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आपदा का सीधा रिश्ता जलवायु परिवर्तन से है : अमित शाह

ज्यसभा में मंगलवार को आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 पर चर्चा हुई। चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि आपदा का सीधा रिश्ता जलवायु परिवर्तन से है

आपदा का सीधा रिश्ता जलवायु परिवर्तन से है : अमित शाह
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नई दिल्ली। राज्यसभा में मंगलवार को आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 पर चर्चा हुई। चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि आपदा का सीधा रिश्ता जलवायु परिवर्तन से है। ऐसे में आपदा न आए, इसके लिए सबसे अच्छी व्यवस्था यह है कि जलवायु परिवर्तन को हम नियंत्रण में रखें।

अमित शाह ने बताया कि आपदा प्रबंधन विधेयक में संशोधन से संघीय ढांचे पर कोई चोट नहीं पहुंचती है। इससे सत्ता का केंद्रीकरण नहीं होता है। जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन उपाय लागू करने के लिए और अधिक शक्ति मिलती है।

चर्चा में कई सांसदों ने आरोप लगाया था कि इन संशोधनों से संघीय ढांचे को चोट पहुंचती है। इन आरोपों को लेकर गृह मंत्री ने कहा कि इसमें सत्ता के केंद्रीकरण का कोई विषय ही उपस्थित नहीं होता है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो 10 सूत्री एजेंडा विश्व के सामने रखा है, उसे 40 से अधिक देशों ने स्वीकार किया है। आपदा प्रबंधन एक प्रकार से केंद्र और राज्य दोनों का विषय है, इसीलिए कई सदस्यों ने चिंता जताई कि इससे सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है।

गृह मंत्री ने कहा कि यह एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें न केवल केंद्र और राज्य सरकार बल्कि पंचायत और हर एक नागरिक को जोड़ने की सरकार की मंशा है। उन्होंने कहा कि आज जो यह बात पीएम मोदी कर रहे हैं, वह आज की नहीं है, हजारों वर्षों से देश इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

उन्होंने कहा कि यज्ञ के माध्यम से प्रकृति को अक्षुण्ण रखने की बात हो या फिर यजुर्वेद के अंदर वर्णित शांति पाठ की, इसमें जो शांति की बात कही गई है, वह केवल मानव तक सीमित नहीं है, बल्कि पृथ्वी, जल, पशु, जड़ी-बूटी, वनस्पति, पेड़-पौधे, यहां तक कि अंतरिक्ष की शांति की हम प्रार्थना करते हैं ताकि जलवायु का संरक्षण हो सके। यजुर्वेद के समय से हमने प्रकृति और मनुष्य का परस्पर संबंध स्वीकार किया है। हड़प्पा की सभ्यता हो या सिंधु सभ्यता, पुरानी नगर रचनाओं को देखते हैं तो आपदा प्रबंधन के बहुत विशिष्ट प्रयास इसके अंदर दिखते हैं। मौर्य साम्राज्य को भी पहली हाइड्रोलिक सभ्यता के रूप में सब लोग स्वीकार करते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे यहां यह विचार नया नहीं है, परंतु जिस तरह से हानि हुई है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए परंपरागत उपाय के साथ-साथ, हमें आधुनिक उपाय, विज्ञान और दुनिया भर के अच्छे व्यवहारों को अपनाने का खुला मन रखना चाहिए। वह जो संशोधन लेकर आए हैं, वह इसी का उदाहरण है। साल 2005 में पहली बार आपदा प्रबंधन अधिनियम आया था। इसके तहत एनडीएमए, एसडीएमए और डीडीएमए का गठन किया गया था।

उन्होंने कहा कि विधेयक में आपदा प्रबंधन लागू करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर मैनेजमेंट (डीडीएमए) को दी गई है, जो राज्य सरकार के अधीन है। ऐसे में कहीं पर भी संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाने की संभावना ही नहीं है। इसमें राज्य और जिला स्तर के लिए फंड की व्यवस्था भी की गई है।

गृह मंत्री ने कहा कि बहुत से सांसदों ने पक्षपात का आरोप लगाया। यदि पक्षपात होता है तो 2005 में यूपीए की सरकार द्वारा बनाए गए कानून से होता है। हमने उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया है। वित्त आयोग ने आपदा सहायता के लिए एक वैज्ञानिक व्यवस्था की है, हमने किसी भी राज्य को इससे एक पाई भी कम नहीं दी है बल्कि जो तय किया गया था, उससे ज्यादा ही दिया है। इसमें राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर प्लानिंग की गुंजाइश रखी है।


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