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विश्व सिकल सेल दिवस पर विशेष : सिकल सेल एक दुखद गाथा : रोशनी की तलाश

सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी अनुवांशिक बीमारी है, जिससे विश्व के पांच प्रतिशत लोग प्रभावित है

विश्व सिकल सेल दिवस पर विशेष : सिकल सेल एक दुखद गाथा : रोशनी की तलाश
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- डा. ए.आर. दल्ला

जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से जीन रिप्लेसमेंट (प्रतिस्थापन) पर कार्य हो रहे हैं। अब 'फिटल हीमोग्लोबिन' को 'एडल्ट हिमोग्लोबिन' में परिवर्तित कर सिकल सेल रोगी को दिया जा सकेगा। आने वाले समय में प्रयोग शाला में नए जीन का निर्माण कर बोन मैरो (अस्ति मज्जा )के विकृत जीन को बदलकर नए स्वस्थ जीन को प्रतिस्थापित किया जाने पर भी शोध चालू है समय बदल रहा है।

सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी अनुवांशिक बीमारी है, जिससे विश्व के पांच प्रतिशत लोग प्रभावित है। सिकल सेल रोग के कारण विश्व में 5000 बच्चे प्रतिदिन पैदा होते है और इसमें से 60 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु 5 वर्षों के पहले हो जाती है। सदियों तक इस बीमारी की पहचान नहीं हो सकी। वर्ष 1910 में डॉक्टर मेसन एवं जेम्स हेरिक ने पहली बार अपने माइक्रोस्कोप में लाल रक्त के गोलाकार हीमोग्लोबिन को हँसिये के अर्धचंद्रार विकृ त रूप में देखा, तब से यह रोग सिकल सेल विकृति के नाम से पहचाना जाने लगा।

देखा गया कि इस विकृति में हिमोग्लोबिन के लाल रक्त कण नुकिले और कठोर होकर शरीर की सुक्ष्म रक्तवाहिनों में फं सकर रूकावट उत्पन्न कर देते हैं। परिणामस्वरूप शरीर के फेफड़े, तिल्ली, लिवर, किडनी, और मस्तिष्क जैसे अंगो को प्रभावित कर मृत्यु का कारण भी बनते हंै।
बहुत दिनों तक इस रोग के निदान पर प्रगति नहीं हुई। पहले यह रोग अश्वेत अफ्रीकन (नीग्रो) लोगों का रोग माना जाता था। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति से मालूम हुआ कि यह विकृति भारत वर्ष, अरब, और मेडिटरेनियन के ऐसे देशों में व्याप्त है जहां घने जंगल हंै और मलेरिया का प्रकोप है। कालांतर में रोजी-रोटी की तलाश में, प्रवासी लोगों के माध्यम से यह रोग यूरोप और अमेरिका तक पहुंचा।

वर्ष 1952 में भारतवर्ष में इसका संज्ञान लिया गया। देखा गया कि यह रोग मध्य भारत के गुजरात, विदर्भ, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, और आंध्रप्रदेश की एक पट्टी में देखा गया, जहां आदिवासी और पिछड़े लोग बहुतायत से रहते हैं। अनुमानत: इस क्षेत्र में 15 प्रतिशत से 30 प्रतिशत लोग सिकल रोग के वाहक हैं। भारत की व्यापक जनसंख्या को देखते हुए यह अनुमान है कि विश्व के आधे सिकल वाहक भारत वर्ष में रहते हैं।

कई वर्षो तक यह रोग पहचाना नही जा सका। अंतत: वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र संगठन ने इसका संज्ञान लिया और घोषणा की कि सिकल सेल ऐसी घातक अनुवांशिक बीमारी है, जिसका संज्ञान सभी प्रभावित देशों को लेना होगा। संयुक्त राष्ट्र संगठन ने अपने प्रस्ताव में कहा कि विश्व के सभी प्रभावित देश अपने स्वास्थ्य कार्यक्रम में इसे प्रमुख स्थान दे। प्रस्ताव में कहा गया कि इस घातक और अनुवांशिक व्याधि की रोकथाम, प्रबंधन तथा जन-जागरण पर विशेष ध्यान देना होगा। इस पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र संगठन ने प्रतिवर्ष 19 जून को 'विश्व सिकल दिवस' मनाने की घोषणा की। इस वर्ष 2024 के अवसर पर सभी प्रभावित देशों और पंजीकृत समाज सेवा संस्थाओं को 'एकजूट' होकर जन जागरण अभियान चलाने का 'थीम' दिया गया है।

यहां इस बात का उल्लेख करना उचित होगा कि भारतवर्ष के प्रभावित प्रदेशों, विशेष कर गुजरात, विदर्भ, छत्तीसगढ़, उड़ीसा आदि क्षेत्रों में सिकल सेल रोग नियंत्रण के प्रयास बहुत पहले, वर्ष 2000 में ही प्रारंभ कर दिये गये थे।

छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के साथ ही इस रोग का संज्ञान लिया जा चुका था। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2004 से 'प्रोजेक्ट सिकल छत्तीसगढ़' प्रारंभ हुआ , रायपुर में मालेकुलर और जेनेटिक लैब की स्थापना हुई , छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से सिकल सेल नियंत्रण पर एक 'संकल्प' पारित हुआ। वर्ष 2008 में रायपुर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सिकल कांग्रेस में, विश्व प्रसिद्व वैज्ञानिक और कुछ अफ्रीकन देशों के राजनेता भी सम्मिलित हुए।
इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन, भारत रत्न महामहिम डॉक्टर ए.पी.जे. अबुल कलाम ने किया। इस सम्मेलन में सिकल सेल रोग पर विश्व का ध्यान आकर्षित करते हुए एक ज्ञापन भी तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति को दिया गया था। रायपुर में देश के पहले सिकल सेल नियंत्रण संस्थान की स्थापना हुई। स्कूलों में पाठ्यक्रम में सिकल से रोग जानकारी का समावेश भी किया गया। छत्तीसगढ़ शासन और छत्तीसगढ़ रेडक्रास द्वारा सभी जिलों में सिकल कुंडली और जेनेरिक काउंसलिंग जानकारी के लाखों कैलेंडर पंचायत स्तर तक बांटे गए।

भारतवर्ष में राष्ट्रीय स्तर सिकल कार्यों को अप्रतिम प्रगति तब मिली जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका संज्ञान लिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने पहले जापान दौरे में ही याकोहोमा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को सिकल जैसे अनुवांशिक रोग के उन्मूलन के अनुसंधान पर विशेष कार्य प्रारंभ करने का आग्रह किया।उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष माननीय प्रधानमंत्री ने सिकल सेल विकृति की रोकथाम के लिए 'मिशन मोड पर' वृहत प्रयास का प्रारंभ करने की घोषणा करते हुए मध्य प्रदेश के शहडोल में एक विशेष सिकल सेल नियंत्रण केंद्र की स्थापना की है। प्रारंभिक तौर पर यह भारतवर्ष के 17 प्रभावित राज्यों के 275 जिलों के आदिवासी इलाकों में सिकल रोग के सर्वेक्षण, रोकथाम एवं जन जागरण का प्रयास 'मिशन मोड' कार्य करने का आग्रह किया। इस अवसर पर प्रभावित जिलों के डॉक्टर /नर्सों स्वास्थ्य केंद्रा,े और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एक विशेष माडल (प्रारूप) का विमोचन भी किया गया।

सिकल पीड़ित विवाह योग्य युवकों के लिए एक 'जेनेटिक काउंसलिंग' के लिए एक 'डिजिटल' कार्ड भी बनाया गया है, जो विवाह पूर्व की समझाइश (सिकल सेल कुंडली) पर भी ध्यान आकर्षित करेगा। अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के तहत सिकल सेल रोग उन्मूलन की नई विधाओं पर वैज्ञानिक अनुसंधान हो रहे हैं। शोध पत्रों के अनुसार अफ्रीका के सिकल रोग की तुलना में भारतीय सिकल रोग ग्रस्त शिशुओं में फीटल हीमोग्लोबिन की मात्रा अधिक है। इसके चलते भारत के सिकल ग्रस्त बच्चों में दर्द की तीव्रता और मृत्यु दर कम देखी गई है। इस तथ्य के आधार पर अब फीटल हीमोग्लोबिन को एडल्ट हीमोग्लोबिन में परिवर्तित करने की जेनेटिक इंजीनियरिंग पर कार्य हो रहा है। इसके अन्वेषण करने के लिए नवजात बच्चों का रक्त परीक्षण किया जाना आवश्यक है। कुछ वर्षों पूर्व छत्तीसगढ़ शासन ने सभी नवजात शिशुओं का रक्त परीक्षण अभियान प्रारंभ किया था किंतु इस पर प्रगति अपेक्षित है।

पिछले दशकों में सिकल विकृति के इलाज में प्रगति आई है। हायड्रोक्सी यूरिया और कुछ नई दवाओं के चलते सिकलिंग की प्रक्रिया में कमी आई है। लेकिन अनुवांशिक बीमारी को जड़ से नष्ट करना आसान नहीं है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से जीन रिप्लेसमेंट (प्रतिस्थापन) पर कार्य हो रहे हैं। अब 'फिटल हीमोग्लोबिन' को 'एडल्ट हिमोग्लोबिन' में परिवर्तित कर सिकल सेल रोगी को दिया जा सकेगा। आने वाले समय में प्रयोग शाला में नए जीन का निर्माण कर बोन मैरो (अस्ति मज्जा )के विकृत जीन को बदलकर नए स्वस्थ जीन को प्रतिस्थापित किया जाने पर भी शोध चालू है समय बदल रहा है। आने वाला समय, नई रौशनी लेकर आएगा। भविष्य में हम सिकल गाथा की समाप्ति की ओर बढ़ रहे हंै। अस्तु
(लेखक पूर्व अध्यक्ष प्रोजेक्ट सिकल, छत्तीसगढ़ एवं चेयरमैन, छत्तीसगढ़ रेड क्रॉस सोसाइटी)


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