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कोई न्यायालय सबऑर्डिनेट नहीं, शब्दों में बदलाव जरूरी : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को न्यायपालिका के संदर्भ में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। उपराष्ट्रपति का कहना है कि न्यायपालिका हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसमें सबऑर्डिनेट शब्द की कोई जगह नहीं है। कोई भी न्यायालय सबऑर्डिनेट नहीं, इसमें बदलाव होना चाहिए

कोई न्यायालय सबऑर्डिनेट नहीं, शब्दों में बदलाव जरूरी : उपराष्ट्रपति
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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को न्यायपालिका के संदर्भ में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। उपराष्ट्रपति का कहना है कि न्यायपालिका हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसमें सबऑर्डिनेट शब्द की कोई जगह नहीं है। कोई भी न्यायालय सबऑर्डिनेट नहीं, इसमें बदलाव होना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जब मजिस्ट्रेट या जिला जज फैसला लिखता है, उनके मन में एक शंका रहती है कि मेरे फैसले पर क्या टिप्पणी होगी। वह फैसला उसके भविष्य को निर्वहन करता है।”

उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि कॉर्पोरेट्स को लोकल अदालतों में इन्वेस्ट करना चाहिए। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि उद्योगपति एवं कॉर्पोरेट समूहों को अन्य संस्थानों को प्रदान की जाने वाली सहायता की तर्ज पर न्यायपालिका के कार्यान्वयन में भी सहायता प्रदान करनी चाहिए।

अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कॉर्पोरेट्स के पास सीएसआर फंड है और उनको लोकल अदालतों में इन्वेस्ट करना चाहिए। उपराष्ट्रपति रविवार को राजस्थान के जयपुर में एआईआर पुस्तकालय के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि अधिवक्ता संघ को संबोधित कर रहे थे।

संसद में कानून पारित कर नागरिक संहिता में हुए परिवर्तन पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना बताया। उन्होंने इसे दंड विधान से न्याय विधान की यात्रा बताते हुए कहा कि लंबे समय की मांग के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन कानूनों को निरस्त किया गया है, जो नए वकीलों के लिए एक वरदान है।

भारतीय न्याय संहिता सहित तीन कानूनों के पारित होते समय राज्यसभा के सभापति के रूप में स्वयं की उपस्थिति के अनुभवों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक बहुत शक्तिशाली समिति ने इन कानूनों के प्रत्येक प्रावधान पर विचार किया।

उन्होंने इसके साथ ही यह भी कहा कि सरकार ने इस बदलाव में गहराई से जांच की है तथा तकनीक की मदद से प्रत्येक प्रावधान की पृष्ठभूमि को बारीकी से देखा गया है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “किसी भी देश तथा किसी भी सभ्यता का आकलन उसकी न्याय व्यवस्था से होता है।” उन्होंने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय से लेकर नीचे तक हमारी न्यायपालिका बुद्धिमत्ता, प्रतिबद्धता, अखंडता के साथ कार्य करती है।"


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