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'हम स्वतंत्रता सेनानियों को कभी नहीं भूल सकते', ममता बनर्जी ने मोहन भागवत के बयान को किया खारिज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर सियासी घमासान मचा हुआ है कि राम मंदिर के प्रतिष्ठापन का दिन प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाया जाना चाहिए, क्योंकि इस दिन भारत ने "सच्ची स्वतंत्रता" हासिल की। इस बयान की विपक्ष के नेता कड़ी आलोचना कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उनके तर्क को खारिज कर दिया है

हम स्वतंत्रता सेनानियों को कभी नहीं भूल सकते, ममता बनर्जी ने मोहन भागवत के बयान को किया खारिज
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कोलकाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर सियासी घमासान मचा हुआ है कि राम मंदिर के प्रतिष्ठापन का दिन प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाया जाना चाहिए, क्योंकि इस दिन भारत ने "सच्ची स्वतंत्रता" हासिल की। इस बयान की विपक्ष के नेता कड़ी आलोचना कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उनके तर्क को खारिज कर दिया है।

मोहन भागवत ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को भारत की सच्ची स्वतंत्रता से जोड़ा था।

ममता बनर्जी ने कहा, "हमें आजादी का इतिहास भूलना नहीं चाहिए। भागवत ने जो कहा वह बहुत गलत है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देना चाहिए, जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी दी। अगर हम उनका योगदान और हमारे संघर्ष को भूल जाएंगे, तो हमें अपनी पहचान खो देनी होगी। मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि ऐसा कुछ कहा गया है। यह बहुत ही खतरनाक और गलत बात है। हमारी स्वतंत्रता और हमारे इतिहास को भूलना नहीं चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि देश की आजादी के लिए जिन्होंने अपनी जान दी, उन्हें हमेशा सलाम करना चाहिए। हम कभी भी अपने स्वतंत्रता सेनानियों को भुलने नहीं देंगे, क्योंकि यही हमारी पहचान है। भारत, हिंदुस्तान, और हमारा स्वतंत्रता दिवस हम सभी के लिए गर्व का विषय है। हम इसे हमेशा मनाएंगे और इस पर हमेशा गर्व करेंगे। हम देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने को तैयार हैं, लेकिन ऐसे बयानों को सहन नहीं किया जा सकता।

उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत ने 13 जनवरी को मध्य प्रदेश के इंदौर में कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दिन देश की सच्ची स्वतंत्रता प्रतिष्ठा हुई। उनके अनुसार, 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से राजनीतिक स्वतंत्रता मिलने के बाद उस विशिष्ट दृष्टि की दिखाई राह के मुताबिक लिखित संविधान बनाया गया, जो देश के ‘स्व' से निकलती है। लेकिन, यह संविधान उस वक्त इस दृष्टि भाव के अनुसार नहीं चला। भगवान राम, कृष्ण और शिव के प्रस्तुत आदर्श और जीवन मूल्य ‘भारत के स्व' में शामिल हैं और ऐसी बात नहीं है कि यह केवल उन्हीं लोगों के देवता हैं, जो उनकी पूजा करते हैं। आक्रांताओं ने देश के मंदिरों के विध्वंस इसलिए किए थे कि भारत का 'स्व' मर जाए।


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