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प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजी गई भ्रामक जानकारी,जिले के अधिकारी भ्रष्टाचार को दे रहे संरक्षण

सोमनी,राजनांदगांव ! ग्राम पंचायत सोमनी में जिला स्तर के अधिकारियों की शह में पंचायतीराज अधिनियमों की धज्जियां उडाई जा रही है। आर्थिक अनियमितताओं के चलते भ्रष्टाचार को संरक्षण मिल रहा है।

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजी गई भ्रामक जानकारी,जिले के अधिकारी भ्रष्टाचार को दे रहे संरक्षण
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सोमनी,राजनांदगांव ! ग्राम पंचायत सोमनी में जिला स्तर के अधिकारियों की शह में पंचायतीराज अधिनियमों की धज्जियां उडाई जा रही है। आर्थिक अनियमितताओं के चलते भ्रष्टाचार को संरक्षण मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे भारत वर्ष में भ्रष्टाचार को समाप्त करने का बीड़ा उठा चुके हैं वही छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जन समस्याओं एवं जन शिकायतों के प्रति जितने अधिक संवेदनशील है वहीं उनके जिला स्तर के संबंधित अधिकारी उनके सारे प्रयासों पर पानी फेरने पर उतने ही उतारू है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से होकर प्रमाणित शिकायतों का कागजी सफर जिला कार्यालय में कैसे आधारहीन, असत्य, और भ्रामक जांच प्रतिवेदन से लीपापोती कर प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को भेज दिया जाता है। ऐसा ही वाकया सोमनी पंचायत के पूर्व सरपंच से प्रमाणित शिकायत के साथ हुआ।
बड़े अधिकारी ने जांच प्रतिवेदन को धता बता दिया
मजे की बात यह है कि मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत के आदेश क्रमांक 5053/पं.अनु./2015 दि. 10.11.2015 के तहत शासकीय उच्च. मा. शा. सोमनी की आरक्षित भूमि के अंदर निर्मित व्यवसायिक परिसर निर्माण की शिकायत की जांच हेतु तीन सदस्यी जांच दल का गठन किया गया। इस दल में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, अनुविभागीय अधिकारी ग्रामीण यांत्रिकी सेवा - राजनांदगांव एवं तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत राजनांदगांव शामिल थे। इस जांच दल के दो अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर प्रकरण की जांच की और अपने जांच प्रतिवेदन मे शिकायतों को सही पाया। अनुविभागीय अधिकारी ग्रामीण यांत्रिकी सेवा राजनांदगांव बी. आर. बघेल के पत्र क्र. 294/अनु. अधि./ग्रा.यां.सेवा/राज. दि. 21.03.2016 के अनुसार शा. उ. मा. शा. सोमनी के अहाता के अंदर कुल 24 दुकानों का निर्माण कराया गया है जिसके एक दुकान की अनुमानित लागत 68000 हजार रूपये होना बताया गया है। इसी प्रकार दि. 16.05.2016 को तत्कालीन मु. कार्यपालन अधि. जनपद पंचायत राजनांदगांव शिशिर शर्मा द्वारा उक्त प्रकरण की मौके पर जांच कर जांच प्रतिवेदन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत राजनांदगांव को प्रस्तुत किया गया था जिसमें उन्होंने खसरा नंबर 190/2 की भूमि को खेल मैदान शास. उ. मा. शा. सोमनी के लिए आरक्षित भूमि बताया। तत्कालीन सरपंच ने अटल बाजार के नाम पर पांच दुकान, शेड निर्माण व नाली निर्माण के लिए जिला शिक्षा अधिकारी राजनांदगांव से लिखित में अनुमति मांगी जिसके जवाब में शास. उ. मा. शा. सोमनी ने सरपंच को लिखित में दि. 