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अभी भी 25 करोड़ ग्रामीण कर रहे हैं खुले में शौच

पिछले तीन साल में आठ राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं और देश में छह करोड़ शौचालय बन गए हैं लेकिन अभी भी 25 करोड़ ग्रामीण जनता खुले में शौच कर रही है

अभी भी 25 करोड़ ग्रामीण कर रहे हैं खुले में शौच
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नई दिल्ली। पिछले तीन साल में आठ राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं और देश में छह करोड़ शौचालय बन गए हैं लेकिन अभी भी 25 करोड़ ग्रामीण जनता खुले में शौच कर रही है। अब तक खुले में शौच से मुक्त करीब तीन लाख गांव में से 70 प्रतिशत गांव में इस अभियान की सफलता की जांच हो गई है और नौ महीने के भीतर दूसरी जांच होगी।

फिर थर्ड पार्टी की जांच होगी ताकि लोगों से पता चले कि वे इस केेंद्र की योजना से वास्तविक रूप में लाभान्वित हैं या नहीं लेकिन अब इन शौचालयों की सतत देखभाल तथा ठोस कचरा प्रबंधन सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती बन गई है। यह कहना है जलापूर्ति एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर का, जो स्वछता अभियान से जुड़े देश के महत्वपूर्ण एवं वरिष्ठ नौकरशाह हैं। अय्यर ने आज यहां पत्रकारों को बताया कि 2014 में 55 करोड़ ग्रामीण जनता खुले में शौच करते थे लेकिन स्वछता अभियान के जन आन्दोलन में बदलने तथा लोगों की आदत तथा मानसिकता में बदलाव के कारण अब केवल 25 करोड़ ग्रामीण जनता ही खुले में शौच कर रही है।

उन्होंने कहा कि 300 जिले खुले में शौच से मुक्त होने के बाद इस वर्ष मार्च तक कुल पन्द्रह राज्य खुले में शौच से मुक्त हो जाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि छह करोड़ बने शौचालयों में से 80 प्रतिशत शौचालयों को जिओ टैग भी कर दिया गया है जिसे इन्टरनेट पर इस बात के सबूत के तौर पर देखा जा सकता है कि ये शौचालय वास्तव में बने हैं या नहीं। उन्होंने बताया कि सरकार अब दो गड्ढे वाले शौचालय बनाने का अभियान देश में शुरू किया जाएगा और ठोस कचरा प्रबंधन पर जोर दिया जाएगा। दो गड्ढ़े वाले शौचालय से कम्पोस्ट खाद बनेगा और कचरा शोधन से ऊर्जा भी बनेगी। उन्होंने बताया कि देश में बारह लाख टन कचरा उत्पन्न होता है जिसमे से 880 हजार टन ठोस कचरा होता है और 80 प्रतिशत गोबर होता है। गोबर से बिजली और गैस भी बनाई जाती है।

उन्होंने बताया कि ठोस कचरा प्रबंधन पर 15 और 16 फरवरी को दिल्ली में एक कार्यशाला भी होगी। अय्यर ने बताया कि स्वच्छता अभियान से जलजनित रोगों की रोकथाम होती है और हर साल एक लाख बच्चों की मौत होती है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति पर हर साल पचास हजार रुपए की बचत होती है जो रोगों के इलाज में खर्च होती है।


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