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विडो ऑफ विदर्भ : आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों पर केंद्रित कोटा नीलिमा की पुस्तक का विमोचन

कोटा नीलिमा की पुस्तक 'विडो ऑफ विदर्भ' का विमोचन शुक्रवार को बुक फेयर में किया गया

विडो ऑफ विदर्भ : आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों पर केंद्रित कोटा नीलिमा की पुस्तक का विमोचन
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नई दिल्ली। कोटा नीलिमा की पुस्तक 'विडो ऑफ विदर्भ' का विमोचन शुक्रवार को बुक फेयर में किया गया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि आज देश में किसानों की हालत बहुत खराब है और इस पुस्तक में भी उन घटनाओं का जिक्र किया गया है। पुस्तक में मृतक किसानों के परिवारों पर फोकस है, खासकर उनकी पत्नियों पर, जिन्हें उन्हीं हालातों में किसान के पूरे घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ी, जिसमें उसने आत्महत्या की थी। इस अवसर पर कोटा नीलिमा ने आईएएनएस से खास बातचीत में किताब और उसके विषय के बारे में जानकारी दी।

इस किताब को लिखने के पीछे क्या विचार है, क्या-क्या डेटा लिया गया है और किस तरह का विश्लेषण किया गया है, इस सवाल पर कोटा नीलिमा ने बताया, "यह किताब उन किसानों के परिवारों के बारे में है जिन्होंने आत्महत्या की है। आमतौर पर आप देखते हैं कि जब किसान आत्महत्या के बारे में बात होती है, तो किसान के बारे में ही बात होती है। लेकिन उस आत्महत्या के कारणों की सबसे ज्यादा जानकारी उनके परिवार के पास होती है, खासकर उनकी पत्नी के पास। मेरी इस किताब में इसी पर फोकस है कि किसान के चले जाने के बाद उनका परिवार उन मुश्किलों से कैसे गुजरता है, जिन कारणों से उस किसान को आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। खासकर उस किसान की पत्नी को ही इन सबका सामना करना होता है। वह किस तरह से अपना घर चलाती है और आर्थिक चुनौतियों का सामना करती है। इसके लिए हमने पिछले चार सालों से विदर्भ जैसे हिस्सों में किसान परिवारों के ऊपर रिसर्च की है। इस किताब में वह सब कुछ मिलेगा।"

उन्होंने आगे कहा, "विदर्भ में सर्वाधिक संख्या में किसानों ने आत्महत्या की हैं और पिछले चार सालों में हमने इस तरह के परिवारों को लगातार विजिट किया है। यह जानने के लिए कि मौजूदा मुश्किल स्थितियों में यह परिवार किस तरह से प्रतिक्रिया कर रहा है। उनका खर्च कितना रहता है, उन्हें कितना लोन लेना पड़ता है। यह हमने एक डेटा के रूप में एकत्रित किया है। इसके लिए उस महिला की जिंदगी की कहानी भी लिखी गई है, जो ऐसे हालातों में अपने घर को संभालने की जिम्मेदारी उठा रही है। वह खेती भी करती है, मजदूरी भी करती है, बच्चों और किसान के मां-बाप को भी संभाल रही है। महिला की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर क्या गुजर रहा है, इस किताब में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें कई महिलाएं बहुत मजबूत होकर निकलीं, खेती आगे बढ़ाई, व्यापार किया और इन सब हालातों का सामना किया। दूसरी ओर ऐसे भी उदाहरण हैं कि वह महिलाएं बिल्कुल खत्म हो गईं। देश जिस दौर से गुजर रहा है, यह कहानियां उसका एक आइना हैं।"

कोटा नीलिमा ने बताया कि वह काफी सालों से रिसर्च कर रही हैं। केवल विदर्भ में ही नहीं, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में कई जगह पर काफी सालों से रिसर्च किया है और यह उनकी चौथी किताब है। उन्होंने कहा कि इसमें हम यह देखते हैं कि कैसे सरकार के लिए किसान अब कोई महत्व नहीं रखता क्योंकि सरकार की पूरी दृष्टि बिजनेस और निवेश पर है। प्राइवेट कैपिटलिज्म और मार्केट ओरिएंटेड है। इसमें किसान कहीं खो जाता है। खेती को आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह सिर्फ किसान या खेती का नहीं, बल्कि पूरे देश का विषय है और हर सेक्टर पर इसका असर होगा।

किताब के लिए किस तरह से डाटा जुटाया गया है, इस सवाल पर बताया, "हमने प्राइमरी डाटा जुटाया है। इस प्रकार के डाटा में हम किसी थर्ड पार्टी पर निर्भर नहीं रहते हैं। उसमें सच्चाई और तथ्य बदलने की आशंका रहती है। प्राइमरी डाटा के लिए हम सीधे किसानों के परिवारों के पास गए और लगातार उनसे बातचीत की। इसलिए प्राथमिक डाटा बहुत जरूरी होता है। कई बार किसान की पत्नियां अपने बच्चों की बीमारी का खर्च उठाने के लिए स्थानीय साहूकार से मोटी ब्याज दर पर कर्ज लेने के लिए मजबूर होती हैं। वही बच्चा दो बार बीमार हो जाए, तो उनके पास किसी तरह का पैसा नहीं होता है।"

उन्होंने कहा कि सरकार के पास ऐसे आंकड़े नहीं हैं। ये आंकड़े हम जैसे व्यक्तिगत तौर पर रिसर्च करने वाले लोग जुटाते हैं। लेकिन यह वास्तव में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आम आदमी की मुश्किलों के बारे में जानें, तब जाकर उनका समाधान हो सकता है। बच्चों की बीमारी पर कर्ज किताब में एक उदाहरण है। इस किताब में ऐसे बहुत सारे प्राइमरी डाटा आपको मिलेंगे। हमने सेकेंडरी डाटा का भी इस्तेमाल किया है क्योंकि बाकी काफी लोगों ने इस फील्ड में अलग-अलग तरीके से काम किया है।"


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