27.08.2012 को जवाब दिया कि खेल भूमि पर अनुमति देने का अधिकार मुझे नहीं शासन को है। इस प्रकार तत्कालिन सरपंच द्वारा दुकानदारों से प्रति दुकानदार एक लाख दस हजार रूपये लिया गया जिसमे एक लाख रूपये में से 400 (चार सौ रूपये) प्रति माह किराया तय किया गया। अर्थात 20.5 माह (बीस साल दस माह) का किराया एडवांश में लिया गया जिसकी कुल राशि छब्बीस लाख चालीस हजार रूपये (26,40,000) होती है लेकिन कोई भी राशि ग्राम पंचायत मे नहीं है और न ही पंचायत के बैंक खाते में जमा है। स्पस्ट है कि यह पद के दुरूपयोग, शासकीय भूमि पर अनाधिकृत कब्जा करने, पंचायत की पदमुद्रा का दुरूपयोग कर राशि अपभ्रमण (गबन करने का मामला) है यह आपराधिक कृत्य है, इनका यह कृत्य पंचायती राज अधिनियम के प्रावधनो का स्पष्ट उलंघन है, फलत: पंचायतीराज अधिनियम के तहत जांच कार्यवाही करते हुए आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की अनुसंशा की जाती है। ज्ञात हो कि उक्त दोनो अधिकारियों के जांच प्रतिवेदन को धता बताकर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा नजर अंदाज कर दिया गया । तीसरे जांच अधिकारी ने कार्यवाही करने के बजाय उसे आठ माह तक लंबित रखा।
सीईओ के निर्देश पर भी वसूली की राशि का स्पष्ट उल्लेख नहीं
मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत राजनांदगांव के आदेश क्र./883/पंचा.शि/2016 दि. 08.06.2016 के अनुसार जनपद पंचायत की तत्कालीन सरपंच द्वारा ग्राम पंचायत सोमनी में खेल मैदान की आरक्षित भूमि पर अवैध रूप से व्यवसायिक परिसर निर्माण करने एवं अनियमित दुकान आबंटन करने संबंधी जांच कार्यवाही से संबंधित मूल नस्ती नोटशीट पेज क्रमांक 01 से 10 तक एवं दस्तावेज पृष्ठ क्र 01 से 40 पृ. संलग्न कर भेजी गई है। तत्कालीन सरपंच द्वारा बरती गई अनियमितता के छ.ग. पंचायत राज अधिनियम एवं भू राजस्व संहिता के विहित प्रावधानों के तहत अनुविभागीय अधिकारी राजस्व राजनांदगांव को नियमानुसार कार्यवाही करने एवं जिला पंचायत कार्यालय को प्रतिवेदित करने का निर्देश दिया था। मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत राजनांदगांव के उक्त आदेश के परिपालन में कार्यालय अनुविभागीय अधिकारी, राजनांदगांव के क्र. 639/प्रवा-2/अ.वि.अ./2016 राजनांदगांव दि. 09.06.2016 के तहत मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत राजनांदगांव को पत्र लिखकर तत्कालीन सरपंच से छ.ग. पंचायत राज अधिनियम 1993 में विहित प्रावधानों के तहत कितनी राशि वसूल की जानी है का स्पस्ट उल्लेख नहीं किया गया है । सीईओ ने यह भी लिखा कि तत्कालीन सरपंच से कितनी राशि वसूल की जानी है के संबंध में स्पस्ट उल्लेख करने का कष्ट करे, ताकि पंचायत राज अधिनियम 1993 में दर्शित प्राधानों के तहत वसूली की कार्यवाही सुनिश्चित किया जा सके।
नायब तहसीलदार ने की एकतरफा कार्रवाई
ज्ञात हो कि उक्त प्रकरण की फाईल को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व ने जिला पंचायत कार्यालय से दि. 01 सितम्बर 2016 को पुन: अपने कार्यालय में मंगवा लिया। कलेक्टर ने (समय सीमा) की बैठक में भी सोमनी का उक्त प्रकरण चर्चा का विषय रहा किन्तु कार्यवाही शून्य रही। इस प्रकरण को आठ माह तक लंबित रखा गया। इसी दैरान 14 सितम्बर 2016 को सरपंच सचिव को मौखिक निर्देश व नायब तहसीलदार ने स्वयं पंचायत पहुंचकर सचिव ग्राम पंचायत को निर्देश दिया कि तत्काल पंचायत की विशेष बैठक बुलाकर दुकानदारों से किराया वसुलने का प्रस्ताव पारित करे। दि. 15.12.2016 को पंचायत की बैठक में सरपंच व पंचों के द्वारा राशि वसूलने का प्रस्ताव पारित किया गया। लेकिन सचिव ने अपने टीप में लिखा कि प्रस्ताव विधि सम्मत नहीं है मामला न्यायलय में चल रहा है, मुझे मान्य नहीं है। ज्ञातव्य है कि पंचायतीराज अधिनियम के तहत विशेष बैठक बुलाने हेतु तीन दिन की अवधि का प्रावधान है इसका भी पालन नहीं किया गया। नायब तहसीलदार द्वारा मौके पर पहुंचकर दुकानदारों को बुलाकर किराया देने हेतु पंचनामा कराया गया और दुकानदारों की कोई बात नहीं सुनी गई न ही उनके कोई दस्तावेज देखे गये बल्कि नायब तहसिलदार ने एक लाईन कहा कि पुराना एक लाख जमा राशि भूल जाओ ? नायब तहसीलदार ने जिस तरह सहमति बनाई, पंचनामा बनवाया जिसमें सन् 2005 में काबिज अधिकतर दुकानदारों के ही हस्ताक्षर है जबकि स्कूल की भूमि मे निर्मित 24 दुकानदारों में से केवल तीन चार लोगों के ही हस्ताक्षर है। इससे प्रतित होता है कि उक्त कार्यवाही एकतरफा व पूर्व नियोजित थी।
तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर नस्तीबद्व करने का प्रयास
विशेष बात यह है कि कार्यालय अनुविभागीय अधिकारी, राजनांदगांव के ज्ञापन क्र./158/अ.वि.अ./2017 राजनांदगांव दि. 30.01.2017 के पत्र में लेख है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से प्राप्त विभिन्न शिकायत पत्रों पर त्वरीत कार्यवाही करते हुए संबंधित को सूचित किया गया कि शिकायत के संबंध में जांच किया जाकर प्राप्त नस्ति जांच प्रतिवेदन सहित मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला राजनांदगांव को दि. 19.01.2017 के द्वारा प्रेषित किया जा चुका है अत: उक्त पत्र नस्तिबद्व किया जाना उचित होगा। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व राजनांदगांव ने अपने जांच प्रतिवेदन नोडल अधिकारी राजनांदगांव (समय सीमा) कलेक्टर विकास शाखा राजनांदगांव को प्रेषित किया गया जिसमें तत्कालीन सरपंच द्वारा किये गये असंवैधनिक कार्यों , भ्रष्टाचार के प्रमाणित सबूतों को नजरअंदाज कर प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया। जिसमें तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर नस्तीबद्व करने की जुगत की गई। प्रमाणित तथ्यों के अनुसार (1) शास. उ. मा. शा. सोमनी की भूमि मे खसरा नम्बर 190/2 में निर्मित चौबीस दुकानों के अवैध निर्माण की जांच एवं कार्यवाही हेतु लिखा गया था किन्तु पुराने व्यावसायिक परिसरों को जोडक़र कुल 72 से 81 दुकानों की जानकारी दी गई जबकि चौबीस दुकानें अवैधानिक रूप से निर्मित की गई है। (2) अनुविभागीय अधिकारी ने प्रतिवेदन में स्वीकार किया है कि दुकानों का निर्माण शासकीय मद की भूमि पर बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के किया गया है लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। (3) अनुविभागीय अधिकारी ने प्रतिवेदन क्र. 03 में दुकानदारों से किश्तों में राशि प्राप्त कर एक लाख दस हजार रू. की रसीद दी गई, जबकि सचिव द्वारा एस. डी. एम. को लिखित में 14.09.2016 को कहा कि ग्राम पंचायत द्वारा रसीद कट्टा जारी नहीं किया गया ।
यह जांच का विषय है कि ग्राम पंचायत द्वारा रसीद बुक जारी ही नहीं किया गया तो एक लाख दस हजार रू. का प्रति दुकानदार को कहां से रसीद जारी किया गया और 26 लाख 40 हजार रू. बैंक में जमा नहीं किया गया। पूर्व सरपंच जब कार्यमुक्त हुई तब संपूर्ण प्रभार वर्तमान सरपंच को सौंप चुकी थी लेकिन दि. 01.03.2016 को पृथक आलमारी से दुकान निर्माण संबंधी व्हाउचर पंजी, बिल तथा मस्टररोल आदि कैसे प्राप्त किया गया ? पूर्व में उसे चार्ज में क्यों नहीं सौंपा गया जो जांच का विषय है
कार्यवाही को उपसरपंच ने नियम विपरीत पंजी में संधारित किया
प्ंाचायत सचिव दि. 25.03.2013 को तत्कालीन सरपंच व उपसरपंच द्वारा अलग से कार्यवाही पंजी बनाकर कार्यवाही को उपसरपंच द्वारा पंजी में संधारित किया गया। जबकि पंजी संधारित करने का अधिकार सचिव को है। सचिव ने जानकारी दिया कि 25.03.2013 की कार्यवाही उसके द्वारा प्रमाणित नही है और न ही संधारित किया गया है। (4) बिन्दु क्र. 07 में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा बताया गया कि तत्कालीन सरपंच द्वारा राशि देने वालों से स्टाम्प पेपर पर अनुबंध किया गया जिसके अनुसार 10 हजार रू. अमानत राशि एक लाख रू. किराये की राशि ली गई है अर्थात 20 साल दस माह का किराया 400 रूपये प्रतिमाह की दर से एडवांश में लिया गया है किराये का समायोजन