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सीएजी रिपोर्ट से हेमंत सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन और लूट की कहानी सामने आई : बाबूलाल मरांडी

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि राज्य की विभिन्न योजनाओं को लेकर आई सीएजी रिपोर्ट से हेमंत सोरेन सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन, लूट और भ्रष्टाचार की कहानी सामने आ गई है

सीएजी रिपोर्ट से हेमंत सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन और लूट की कहानी सामने आई : बाबूलाल मरांडी
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रांची। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि राज्य की विभिन्न योजनाओं को लेकर आई सीएजी रिपोर्ट से हेमंत सोरेन सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन, लूट और भ्रष्टाचार की कहानी सामने आ गई है।

उन्होंने कहा कि इस सरकार का पिछला पांच साल का कार्यकाल नाकामियों से भरा रहा है। उन्होंने राज्य सरकार से अपने अब तक के कामकाज पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मार्च 2022 तक, चिकित्सा अधिकारियों और विशेषज्ञों के 3,634 स्वीकृत पदों में से 2,210 पद खाली रह गए, जो कुल आवश्यकता का 6 प्रतिशत है। ऑडिट में झारखंड के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा अधिकारियों, स्टाफ नर्सों और पैरामेडिक्स की भारी कमी का खुलासा हुआ है। इसके अलावा, आवश्यक दवाओं की गंभीर कमी का भी पता चला। 2020-21 और 2021-22 के बीच, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में 65 प्रतिशत से लेकर 95 प्रतिशत तक आवश्यक दवाओं की कमी पाई गई।

उन्होंने कहा कि सबसे शर्मनाक स्थिति कोविड प्रबंधन को लेकर रही। सीएजी ने पाया है कि भारत सरकार ने कोविड प्रबंधन के लिए 483.54 करोड़ रुपये विमुक्त किए थे, इस राशि के विरुद्ध झारखंड सरकार को अपने हिस्से की 272.88 करोड़ की राशि विमुक्त करनी थी। कुल प्रावधान 756.42 के विरुद्ध राज्य सरकार ने केंद्रीय राशि का 291.87 करोड़ और राज्य का 145.10 करोड़ ही विमुक्त किया, यानी कुल 436.97 करोड़ का ही उपयोग किया। यह कुल जारी राशि का महज 32 प्रतिशत था।

भाजपा नेता ने रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आगे कहा कि कोविड-19 प्रबंधन निधि की राशि का समुचित उपयोग नहीं किए जाने के कारण जिला स्तर पर आरटीपीसीआर प्रयोगशालाएं, रांची में शिशु चिकित्सा उत्कृष्टता केंद्र, सीएचसी, पीएचसी, एचएससी में पूर्व निर्मित संरचनाएं एवं तरल चिकित्सा ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना नहीं हो पाई। कोविड अवधि के दौरान जिला प्रयोगशालाएं स्थापित नहीं हुईं, इस कारण जिलाधिकारियों को एकत्र किए गए सैंपल को दूसरे जिलों में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा।

मरांडी ने 19,125 करोड़ की राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र दिए जाने को गंभीर मामला बताते हुए कहा कि इससे भ्रष्टाचार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।


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