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झारखंड में एनडीए और ‘इंडिया’ के बीच चुनावी संग्राम का आगाज, दोनों पक्ष आमने-सामने

एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच सत्ता के लिए चुनावी संग्राम का औपचारिक तौर पर आगाज हो जाएगा। हालांकि इसके लिए दोनों पक्ष की ओर से पहले ही जोरदार मोर्चेबंदी शुरू हो चुकी है

झारखंड में एनडीए और ‘इंडिया’ के बीच चुनावी संग्राम का आगाज, दोनों पक्ष आमने-सामने
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रांची, इसके साथ ही राज्य में एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच सत्ता के लिए चुनावी संग्राम का औपचारिक तौर पर आगाज हो जाएगा। हालांकि इसके लिए दोनों पक्ष की ओर से पहले ही जोरदार मोर्चेबंदी शुरू हो चुकी है।

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली मौजूदा गठबंधन सरकार पहली गैर भाजपा सरकार है, जिसने पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया है। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने की वजह से हेमंत सोरेन पांच महीने सीएम की कुर्सी से दूर जरूर रहे, लेकिन उनके नेतृत्व वाले झामुमो, कांग्रेस, राजद गठबंधन की सत्ता बरकरार रही।

राज्य में वर्ष 2019 में जब चुनाव हुए थे, तब यहां की सत्ता पर रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व वाला भाजपा-आजसू गठबंधन काबिज था। यह राज्य की पहली सरकार थी, जो पूरे पांच साल तक चली थी। आत्मविश्वास से लबरेज भाजपा को सत्ता में दूसरी बार वापसी का भरोसा था। 81 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में पार्टी ने ‘अबकी बार 65 पार’ का नारा दिया था, लेकिन तब हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन ने राज्य की 47 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब हेमंत सोरेन की सरकार को सीपीआई एमएल और एनसीपी के दो विधायकों ने बाहर से समर्थन दिया था। हालांकि बाद में एनसीपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था।

इस चुनाव में भाजपा और आजसू का गठबंधन बरकरार नहीं रह पाया था। सीट शेयरिंग के मामले में समझौता नहीं होने के कारण दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थी। भाजपा ने 25 और आजसू ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 में से 26 सीटों पर भाजपा की हार को उसके सत्ता से बेदखल होने का मुख्य कारण माना गया था। इस बार भाजपा का आदिवासी सीटों पर खास फोकस है। आदिवासी बहुल कोल्हान और संथाल परगना प्रमंडल में चुनाव को लक्ष्य कर पार्टी कई महीनों से आक्रामक अभियान चला रही है। उसने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ, धर्मांतरण, मौजूदा सरकार की नाकामियों और भ्रष्टाचार के मामलों को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है। पिछली हार से सबक लेते हुए भाजपा ने इस बार आजसू, जदयू और लोजपा को भी चुनावी गठबंधन में साझेदार बनाया है।

दूसरी तरफ झामुमो-कांग्रेस-राजद का सत्तारूढ़ गठबंधन भी लोकसभा चुनाव के बाद से ही विधानसभा चुनाव को फोकस कर अभियान में जुटा है। चुनाव के ठीक पहले महिलाओं को आर्थिक मदद देने वाली ‘मंईयां सम्मान योजना’ सहित 200 यूनिट मुफ्त बिजली, किसानों के दो लाख तक के ऋण की माफी, आदिवासियों-दलितों को 50 साल की उम्र से पेंशन जैसी लोकलुभावन योजनाओं का आकर्षण दिखाकर यह गठबंधन सत्ता बरकरार रखने की जंग लड़ने को तैयार है। इस बार चुनावी गठबंधन में वाम दलों को भी साथ लेकर चलने पर सहमति बनी है।

कुल मिलाकर, दोनों पक्षों की मोर्चेबंदी के बीच यहां दिलचस्प चुनावी मुकाबले के आसार हैं।


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