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हजारों वर्ष की परंपरा को नई ऊंचाई की ओर लेकर जाएगा 'काशी तमिल संगमम्' : सीएम योगी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को ध्यान में रखकर उनकी सरकार ने जिस कार्यक्रम को बढ़ाया, उसका परिणाम है कि महाकुंभ में लगभग 51 करोड़ श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में डुबकी लगाकर देश की आस्था को एकता के संदेश के साथ जोड़ने का कार्य किया है

हजारों वर्ष की परंपरा को नई ऊंचाई की ओर लेकर जाएगा काशी तमिल संगमम् : सीएम योगी
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वाराणसी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को ध्यान में रखकर उनकी सरकार ने जिस कार्यक्रम को बढ़ाया, उसका परिणाम है कि महाकुंभ में लगभग 51 करोड़ श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में डुबकी लगाकर देश की आस्था को एकता के संदेश के साथ जोड़ने का कार्य किया है।

मुख्यमंत्री ने वाराणसी के नमो घाट पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री एल. मुरुगन के साथ 'काशी तमिल संगमम्' के तीसरे संस्करण का शुभारंभ किया। सीएम योगी ने काशी की धरती पर तमिल भाषा में अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने यहां केंद्रीय मंत्रियों और आगंतुकों के साथ फोटो खिंचवाई, प्रदर्शनी का अवलोकन किया, पुस्तकों का विमोचन किया और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद उठाया।

उन्होंने कहा कि महाकुंभ में जाति-पाति, क्षेत्र का भेद नहीं है, बल्कि "एक भारत-श्रेष्ठ भारत" की परिकल्पना और मां गंगा का आशीर्वाद लेते हुए देश के अलग-अलग कोने से आकर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। इस बार महाकुंभ के आयोजन के साथ 'काशी तमिल संगमम्' को भी जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। 'काशी तमिल संगमम्' हजारों वर्ष की परंपरा को नई ऊंचाई की ओर लेकर जाएगा।

सीएम योगी ने कहा कि पीएम मोदी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में लगातार तीसरी बार बाबा विश्वनाथ की धरा पर 'काशी तमिल संगमम्' हो रहा है। यह 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' के पीएम मोदी के विजन को आगे बढ़ाने के महायज्ञ का भाग है। पहले दो संस्करण कार्तिक मास में हुए थे। उनकी भी अपनी महत्ता थी। तृतीय संस्करण इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन 'महाकुंभ प्रयागराज' में हो रहा है।

सीएम ने कहा कि इस बार की थीम चार एस पर आधारित है। भारत की संत परंपरा, साइंटिस्ट, समाज सुधारक, स्टूडेंट को मिलाकर महर्षि अगस्त्य को ध्यान में रखकर इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की थीम के साथ यह आयोजन चल रहा है। महर्षि अगस्त्य के बारे में मान्यता है कि वह उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाले ऋषि हैं। एक तराजू में महर्षि अगस्त्य को रख दें और दूसरे तराजू में उत्तर भारत की ज्ञान की धरोहर को रखेंगे तो अगस्त्य ऋषि का विराट स्वरूप दिखेगा। महर्षि अगस्त्य भारत की दो महत्वपूर्ण परंपराओं काशी और तमिल के माध्यम से उत्तर से दक्षिण, संस्कृत और तमिल को आपस में जोड़ने का सशक्त माध्यम भी रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि महर्षि ने हजारों वर्ष पहले उत्तर से दक्षिण में जाकर अभिनंदनीय कार्य किया था। उन्होंने भगवान राम को मां सीता की खोज के लिए प्रेरणा प्रदान की थी और राम-रावण युद्ध में आदित्यहृद्य स्रोत का मंत्र दिया था। हजारों वर्ष पहले से महर्षि के बारे में श्रद्धा को जो भाव तमिल के घर-घर में है, वही भाव काशी-उत्तराखंड में है। अगस्त्य मुनि के नाम पर उत्तराखंड में एक स्थल है और यहां भी अगस्त्य ऋषि के नाम पर कई मंदिर जुड़े हैं, जो हमें प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अलग-अलग क्षेत्र के लोग 'काशी तमिल संगमम्' के माध्यम से 24 फरवरी तक जुड़ने जा रहे हैं। उन्हें महाकाशी के साथ-साथ प्रयागराज की त्रिवेणी में महास्नान और अयोध्या में रामलला के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा। इस कार्यक्रम का हिस्सा छात्र, शिक्षक, शिल्पकार, साहित्यकार, संत, उद्योग जगत, व्यवसाय, देवालय, इनोवेशन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और संस्कृति से जुड़े लोग भी होंगे।

उन्होंने कहा कि देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन को आगे बढ़ाया था। उत्तर को दक्षिण, पूरब को पश्चिम, बाबा विश्वनाथ धाम को रामेश्वरम के पवित्र ज्योर्तिलिंग से जोड़ने और इस प्राचीन धरोहर को एकता के जरिए 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' के आयोजन को आगे बढ़ाने का जो कार्यक्रम सैकड़ों वर्ष पहले केरल से निकले संन्यासी आदि शंकराचार्य ने किया था, आज वही कार्य पीएम मोदी के नेतृत्व में 'काशी तमिल संगमम्' करने जा रहा है।

सीएम योगी ने कहा कि काशी की महत्ता जगजाहिर है। यह प्राचीन काल से भारत की आध्यात्मिक, ज्ञान और धरोहर की नगरी के रूप में विख्यात रही है। तमिल साहित्य दुनिया के प्राचीनतम साहित्यों में से एक है। महर्षि अगस्त्य ने संस्कृत के साथ तमिल व्याकरण की उस परंपरा को बढ़ाया।


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