सपा से गठबंधन के बाद कांग्रेसियों को वनवास काटने की उम्मीद
देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद की शहरी विधानसभा सीट पर जनता का मिजाज कई बार बदला है।

गाजियाबाद। देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद की शहरी विधानसभा सीट पर जनता का मिजाज कई बार बदला है। आजादी के बाद से ही इंडियन नेशनल कांग्रेस की पक्की सीट माने जाने वाले गाजियाबाद शहर पर जनता जर्नादन ने आरपीआई, समयुक्ता सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी के साथ ही भाजपा प्रत्याशी को भी तवज्जो दी है।
विधानसभा के लिए 15 बार हुए चुनाव में जनता ने कांग्रेस प्रत्याशियों के हाथ में सात बार अपने प्रतिनिधित्व की कमान सौंपी। राम मंदिर की लहर चली तो 1992 में यह सीट भाजपा के खाते में चली गई।
सपा से हुए गठबंधन के बाद 13 साल का वनवास काटने वाली कांग्रेस को अब एक बार फिर से उम्मीद जगी है। हालांकि जनता की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि गाजियाबाद को सबसे पहला विधायक कांग्रेस के सरदार तेजा सिंह के रूप में मिला था।
1957 में पहली बार तेजा सिंह विधायक चुने गए। इसके बाद वह 1967 तक लगातार दो बार विधायक रहे। तेजा सिंह के बाद जनता का मिजाज बदला और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी रहे प्यारे लाल शर्मा को जनता से लगातार तीन बार विधायक चुना।
खास बात यह है कि प्यारे लाल तीनों बार अलग-अलग पार्टी से चुनाव लड़े। आरपीआई के इस प्रत्याशी को दूसरी बार जनता ने समयुक्ता सोशलिस्ट पार्टी और तीसरी बार कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में अपना नेता चुना।
90 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की लहर चली तो कांग्रेस की पक्की माने जाने वाली यह सीट भाजपा की झोली में चली गई। 1991 से यह सीट अधिकांशत: भाजपा के पास रही। बालेश्वर त्यागी को गाजियाबाद के लोगों ने उनके कामकाज और मिलनसार व्यवहार के चलते लगातार तीन बार जिताकर विधायक बनाया। 2002 के विधानसभा चुनाव में वैश्य समाज ने एकजुटता दिखाई और नगर पालिका के चेयरमैन रहे


