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अतिथि शिक्षकों के बिल पर विशेष सत्र आज

दिल्ली विधानसभा का एक दिनी विशेष सत्र आज है लेकिन अतिथि शिक्षकों का मामला भी तकनीकि पहलुओं में फंसता दिख रहा है

अतिथि शिक्षकों के बिल पर विशेष सत्र आज
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नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा का एक दिनी विशेष सत्र आज है लेकिन अतिथि शिक्षकों का मामला भी तकनीकि पहलुओं में फंसता दिख रहा है। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से अनुरोध किया है कि 'सर्व शिक्षा अभियान 2017’के तहत अतिथि शिक्षकों और शिक्षकों की सेवाओं को नियमित करने संबंधी बिल को लागू करने से पहले पनुर्विचार करें। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार में सर्व शिक्षा अभियान बिल 2017 के तहत लिए गए शिक्षकों एवं अतिथि शिक्षकों की सेवाओं को नियमित करने के संबंध में 27 सितम्बर 2017 को लिया गया मंत्रिमंडल का फैसला संख्या 2512 के आधार पर यह विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

उपराज्यपाल ने पाया है कि उपर्युक्त मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार दिल्ली की विधान सभा में सर्व शिक्षा अभियान के तहत सेवाओं को नियमित करने के संबंध में बिल पारित होना है। ट्रांजक्शन आफ बिजनिस आफ द गर्वमेंट आफ एनसीटी आफ दिल्ली रूल्स, 1993 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बिल को पारित करने करने के लिए विधानमंडल की क्षमता के बारे में विधि विभाग से परामर्श अनिवार्य है।

उपराज्यपाल ने कहा कि यह महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह बिल सर्विसेज से जुड़ा है और जैसा कि गृह मंत्रालय द्वारा 21 मई 2015 की अधिसूचना से स्पष्ट है और उच्च न्यायालय के फैसले द्वारा भी पुष्टि की जा चुकी है कि और इसी आधार पर सेवाओं से संबंधित मामले दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता से बाहर है।

उन्होने कहा कि ध्यान देने योग्य है कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया है कि दिल्ली सरकार एक केन्द्र शासित प्रदेश है अत: सभी तरह की सेवाएं सूची-1 की प्रविष्टि 70 द्वारा शासित होती हैं और जिसके कारण सर्विसज मामलें दिल्ली सरकार की विधायी शक्तियों से बाहर है। इस मामले में कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली सरकार सर्विसज मामलों में कोई दावा नहीं कर सकती। जैसा कि दिल्ली अधिनियम 1991 की धारा 41 से साबित है कि सेवाओं के मामले में उपराज्यपाल अपने विवेक के आधार पर निर्णय ले सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि विधेयक पेश करने से पूर्व मंत्रीमंडल के फैसले पर पुनर्विचार करें क्यों कि यह दिल्ली सरकार के संवैधानिक योजना के अन्तर्गत नहीं है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने सरकार से पूछा कि उसने बिल को सदन में लाने के पूर्व उपराज्यपाल, केन्द्र की पूर्वानुमति क्यों नहीं ली। उन्होंने पूछा कि जब सरकार के अपने ही विधि एवं न्याय विभाग ने इसका अनुमोदन बिल में उल्लेखित नहीं है तो सरकार कैसे आशा करती है कि यह बिल राष्ट्रपति के स्तर तक अनुमोदित हो जाएगा।


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