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मनमोहन सिंह के अस्थि विसर्जन पर भाजपा कर रही राजनीति : पवन खेड़ा

दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अस्थि विसर्जन कार्यक्रम में नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य के शामिल नहीं होने के भारतीय जनता पार्टी के आरोप पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सोमवार को केंद्र में सत्तारूढ़ दल पर राजनीति करने का आरोप लगाया

मनमोहन सिंह के अस्थि विसर्जन पर भाजपा कर रही राजनीति : पवन खेड़ा
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नई दिल्ली। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अस्थि विसर्जन कार्यक्रम में नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य के शामिल नहीं होने के भारतीय जनता पार्टी के आरोप पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सोमवार को केंद्र में सत्तारूढ़ दल पर राजनीति करने का आरोप लगाया।

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, "परिवार में अगर कोई शोक में है, तो शोक संतप्त परिवार को एक पर्सनल स्पेस भी चाहिए होता है। परिवार के लोग आपस में मिलकर शोक और दुख बांटना चाहते हैं और भाजपा चाहती है कि उस मौके पर कोई राजनीतिक दल जाए, यह बहुत ही अफसोस की बात है। भाजपा को परिवार और उनको जो पर्सनल स्पेस चाहिए उसकी कद्र नहीं है।"

महाराष्ट्र सरकार के मंत्री एवं भाजपा नेता नितेश राणे द्वारा केरल को "मिनी पाकिस्तान" कहने और राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी की जीत का कारण "आतंकवादियों का वोट" बताने पर भी कांग्रेस प्रवक्ता निशाना साधा। उन्होंने कहा, "जेपी नड्डा से पूछिए भाजपा अगला चुनाव केरल से लड़ेगी या नहीं? भाजपा नेता का संविधान के खिलाफ इस प्रकार की टिप्पणी करना गलत है। क्या उनके लिए केरल हिंदुस्तान की सीमाओं से बाहर हो गया है? जो इतिहास में कुछ कर नहीं पाए, अब भूगोल बदलने चले हैं।"

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भारतीय जनता पार्टी के रोहिंग्या घुसपैठियों को बसाने के आरोप पर पवन खेड़ा ने कहा, "केंद्र में भाजपा की सरकार है और बॉर्डर की रक्षा केंद्र के हाथों में होती है। ऐसे में बॉर्डर से बांग्लादेशी घुसे हैं तो क्या राजनाथ सिंह या अमित शाह इसके जिम्मेदार हैं, यह उनसे पूछना चाहिए।"

आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस की रणनीति के सवाल पर पवन खेड़ा ने कहा, "कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में गंभीरतापूर्वक मैदान में उतर रही है। इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए कि दिल्ली में लोग कांग्रेस पार्टी को फिर से याद कर रहे हैं। दिल्ली में 15 साल तक शीला दीक्षित का जो शासन रहा, उसमें दिल्ली को जो कुछ मिला, वह फिर कभी नहीं मिला।"


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