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महाराष्ट्र सरकार की बुलडोजर कार्रवाई पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, नसीर हुसैन बोले- अदालत तय करती है सजा

नागपुर हिंसा के मुख्य आरोपी फहीम खान के घर हुई बुलडोजर कार्रवाई को लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा है कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी के घर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती

महाराष्ट्र सरकार की बुलडोजर कार्रवाई पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, नसीर हुसैन बोले- अदालत तय करती है सजा
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नई दिल्ली। नागपुर हिंसा के मुख्य आरोपी फहीम खान के घर हुई बुलडोजर कार्रवाई को लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा है कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी के घर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "अलग-अलग न्यायालयों ने कई फैसले दिए हैं, जिसमें कहा गया है कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी के घर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। सिर्फ इसलिए कि कोई आरोपी है, सरकार उसे एकतरफा दोषी नहीं ठहरा सकती। पुलिस जांच कर सकती है, व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकती है और अगर प्रथम दृष्टा मामला बनता है, तो आरोप पत्र दाखिल कर सकती है। हालांकि, वे यह तय नहीं कर सकती कि व्यक्ति ने वास्तव में अपराध किया है या नहीं। अगर किसी ने अपराध किया है और उसे दोषी ठहराया गया है, तो सजा अदालत तय करती है, सरकार नहीं। सरकार कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकती और बुलडोजर नहीं चला सकती।"

उन्होंने आगे कहा, "चाहे उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश या हरियाणा फिर महाराष्ट्र हो, जहां भी भाजपा की सरकारें हैं, वहां बुलडोजर की कार्रवाई करना संविधान पर हमले जैसा है।"

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन ने कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का बचाव किया। उन्होंने कहा, "कहां है बयान? हमने ऐसा कोई बयान नहीं देखा है, जिसमें उन्होंने ऐसा कहा हो। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि कई फैसले और न्यायिक घोषणाएं की जा रही हैं, जिसके आधार पर कई फैसले लेने होंगे और संविधान में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।"

सैयद नसीर हुसैन ने जस्टिस यशवंत वर्मा मामले पर कहा, "इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए। पैसा कहां से आया? यह कितना पुराना है? यह किस फैसले से जुड़ा है? पैसा किसने दिया और इसे फैसले के संदर्भ में कैसे स्वीकार किया गया? इसके अलावा, यह सिर्फ इसी मामले तक सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि पूरे नेटवर्क की पूरी जांच होनी चाहिए। इसमें शामिल सभी लोगों की पहचान होनी चाहिए और यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका के भीतर कितने लोग इससे जुड़े हैं।"


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