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प्रलय से भी तेजी से विलुप्त हो रही हैं प्रजातियां : शोध

जानवरों की जो प्रजातियां जंगलों में खत्म हो चुकी हैं, उनका चिड़ियाघरों में रह रहे जीवों के जरिए उबरना बेहद कठिन है. एक नए अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने यह बात कही है.

प्रलय से भी तेजी से विलुप्त हो रही हैं प्रजातियां : शोध
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वैज्ञानिकों का कहना है कि जो जीव जंगलों या अन्य कुदरती रहवास में विलुप्त हो चुके हैं, उनकी आबादी चिड़ियाघरों में बचे जीवों के जरिए वापस सामान्य स्तर तक लाना बेहद मुश्किल है. प्राकृतिक आवासों में जिन जानवरों की संख्या 10 से कम हो चुकी है, उनकी आबादी बढ़ाने के लिए अक्सर चिड़ियाघरों से जीवों को जंगलों में छोड़ा जाता है.

इस नए अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने कहा है कि इससे आबादी बढ़ना मुश्किल है क्योंकि जिन कारणों से जानवरों की संख्या घटी थी, वे ज्यों के त्यों बने हुए हैं. अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने कहा है कि जिन खतरों ने इन जानवरों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचाया है, वे जंगल में दोबारा भेजे गए प्राणियों के सामने भी बने होते हैं. इनमें जैविक विविधता की कमी और अवैध शिकार आदि शामिल हैं. हालांकि वैज्ञानिक संरक्षण की कोशिशों को भी जरूरी मानते हैं और कहते हैं कि यदि ये कोशिशें ना की गई होतीं तो ये जानवर बहुत पहले विलुप्त हो चुके होते.

अब डोडो पक्षी को फिर से जिंदा करने की कोशिश होगी

1950 से अब तक लगभग 100 प्रजातियां ऐसी हैं जो विलुप्त हो चुकी हैं. इसकी मुख्य वजहों में अवैध शिकार, वनों का कटाव, घटते कुदरती रहवास आदि खतरे शामिल हैं.

लंबी होती लाल सूची

‘वनों में विलुप्त' को श्रेणी के रूप में विलुप्त हो जाने का खतरा झेल रहे जानवरों की लाल सूची में 1994 में जोड़ा गया था. शोध पत्रिकाओं साइंस और डाइवर्सिटी में प्रकाशित शोध पत्रों में कहा गया है कि लाल सूची में शामिल प्रजातियों में से जितने जानवरों को वनों में दोबारा भेजकर उनकी आबादी बढ़ाने की कोशिश की गई, उनमें से 12 ऐसे हैं जिनकी आबादी कुछ हद तक बढ़ी है.

11 प्रजातियों का हाल डाइनोसॉर, डोडो और पैसिफिक आईलैंड के दर्जनों पेड़ों जैसा हुआ. वे दोबारा पनप ही नहीं पाए. 66 करोड़ साल पहले पैरिस के आकार के एक उल्का पिंड के धरती से टकराने से डाइनोसॉर समेत कई प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं. अब जैव विविधता उसी तरह का संकट झेल रही है.

50 अरब सालों में अब तक व्यापक विनाश की पांच घटनाएं हो चुकी हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य जाति ने पृथ्वी को व्यापक विनाश की छठी घटना के कगार पर पहुंचा दिया है और प्रजातियां सामान्य से 100 से 1000 गुना ज्यादा तेजी से विलुप्त हो रही हैं.

विनाश के कगार पर

शोध पत्र में लेखक कहते हैं, "11 प्रजातियां तो ऐसी विलुप्त हुई हैं जो हमारी देखभाल में थीं.” 15 शोधकर्ताओं द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विलुप्त होने के कगार पर खड़ी प्रजातियों को बचाने के कुछ मौके मिलते हैं और उनका फायदा उठाया जाना चाहिए.

करंट बायोलॉजी नामक पत्रिका में छपे एक अन्य अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 25 करोड़ साल पहले घटी उस प्रलयकारी घटना का अध्ययन किया है, जिसमें धरती पर रहने वाले 95 फीसदी जीव खत्म हो गए थे.

क्या नई जगह बसाकर बचाए जा सकेंगे विलुप्त हो रहे पेड़-पौधे

इस शोध में शामिल चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज के युआंगेंग ह्वांग बताते हैं, "इस वक्त जिस तेजी से प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, वह पिछली किसी भी प्रलयकारी घटना से ज्यादा तेज है. हम उस बिंदू का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते, जहां पहुंचने के बाद पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह नष्ट हो जाएगा लेकिन हमने जैव विविधता को खत्म होने से नहीं रोका तो ऐसा होना तय है.”


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