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रुद्रप्रयाग जिले के शहर गुप्तकाशी में विराजमान है सुप्रसिद्ध अर्धनारीश्वर मंदिर

उत्तराखंड के जिला रुद्रप्रयाग के शहर गुप्तकाशी में एक मंदिर विख्यात है जिसका नाम है विश्वनाथ मंदिर

रुद्रप्रयाग जिले के शहर गुप्तकाशी में विराजमान है सुप्रसिद्ध अर्धनारीश्वर मंदिर
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रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड के जिला रुद्रप्रयाग के शहर गुप्तकाशी में एक मंदिर विख्यात है जिसका नाम है विश्वनाथ मंदिर। यह मंदिर समुद्रतट से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के पवित्र धाम केदारनाथ से गुप्तकाशी मात्र 47 किमी नीचे की ओर स्थित है। यह शहर उत्तराखंड का पवित्र शहर है यह मंदाकिनी नदी के समीप स्थित है। यहां कई प्राचीन मंदिर है। जिनके दर्शन करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं पर्यटक आते है। इस शहर के प्राचीन मंदिरों का संबंध महाभारत काल से है। यहां तक कि इसे अपना नाम भी पांडवों से मिला है जोकि महाभारत ग्रंथ में वीर योद्धा थे । यहां पर विश्वनाथ मंदिर और अर्धनारीश्वर मंदिर सुप्रसिद्ध है। यह शहर बर्फीली पहाड़ियों, हरियाली, सांस्कृतिक विरासत और चौखंबा पहाड़ियों के सुहावने मौसम से घिरा हुआ है। पर्यटकों के लिए यह शहर एक परफेक्ट हॉलीडे डेस्टिनेशन है।

पौराणिक कथा अनुसार कौरवों और पांडवों में जब युद्ध हुआ कुरुक्षेत्र में हरियाणा के अंदर तो वहां पर पांडवों ने कई व्यक्तियों को और अपने भाइयों का भी वध कर दिया था तो उसी वध के कारण उन्हें बहुत सारे दोष लग गए थे। पांडवों को उन्हीं दोषों के निवारण करने के लिए भगवान शिव से माफी मांग उनका आशीर्वाद लेना था, लेकिन वह पांडवों से रुष्ठ हो गए थे क्योंकि उस युद्ध के दौरान पांडवों ने भगवान शिव के भी भक्तों का वध कर दिया था। उन्हीं दोषों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने पूजा अर्चना की और भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए निकल पड़े। भगवान शिव हिमालय के इसी स्थान पर ध्यान मग्न थे और जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे है तो वह यहीं बैल नंदी का रूप धारण कर अंतध्र्यान हो गए या यूं कहें गुप्त हो गए इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा। यह मंदिर उन्हीं का प्रतीक है।

इसके बाद भगवान शिव विलुप्त हो करके पंचकेदार यानि मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, कल्पेश्वर और केदारनाथ में अनेकों भागों में प्रकट हुए। इसलिए इस मंदिर की भी उतनी ही मान्यता है जितनी कि पंचकेदार की। यहां एक अन्य मंदिर स्थित है अर्धनारीश्वर यानि आधा पुरूष, आधा नारी। यह भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव यहीं रखा था और उसके ततपश्चात विवाह त्रियुगीनारायण में सम्पन्न हुआ।

इस मंदिर की स्थापत्य शैली उत्तराखंड में अन्य मंदिरों के समान है, केदारनाथ मंदिर जैसा ही यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर दो द्वारपाल है और बाहरी मुखौटा कमल के साथ चित्रित किया गया है। प्रवेश द्वार के सर्वोच्च पर भैरव की एक छवि है, जो कि भगवान शिव का एक भयानक रूप है। मंदिर परिसर में एक कुंड है जिसे मणिकर्णिका कुंड कहा जाता है। जो कि एक पवित्र कुंड है। जहां दो जल धाराएं सदैव बहती रहती है। इस कुंड का जल गंगा (भागीरथी) और यमुना नदी का प्रतिनिधित्व करती है। यमुना नदी का पानी गोमुख से उत्पन्न होता है और भागीरथी नदी का पानी रणलिंग से हाथी के सूंड से बहता है। भगवान विश्वनाथ जी का यह मंदिर बहुत ही सुंदर है साथ में अर्धनारीश्वर मंदिर है और बाहर विराजमान है नंदिदेव ।

यहां हवाई जहाज, रेल व सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। हवाई जहाज द्वारा गुप्तकाशी के लिए 190 किमी की दूरी - पर जॉली ग्रांट एयरपोर्ट नजदीकी हवाई अड्डा है। बाकी की दूरी आपको बस एवं कैब से तय करनी होगी।

रेल मार्ग द्वारा गुप्तकाशी के लिए 168 किमी की दूरी पर स्थित ऋषिकेश रेलवे स्टेशन नजदीक है और गुप्तकाशी तक पहुंचने के लिए आपको बाहरी टर्मिनल से बस या टैक्सी आसानी से मिल जाएगी।

सड़क मार्ग द्वारा एनएच 109 से होकर कई बसें एवं टैक्सी की सुविधा गुप्तकाशी के लिए उपलब्ध है।


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