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शैक्षिक संस्थान खोलना, अल्पसंख्यकों का संवैधानिक अधिकार : राशिद अल्वी

कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने सोमवार को कहा कि संविधान ने इस देश के सभी अल्पसंख्यकों को यह अधिकार दिया है कि वे अपने मुताबिक मदरसे, स्कूल और कॉलेज खोलें। न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को पूरा अधिकार है कि वे मजहबी तालीम दे सकें

शैक्षिक संस्थान खोलना, अल्पसंख्यकों का संवैधानिक अधिकार : राशिद अल्वी
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नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने सोमवार को कहा कि संविधान ने इस देश के सभी अल्पसंख्यकों को यह अधिकार दिया है कि वे अपने मुताबिक मदरसे, स्कूल और कॉलेज खोलें। न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को पूरा अधिकार है कि वे मजहबी तालीम दे सकें।

उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड के मदरसों में आगामी शिक्षा सत्र से बच्चों को तहतानिया और फौकानिया की पढ़ाई नहीं कराए जाने के फैसले पर राशिद अल्वी ने सवाल उठाए। बोले, "यह हठधर्मी है। इसका मतलब तो साफ हुआ कि आपके पास शक्ति है, तो आप इसका दुरुपयोग कर रहे हैं।"

यूसीसी को लेकर भी अपनी वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा, "यूसीसी पर लंबे समय से बहस चल रही है। अभी तक हमें नहीं मालूम है कि केंद्र सरकार क्या चाहती है। उत्तराखंड और गोवा में इसे लागू कर दिया गया है। लेकिन, हमारा सवाल है कि इसे अभी तक पूरे देश में क्यों नहीं लागू किया गया है? आप लोगों को विश्वास में लीजिए। उन्हें बताइए कि हम देशभर में यूसीसी लागू करने जा रहे हैं और हमने इस दिशा में पूरी रूपरेखा निर्धारित कर ली है।"

उन्होंने आगे यूसीसी को लेकर पक्षपात का भी जिक्र किया। बोले, "गोवा में जिस यूसीसी को लागू किया गया है, जिसकी दुहाई भाजपा दे रही है। इसके मुताबिक, अगर कोई हिंदू महिला कुछ अर्से तक लड़का पैदा नहीं कर पाती है, तो उसके पति को दूसरी शादी का हक दिया गया है। वहीं, अगर कोई महिला लंबे समय तक बच्चा पैदा नहीं कर पाती है, तो भी उसके पति को दूसरी शादी का हक है। लेकिन, यह हक ईसाई और मुस्लिम को नहीं दिया गया है। यह कैसा यूसीसी है?"

उन्होंने कहा कि आर्टिकल 44 यह कहता है कि सरकार को चाहिए कि वो यूसीसी को लागू करने की दिशा में कोशिश करे। यह नहीं कहता है कि इसे जबरन लागू किया जाए। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि बिना विश्वास में लिए आप इसे लागू कर देंगे। हम लोग इस तरह की स्थिति को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आज की तारीख में न्यायपालिका की बदहाली से हम सभी वाकिफ हैं। आखिर क्यों नहीं आप डायरेक्टिव प्रिंसिपल के आर्टिकल 50 को लागू करते हैं।


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