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कहीं सूखा तो कहीं बाढ़, यूरोप में ऐसा मंजर पहली बार

2024 में यूरोप की 30 फीसदी नदियों में भारी बाढ़ आई और आंधी तूफानों की संख्या बढ़ी. ऐसा ईंधन जलाने के कारण हो रहा है

कहीं सूखा तो कहीं बाढ़, यूरोप में ऐसा मंजर पहली बार
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2024 में यूरोप की 30 फीसदी नदियों में भारी बाढ़ आई और आंधी तूफानों की संख्या बढ़ी. ऐसा ईंधन जलाने के कारण हो रहा है.

जहां यूरोप को सुंदरता और साफ हवा-पानी का प्रतीक माना जाता है, वहीं खबर आई है कि यह महाद्वीप खतरे में है. वैज्ञानिकों के अनुसार यूरोप में पिछले साल यानी 2024 में 2013 के बाद से सबसे ज्यादा बाढ़ आई है. ये बाढ़ महाद्वीप के 30 प्रतिशत नदी के नेटवर्कों में आईं हैं. कहा जा रहा है कि यूरोप में जीवाश्म ईंधन जलाने के कारण भयंकर जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिस वजह से वहां मूसलाधार बारिश और अन्य चरम मौसमी आपदाएं आम हो गई हैं.

यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा और विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने यूरोप की जलवायु पर एक जॉइंट रिपोर्ट निकाली. उसमें बताया गया कि 2024 में यूरोप में बाढ़ से कम से कम 335 लोगों की मौत हुई और 4,10,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि पश्चिमी यूरोप पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है. 1950 से लेकर अब तक 2024 यूरोप का सबसे ज्यादा गीला साल रहा – ऐसा साल जब अत्यंत आंधी तूफान और बारिश हुई हो. यूरोप को माली तौर पर भी तूफान और बाढ़ में सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ता है. पिछले साल यूरोप ने ऐसी चरम मौसमी घटनाओं के चलते 18 अरब यूरो से भी ज्यादा पैसे गंवाए थे.

जलवायु बदलावों को परखने की प्रक्रिया शुरू होने से लेकर अब तक, दुनियाभर में 2024 सबसे गर्म वर्ष था. यह यूरोप के लिए भी सबसे गर्म वर्ष साबित हुआ. पृथ्वी अब पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म है, जिसका मुख्य कारण इंसान द्वारा हो रहा जलवायु परिवर्तन है.

विश्व मौसम संगठन की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, "तापमान में एक डिग्री की बढ़त भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे हमारे जीवन, अर्थव्यवस्था और ग्रह के लिए खतरा बढ़ जाता है."

रिपोर्ट में सकारात्मक पहलू पर भी चर्चा हुई. कहा गया कि 2024 में यूरोप में कुल ऊर्जा उत्पादन का 45 फीसदी उत्पादन अक्षय ऊर्जा स्रोतों से आया है. यह यूरोप के अक्षय ऊर्जा उत्पादन का अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है.

इसके बावजूद यूरोप भर में चरम मौसमी घटनाएं दर्ज हुईं हैं. दक्षिण-पूर्वी यूरोप में अब तक की सबसे लंबी चलने वाली लू देखी गई, जो कुल 13 दिनों तक चली. जबकि स्कैंडिनेविया के ग्लेशियर बहुत तेजी से सिकुड़े. इससे पूरे महाद्वीप में गर्मी बढ़ गई.

पूर्वी यूरोप का अधिकांश हिस्सा गर्मी की कमी और सूखे से जूझता रहा, जबकि पश्चिमी यूरोप में बाढ़ ने तबाही मचा दी.

यूरोप के कुल नदी नेटवर्क के लगभग एक तिहाई हिस्से में पानी का स्तर ‘हाई' यानी बहुत ज्यादा पर बना रहा. वहीं 12 फीसदी हिस्से ने "गंभीर" बाढ़ के स्तर को पार कर लिया.

पिछले अक्टूबर में स्पेन के वालेंसिया में बाढ़ ने जान-माल को काफी नुकसान पहुंचाया. इस आपदा में करीब 232 लोगों की मौत हो गई. सितंबर में सेंट्रल यूरोपीय देश जैसे ऑस्ट्रिया, जेकिया, जर्मनी और स्लोवाकिया में बोरिस तूफान की वजह से रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई.

वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि जलवायु परिवर्तन ने इस तरह की बारिश की संभावना को और बढ़ा दिया है, क्योंकि गर्म वातावरण में ज्यादा पानी जमा हो सकता है, जिससे तेज बारिश होती है. 2024 में वायुमंडलीय जल वाष्प स्तर ने भी अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.

बाढ़ को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में नदी प्रबंधन और शहरी नियोजन शामिल हैं. यह कारक निर्धारित करते हैं कि बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में घर और बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाए या नहीं.


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