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महाकुंभ में भगदड़ की घटना दोबारा न हो, सरकार को सीख लेनी चाहिए: कांग्रेस नेता राजेश ठाकुर

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से आयोजित भव्य महाकुंभ में बुधवार को मौनी अमावस्या पर होने वाले अमृत स्नान से पहले भगदड़ मच गई। हादसे में कई लोगों के घायल होने की खबर है

महाकुंभ में भगदड़ की घटना दोबारा न हो, सरकार को सीख लेनी चाहिए: कांग्रेस नेता राजेश ठाकुर
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रांची। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से आयोजित भव्य महाकुंभ में बुधवार को मौनी अमावस्या पर होने वाले अमृत स्नान से पहले भगदड़ मच गई। हादसे में कई लोगों के घायल होने की खबर है। इस घटना को लेकर झारखंड कांग्रेस नेता राजेश ठाकुर ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बात की।

उन्होंने कहा, "देखिए, यह बहुत दुखद घटना है। सरकार को चाहिए कि इस घटना से सबक लें और कोशिश करे कि इस तरह की घटना दोबारा न हो। मैं समझता हूं कि योगी सरकार द्वारा जिस तरह से लगातार बड़ी-बड़ी बातें की जा रही थीं, उसके विपरीत जब इस तरह की घटना होती है तो निश्चित रूप से सभी का मन दुखी होता है। क्योंकि, महाकुंभ में लोग आस्था की डुबकी लगाने जा रहे हैं, कोई भी वहां पर यह सोचकर नहीं जाता है कि हम मौत की डुबकी लगाएंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने विज्ञापन पर जिस तरह से हजारों करोड़ रुपए खर्च किए, अगर व्यवस्था को दुरुस्त बनाने पर खर्च किए जाते तो बात ही कुछ और होती।"

कांग्रेस नेता ने आम लोगों की परेशानियों पर बात की।

बोले, "महाकुंभ में आने वाले लोगों को 20 किलोमीटर चलकर संगम तक आना पड़ता है। लेकिन, वीवीआईपी मूवमेंट की वजह से लोगों को रोक दिया जाता है। इससे उनकी आस्था पर ठेस पहुंचाने का काम किया जा रहा है। जो श्रद्धालु संगम पर जाना चाहते हैं, वह घंटों रुकने की वजह से घबराने लगते हैं। यह जो भगदड़ हुई है, इसके पीछे क्या कारण रहे, पूरी जांच होनी चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए, जिससे दोबारा इस तरह की घटना न हो।"

वक्फ पर जेपीसी की बैठक पर कांग्रेस नेता राजेश ठाकुर ने कहा, "जेपीसी की प्रासंगिकता तब समाप्त हो गई जब बिल के संशोधनों में विपक्ष के सदस्यों के सुझावों पर विचार नहीं किया गया और केवल सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों के विचारों को स्वीकार किया गया। यह उसी समय स्पष्ट हो गया और उसके तुरंत बाद ही विपक्ष के सदस्यों को बैठक से बाहर निकाल दिया गया। उससे पहले, अन्य लोगों को जबरन हस्तक्षेप करने के लिए बुलाया गया। जेपीसी के गठन का मतलब सभी दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करना था, लेकिन ये उस समय अप्रासंगिक हो गया जब सत्ताधारी पार्टी ने अपना एजेंडा थोपना चाहा।


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