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पिता के सपनों को पूरा करने में जुटा सोनू, 21 साल की उम्र में राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित

पिता के सपनों को पूरा करने के लिए खेती में हाथ आजमाए और चार साल में ही जैविक खेती कर ऐसा नाम कमाया कि उनका चयन राष्ट्रीय उद्यान रत्न पुरस्कार के लिए चयनित हो गया।

पिता के सपनों को पूरा करने में जुटा सोनू, 21 साल की उम्र में राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित
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मुजफ्फरपुर, 8 जनवरी: कहा जाता है कि अगर कठिन परिश्रम और लगन के साथ कोई भी कार्य समर्पित भाव से किया जाए तो उसे पूरा किया जा सकता है। वैसे, आज के दौर में कोई भी पिता अपने पुत्र को इंजीनियर, डाक्टर, आईएएस, आईपीएस बनाना चाहते हैं, लेकिन मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड के एक प्रगतिशील किसान ने बेटे को सफल किसान बनाने का सपना देखा और आज पुत्र अपनी मेहनत की बदौलत उनके सपनों को पूरा कर रहा है।

मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड के मछही गांव के 21 वर्षीय युवा सोनू निगम कुमार ने तो अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए खेती में हाथ आजमाए और चार साल में ही जैविक खेती कर ऐसा नाम कमाया कि उनका चयन राष्ट्रीय उद्यान रत्न पुरस्कार के लिए चयनित हो गया। आगामी 28 मई को महाराष्ट्र के जलगांव में सोनू अपना पुरस्कार ग्रहण करेंगे। इस पुरस्कार को ग्रहण करने के लिए सरकार द्वारा जारी पत्र मेल के माध्यम से सोनू को मिल चुका है।

सोनू ने आईएएनएस को बताया कि कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के कारण राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित सहित कई पुरस्कार पा चुके उनके पिता दिनेश कुमार का निधन अगस्त 2019 में एक दुर्घटना में हो गया था। उनका सपना था कि उनका पुत्र भी पढ़ लिखकर कोई अधिकारी नहीं बल्कि सफल किसान बने और ग्रामीणों को किसानी के लिए जागरूक करे।

पिता के निधन के बाद सोनू उनके सपने को पूरा करने में जुट गया। सोनू ऐसे तो सब्जी के कई प्रकार की खेती करते हैं लेकिन उनकी पहचान सीडलेस (बीज रहित) नींबू और परवल के कारण बनी है।

सोनू कहते हैं कि उन्होंने करीब चार साल पहले भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र, वाराणसी से परवल का एक पौधा और महाराष्ट्र के जलगांव से नींबू का एक पौधा लाया था और आज वह पांच एकड़ में परवल की खेती करता है जबकि उसके पास नींबू के 60 पेड़ हैं।

आईएएनएस से बातचीत में वे कहते हैं कि यह परवल जहां आम परवल से बड़ा होता है, वहीं अंदर मात्र एक दो बीज होते हैं। यह बिना फ्रिज में रखे भी करीब एक सप्ताह तक पीला नहीं होता। उन्होंने जोर देकर बताया कि वे सिर्फ जैविक खेती करते हैं, किसी भी पौधे में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करते।

इसी तरह सीडलेस नींबू गुच्छे में फलता है। आम नींबू से इसके आकार बड़े होते है और रसों से भरा होता है। वे कहते हैं कि एक पेड़ से प्रति वर्ष 300 नींबू तोड़े जाते हैं। उन्होंने कहा कि क्राफ्टिंग कर नींबू के पौधे को तैयार किया जाता है।

सोनू बताते हैं कि उन्हें किसानी करने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों और परिवार के लोगों ने खूब हौसला बढ़ाया।

सोनू की इच्छा थी कि अल्पशिक्षित रहते हुए जब पिता राष्ट्रपति से सम्मानित हो सकते हैं तो मैं क्यों नही।

राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर सहित कई अन्य कृषि आधारित संस्थानों का मदद सोनू को मिलता रहता है।

राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय उद्यान कॉलेज के प्रधानाध्यापक और कृषि वैज्ञानिक डॉ के के सिंह भी सोनू की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि ऐसे युवाओं के कृषि क्षेत्र में आने के बाद युवा इससे प्रेरित होते हैं।

उन्होंने कहा सोनू आज कई अन्य सब्जियों के लिए भी कार्य कर रहे हैं।


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