Top
Begin typing your search above and press return to search.

राजनीति में बुद्धिजीवियों की भूमिका स्थायी प्रतिपक्ष की : पंकज शर्मा

राजनीति में बुद्धिजीवियों की भूमिका केवल स्थायी प्रतिपक्ष की ही होती है

राजनीति में बुद्धिजीवियों की भूमिका स्थायी प्रतिपक्ष की : पंकज शर्मा
X

रायपुर। राजनीति में बुद्धिजीवियों की भूमिका केवल स्थायी प्रतिपक्ष की ही होती है। वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में यह अधिक चुनौतिपूर्ण इसलिए है कि वर्तमान सत्ता ने भारतीय जनमानस के एक बड़े हिस्से को भारत के विविधता से भरे समाज के प्रति असहिष्णु बनाया है और लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों सहित सभी शिक्षित तबके के ऊपर इसके खिलाफ जनमत बनाने का दायित्व है।

उपरोक्त विचार रायपुर जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पंकज शर्मा ने रविवार को अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन तथा ऑल इंडिया लायर्स एसोसिएशन के संयुक्त तत्वाधान में ‘वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में बुद्धिजीवियों की भूमिका’ विषय पर सत्यनारायण धर्मशाला में आयोजित सेमीनार में प्रकट किये। उन्होंने आगे कहा कि न केवल राजनीतिक परिस्थितियों की बल्कि समाज में व्याप्त विसंगतियों की भी भर्त्सना कठोर तथा ईमानदार निष्पक्षता के साथ करना ही आज की महती आवश्यकता है। उनके पूर्व बोलते हुए अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन की छत्तीसगढ़ इकाई के सचिव अरुण कान्त शुक्ला ने कहा कि युद्ध का न होना ही शान्ति नहीं है। मनुष्य को अच्छा जीवन जीने के लिए यथोचित आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थिति का न होना भी उसके लिए अशांति का कारण बनता है।

देश की सत्ता तथा राजनीति में आज साम्प्रदायिक ताक़तें उभार पर है और वे सभी मूल्य जो एक लोकतांत्रिक समाज तथा देश में आवश्यक हैं, उन पर चोट की जा रही है। यहाँ तक कि हमें उपलब्ध संवैधानिक अधिकारों पर भी हमले हो रहे हैं। उन्होंने फ्रेंच, अमेरिकन क्रांतियों तथा स्वयं अपने देश के स्वाधीनता आन्दोलन और क्रांतिकारी गतिविधियों का उल्लेख करते हुए कहा कि कई बड़े सामाजिक-राजनीतिक बदलावों के उत्प्रेरक और अगुवा बुद्धिजीवी ही रहे हैं।

आज हमारे देश के बुद्धिजीवियों पर ये दायित्व आया है कि प्रत्येक दमन का सामना करते हुए वे भारतीय जनमत को लोकतंत्र के मूल स्वरूप की पुनर्बहाली के लिये तैयार करें। सभा को रायपुर प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष डा. आलोक वर्मा, सीपीआई (एमएल) के साथी डा, विप्लोव बन्दोप्पाध्याय एवं विजयन तिवारी, लायर्स एसोसिएशन के ओ पी सिंह,एप्सो महासमुंद के प्रमोद तिवारी, सीपीआई के डा. सोम गोस्वामी एवं हिमांशु गोस्वामी तथा जन नाट्य मंच के निसार अली ने भी संबोधित किया।

सभी वक्ताओं ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की कि वर्त्तमान राजनीतिक सत्ता के आने के बाद से समाज के एक बड़े तबके में बुद्धिजीवी निंदा और कटाक्ष का विषय हैं। उनके लिए टुकड़े-टुकड़े गैंग और सिकुलर्स जैसे तमाम शब्द गढ़ लिए गए हैं। अब उनके लिये हाल ही में एक नया शब्द देश के उपराष्ट्रपति की तरफ से आया है छद्म बुद्धिजीवी।

सोशल मीडिया में उन पर कीचड़ उछाला जाता है। असल जिंदगी में भी उनके मुंह पर कालिख मलने की घटनाएं हो चुकी हैं। उन्हें जेल भेजने की मांग ही नहीं होती बल्कि सैकड़ों की संख्या में वे जेल में बिना सुनवाई बंद होते हैं।

गोविंद पानसारे, डा. नरेंद्र दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी, गौरी लंकेश जैसे बुद्धिजीवियों की तो हत्या तक हो चुकी है। सभा के प्रारंभ में निसार अली व साथियों के द्वारा एक जनगीत प्रस्तुत किया गया। अरुण कान्त शुक्ला ने सभी वक्ताओं तथा उपस्थिति श्रोताओं को सभा को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it