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माहवारी में छात्राओं की मदद की नीति बनाने में रुचि नहीं ले रहे राज्य

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस दिया, जिन्होंने स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए माहवारी स्वच्छता पर एक समान राष्ट्रीय नीति के गठन पर जवाब दाखिल नहीं किया.

माहवारी में छात्राओं की मदद की नीति बनाने में रुचि नहीं ले रहे राज्य
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सुप्रीम के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चेतावनी दी, जिन्होंने स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म से जुड़े हाइजीन पर एक समान नीति बनाने पर अभी तक केंद्र सरकार को अपना जवाब नहीं सौंपा है.

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे राज्यों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे 31 अगस्त तक माहवारी स्वच्छता पर एक समान नीति बनाए जाने को लेकर केंद्र को जवाब सौंपे. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि अब तक केवल चार राज्यों ने अपना जवाब दिया है. बेंच ने अपने निर्देश में कहा, "अगर इस आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो इस अदालत को कानून का सहारा लेना होगा."

कानूनी एक्शन लेने की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा कि आदेश की एक कॉपी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को उपलब्ध कराई जाएगी. भारत सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बेंच को बताया कि केंद्र सरकार को अब तक हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से जवाब मिला है.

मामला उस याचिका से जुड़ा है जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छठी कक्षा से लेकर 12वीं तक हर छात्रा को मुफ्त सैनिटरी पैड और सभी रेसिडेंशियल और नॉन रेसिडेंशियल शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों का प्रावधान सुनश्चित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया.

अप्रैल महीने में इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त समेत सभी स्कूलों में छात्राओं के लिए माहवारी के दौरान स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए मानक आदर्श प्रक्रिया (एसओपी) और प्रबंधन का राष्ट्रीय मॉडल विकसित करने को कहा था.

पिछले साल बाल सुरक्षा के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ ने एक अध्ययन में बताया था कि भारत में 71 फीसदी किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी नहीं है. उन्हें पहली बार माहवारी होने पर इसका पता चलता है. और ऐसा होते ही उन्हें स्कूल भेजना बंद कर दिया जाता है.

एक सामाजिक संस्था दसरा ने 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया था कि 2.3 करोड़ लड़कियां हर साल स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं . इनमें सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता और पीरियड्स के बारे में समुचित जानकारी शामिल है.


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