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गुजरात के किसान अनिलभाई पटेल ने बनाई आलू हार्वेस्टर मशीन, किसानों को होगा बड़ा फायदा

गुजरात का उत्तर क्षेत्र आलू की खेती के लिए प्रमुख हब माना जाता है। बनासकांठा, अरवल्ली और साबरकांठा जिलों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है

गुजरात के किसान अनिलभाई पटेल ने बनाई आलू हार्वेस्टर मशीन, किसानों को होगा बड़ा फायदा
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अरवल्ली (गुजरात)। गुजरात का उत्तर क्षेत्र आलू की खेती के लिए प्रमुख हब माना जाता है। बनासकांठा, अरवल्ली और साबरकांठा जिलों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है। हालांकि, आलू की बुआई के बाद खुदाई (हार्वेस्टिंग) सबसे बड़ी चुनौती होती है। इसी समस्या को हल करने के लिए अरवल्ली जिले के धनसुरा तालुका के भेंसावाड़ा गांव के प्रगतिशील किसान अनिलभाई पटेल ने एक विशेष आलू हार्वेस्टर मशीन तैयार की है।

'वोकल फॉर लोकल' और 'मेक इन इंडिया' अभियान को आगे बढ़ाते हुए अनिलभाई ने लगातार तीन वर्षों की मेहनत और गहन अध्ययन के बाद यह मशीन तैयार की। इस हार्वेस्टर मशीन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम समय में बिना अधिक मजदूरों के आलू निकाल सकती है।

अनिलभाई पटेल ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि वह खुद भी एक किसान हैं। उन्होंने कहा कि आलू को निकालने के समय मजदूर नहीं मिलते हैं, जिस वजह से आलू खराब होने लगता है और किसानों को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि हमने खुद एक मशीन तैयार की है, जिसे चलाने के लिए ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है। उनका कहना है कि यह मशीन जल्द ही अन्य किसानों के लिए भी उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि वे भी इस तकनीक का लाभ उठा सकें।

अनिलभाई पटेल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' और 'मेक इन इंडिया' दृष्टिकोण से प्रेरित होकर यह हार्वेस्टर मशीन बनाई गई है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर लाभ मिल सके। यह मशीन न केवल आलू किसानों के श्रम और समय की बचत करेगी, बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता भी बनाए रखेगी, जिससे उन्हें बाजार में अधिक लाभ मिल सकेगा। गुजरात के अन्य किसान भी इस मशीन को अपनाने के लिए उत्साहित हैं।

यह मशीन आलू को जमीन से सीधे ग्रेडिंग मशीन तक ले जाती है, जिससे कम मजदूरों की आवश्यकता होती है। मशीन की तकनीक के कारण आलू को गर्मी के संपर्क में कम समय रहना पड़ता है, जिससे उसका वजन और गुणवत्ता बनी रहती है। पारंपरिक तरीकों की तुलना में तेज गति से अधिक मात्रा में आलू निकाल सकती है। अनिलभाई पटेल ने इस मशीन को बनाने में करीब 10 लाख रुपये खर्च किए। इस मशीन को पहले उनके अपने खेत में और फिर अन्य किसानों के खेतों में भी आजमाया गया, जहां इसे बेहद सफल पाया गया।


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