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राजनयिकों के लिए भारत के कानूनी ढांचे, संसद की कार्यवाही और डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ आवश्यक : लोकसभा अध्यक्ष

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भारत में कार्यरत दुनिया के दूसरे देशों के राजनयिकों के लिए भारत के कानूनी ढांचे, संसद की कार्यवाही और भारत के डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ को आवश्यक बताया है

राजनयिकों के लिए भारत के कानूनी ढांचे, संसद की कार्यवाही और डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ आवश्यक : लोकसभा अध्यक्ष
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नई दिल्ली। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भारत में कार्यरत दुनिया के दूसरे देशों के राजनयिकों के लिए भारत के कानूनी ढांचे, संसद की कार्यवाही और भारत के डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ को आवश्यक बताया है।

संसद द्वारा पारित किए गए तीन नए आपराधिक कानूनों के विषय में जानकारी देने के लिए संसद भवन परिसर में संवैधानिक तथा संसदीय अध्ययन संस्थान (आईसीपीएस) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में 83 दूतावासों के 135 राजनयिकों एवं अधिकारियों को संबोधित करते हुए बिरला ने यह भी कहा कि ये तीनों नए आपराधिक कानून समकालीन समाज की चुनौतियों और आशाओं के अनुरूप हैं।

बिरला ने कहा कि टेक्नोलॉजी और अपराधों के स्‍वरूप में आए बदलावों के अनुरूप इन कानूनों का निर्माण किया गया है। भारत का कानून अंतिम व्यक्ति को न्याय का अधिकार देता है और आम जनता न्यायाधीश को भगवान के रूप में देखती है। न्याय पर जनता का अतिविश्वास है, जो 75 वर्षों की यात्रा में और अधिक मज़बूत हुआ है।

उन्होंने कहा कि आज के वैश्विक माहौल में एक-दूसरे देशों के कानूनी ढांचे और मूल्यों को समझना बहुत जरूरी है। इससे राजनयिक दक्षता और राष्ट्रों के बीच आपसी समझ बढ़ती है। लोकसभा अध्यक्ष ने कार्यक्रम में भाग ले रहे भारत में कार्यरत विभिन्न देशों के राजनयिकों को सुझाव दिया कि वे भारत के लीगल स्ट्रक्चर, संसद की कार्यवाही और भारत के डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ रखें।

उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्षों में हमारी विधायी प्रक्रिया में जनता का विश्वास लगातार बढ़ा है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती और शासन की बढ़ती जवाबदेही को दर्शाता है। विधायी कार्यों में पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता से यह विकास हुआ है। विधि निर्माताओं ने समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार काम किया है। अधिकारों की रक्षा करने वाले, न्याय को बढ़ावा देने वाले और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने वाले कानून बनाए हैं।

उन्होंने कहा कि यह बढ़ा हुआ विश्वास एक स्वस्थ लोकतंत्र को रेखांकित करता है। इन कानूनों में समाहित लैंगिक समानता को देश की व्यवस्था का आधार और संविधान की मूल अवधारणा बताते हुए बिरला ने कहा कि यह विशेषता दुनिया को मार्गदर्शन देती है। भारत ने हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान किया है और मानवाधिकारों का प्रबल पक्षधर रहा है। भारत की यह प्रतिबद्धता सुनिश्चित करती है कि कानून प्रत्येक नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता को बनाए रखने के लिए बनाए जाएं। लैंगिक समानता, पर्यावरण संरक्षण से लेकर सामाजिक कल्याण और भेदभाव विरोधी प्रगतिशील नीतियों तक, भारतीय कानून सशक्तिकरण के साधन के रूप में काम करते हैं।

भारत के मज़बूत आर्बिट्रेशन सिस्टम का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि आर्बिट्रेशन भारत की विरासत है, जिसे प्राचीन काल से ही लोग अपनाते और मानते आए हैं। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू. ललित ने भी कार्यक्रम में मौजूद प्रतिभागियों को संबोधित किया।


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