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कहीं विलुप्त न हो जाए घर का आंगन कहीं जाने वाली गौरैया चिड़ियां

 देश में विलुप्त होती जा रही गौरैया को बचाने व संरक्षण के लिए विश्व गोरैया दिवस पर नेचर फारवेर सोसाइटी (एनएफएस) द्वारा एक नई पहल की शुरुआत की गई

कहीं विलुप्त न हो जाए घर का आंगन कहीं जाने वाली गौरैया चिड़ियां
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नोएडा। देश में विलुप्त होती जा रही गौरैया को बचाने व संरक्षण के लिए विश्व गोरैया दिवस पर नेचर फारवेर सोसाइटी (एनएफएस) द्वारा एक नई पहल की शुरुआत की गई। जिसका मुख्य उद्देश्य पक्षियों के संरक्षण व महत्व के बारे में जागरूकता और जानकारी प्रदान करना है।

मंगलवार को संस्था ने आईपीसीए सिटीजन एनवायरमेंट इंप्रूवमेंट सोसाइटी (सीईआईएस) के साथ मिलकर इको पार्क, सेक्टर-54, नोएडा में गौरैया दिवस मनाया। इस दौरान मौजूद लोगों को चिड़ियों की सुरक्षा और संरक्षण के बारे में जानकारी दी गई। इस मौके पर कृतिम घोसलों का निर्माण कर उन्हें पेड़ों पर टांगा गया। ताकि गौरैया अपना आवास यहा बना सके। संस्था के अधिकारियों ने बताया कि बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकिकरण और वनों की कटाई जैसे मानव कार्यों ने कई पक्षियों और जानवरों के प्राकृतिक निवास को नष्ट कर दिया है।

इसलिए उनके पास रहने, खाने व जीवित रहने की कोई जगह नहीं है। घरों, भवनों व सड़कों का निर्माण करने के लिए पेड़ों को काट दिया जाता है। बढ़ते प्रदूषण ने पक्षियों की आबादी को बहुत प्रभावित किया है। पक्षियों की कुछ प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। विशेष रूप से गौरैया को बचाने के लिए कुछ कार्य करने का यह उच्च समय है जो मानव निर्मित कार्यों से प्रभावित है।

कुछ दशक पहले गौरैया भारत में सबसे आम पक्षी थी। अब पिछले कुछ वर्षों से, गौरैया बहुत दुर्लभ हो गई हैं। 2012 में, गौरैया को दिल्ली का राज पक्षी घोषित किया गया था। अब ऐसा समय आ गया है कि आमतौर पर घर के आंगनों में दिखने वाली चिडिया गौरैया बिल्कुल ही विलुप्त हो जाएगी।

डॉ असद रहमानी द्वारा 'हाउस स्पैरो प्रोजेक्ट' नामक एक रिपोर्ट और कार्तिक के द्वारा बॉम्बे नेशनल हिस्ट्री सोसाइटी से यह पता चला है कि 2005 से पहले और 2005-2012 के मुकाबले ऐसे पक्षियों के झुण्ड की संख्याओं में कमी आयी है। यह स्पष्ट हैं कि दिल्ली एनसीआर में पक्षियों की संख्या में गिरावट आई है। विशेषकर बड़े आबादी के क्षेत्र में। रिपोर्ट में यह •ाी कहा गया है कि 2005 और 2012 के बीच में कोई घोंसला नहीं देखा जा सका हैं। यह संकेत हैं कि हमारे पक्षी कितने खतरे में हैं।


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