अग्रिम प्राप्त राशि से किया जा रहा है जबकि पंचायत के राजस्व राजनांदगांव से प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर सोमनी निर्मित व्यवसायिक परिसर का नए सिरे से किराया निर्धारण कराया जाना प्रतिवेदित किया गया है। उक्त प्रतिवेदन के आधार पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत राजनांदगांव के आदेश क्रमांक 2391/पंचा./2017 राजनांदगांव दिनांक 10.02.2017 के अनुसार मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत राजनांदगांव, सरपंच/सचिव ग्राम पंचायत सोमनी को आदेशित किया गया है कि ग्राम पंचायत सोमनी में निर्मित सभी व्यवसायिक परिसर की प्रविष्ठि ग्राम पंचायत के स्थावर संपत्ति रजिस्टर में दर्ज कराकर एक माह के अन्दर नियमानुसार नये सिरे से किराये का निर्धारण कराया जा कर वसूली की कार्यवाही की जाय।
पंचायत के स्थावर संपत्ति रजिस्टर में दर्ज नहीं
ज्ञातव्य है कि शास. उ. मा. शा. सोमनी (फरहद - बैगाटोला मार्ग) में निर्मित व्यावसायिक परिसर की दुकानों के किरायों का अनुबंध दि. 25.03.2016 को पूर्व में स्टाम्प पेपर में किया जा चुका है, जिसका समायोजन होना जांच प्रतिवेदन में बताया गया है फिर नये सिरे से किराये का निर्धारण कर किराया कैसे वसूला जा सकता है ? असंवैधनिक 24 दुकानें अभी तक पंचायत के स्थावर संपत्ति रजिस्टर में दर्ज नहीं है। फिर किस अधिकार के तहत पंचायत को नये सिरे से किराया निर्धारणकर किराया वसूली का निर्देश दिया गया है ? चूंकि उक्त भूमि शास. उ. मा. शा. की संपत्ति है उस पर पंचायत का नियंत्रण कैसे एवं शासन के किस नियम के तहत किया गया है। अनुविभागीय अधिकारी ने दिलचस्पी लेकर तात्कालीन सरपंच के कथित जनहित (?) कार्य की प्रशंसा अपने जांच प्रतिवेदन में किया है। यथा स्कूल मैदान में निर्मित जर्जर भवनों को तोडक़र खेल मैदान समतलीकरण का कार्य सवयं के व्यय पर कराया गया है। जबकि मैदान का समतलीकरण कराने की बात ही असत्य है। वस्तुत: जर्जर भवनों को शास. उ. मा. शा. की प्रबंधन समिति द्वारा 10000 रू. भूगतान कर कराया गया है।
नवाचार का प्रयोग कर भ्रष्टाचार को किया दरकिनार
अपने प्रविवेदन में उन्होंने स्वीकार किया है कि तत्कालीन सरपंच द्वारा सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त किये बिना शासकीय भूमि पर चौबीस दुकानो का निर्माण कराया गया है निर्मित व्यावसायिक परिसर के आबंटन हेतु छत्तीसगढ पंचायत (स्थावर संपत्ति का अंतरण) नियम 1994 का पालन नहीं किया गया है तथापि अतिक्रमणकर्ताओं को हटाकर उन्हीं के पैसों से दुकान निर्माण कर व्यवस्थित करने का नवाचार किया गया है। बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त हो रहा है। अधिकारी द्वारा जांच प्रतिवेदन में अवैधानिक निर्माण की स्वीकृति है किंतु उसमें प्रशंसा के बोल नवाचार शब्द से अंकित है ? क्या शासन प्रदेश में ऐसे ही नवाचार कराकर बेरोजगारों को रोजगार देने का आदर्श प्रस्तुत करेगी। चकित करने वाली बात यह है कि जांच अधिकारी अपनी जांच प्रक्रियाओं से भटककर लोकहित के तथ्य को छोड़ उन्होंने कथित नवाचार का चक्रव्यूह रचकर भ्रष्टाचार को बड़ी कुशलता से दरकिनार कर दिया है । मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत राजनांदगांव ने पुन: इस प्रकरण में 08.03.2017 को पांच सदस्यीय जांच टीम गठीत की है जिसमें 15 दिवस के अन्दर बिन्दुवार निश्पक्ष जांच कर जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का निर्देष दिया गया हैं। इस प्रकरण से जुडे एवं पूर्व में हुई जांच प्रतिवेदन का खनापूर्ति करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्यवाही करने से और भी कई भ्रष्टाचार एवं अनियमितताएं उजागर होने की संभावना है।


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