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सिख दंगे को आरोपियों को सजा मिलने से सिखों का दर्द हुआ कम : रवनीत सिंह बिट्टू

राउज एवेन्यू कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक अहम मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी करार दिया

सिख दंगे को आरोपियों को सजा मिलने से सिखों का दर्द हुआ कम : रवनीत सिंह बिट्टू
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नई दिल्ली। राउज एवेन्यू कोर्ट ने बुधवार को 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक अहम मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी करार दिया।

पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को दोषी ठहराए जाने पर केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि आज 1984 के दंगों के दोषियों को सजा मिलने से कई सिखों का दर्द कम हुआ है। मैं अदालतों और खासकर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, जिन्होंने इन मामलों को फिर से खोला है, जिन्हें पहले कांग्रेस सरकार, खासकर गांधी परिवार ने बंद कर दिया था।

वहीं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने कहा कि आज का दिन पंजाबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अदालत ने 1984 में सिखों के नरसंहार और नरसंहार के मास्टरमाइंड सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है। सरस्वती विहार के दो सिखों के कत्ल के मामले में 40 साल बाद न्याय मिला है। देर से ही सही पर न्याय मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से साल 2014 में कमीशन बनाया गया। उसका नतीजा यह है कि थानों में पड़ी हुई फाइलें निकलीं और उन पर कार्रवाई शुरू हुई। वहीं कांग्रेस के नेता मौत का तांडव करने वाले अपने नेताओं को बचाने के लिए काम करते रहे। दंगों के दौरान चुन-चुन कर सिखों के घर जलाए गए, उनकी दुकानें जलाई गईं। यहां तक कि उन्हें जिंदा जलाया गया।

दोषियों को सजा देने के बजाय कांग्रेस पार्टी ने आरोपियों को केवल बचाने का काम किया। उनको पोषित करने के साथ महामंडित करती रही। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने सदन के पटल पर खड़े होकर कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है. यानी सिखों के कत्ल को उन्होंने सही ठहराया था। मैं प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने 2014 में मामले की जांच शुरू कराई।

राउज एवेन्यू कोर्ट ने सज्जन कुमार को इस हत्याकांड में दोषी ठहराया है। अब उनकी सजा पर 18 फरवरी को बहस होने वाली है। 18 फरवरी को अदालत इस पर विचार करेगी कि सज्जन कुमार को कितनी सजा दी जाए।

दरअसल, 1 नवंबर 1984 को दिल्ली के सरस्वती विहार क्षेत्र में जब हिंसा भड़की थी, तब जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस दौरान सिखों का नरसंहार हुआ था और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। 1984 के दंगों में सिख समुदाय के हजारों लोगों को निशाना बनाया गया था।


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