में लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है,वहीं अब उत्तर प्रदेश की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल और अखिलेश आगे साथ दिखेंगे। बिहार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा में तेजस्वी जिस तरह राहुल गांधी के लिए सारथी बने हुए थे, उन दृश्यों को लोग अब तक भूल नहीं सके हैं।

कुल मिलाकर बीजेपी भले ही 400 सीट पार करने का नारा लगा रही है, लेकिन उसकी 200 सीट भी कहीं नजर नहीं आ रही है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश और राहुल के गठबंधन से बीजेपी अब 150 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार व आर्थिक मामलों के जानकार हैं)


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