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सॉलिसिटर जनरल ने हाईकोर्ट से कहा, जामिया मामले में शाह के खिलाफ आरोप राजनीतिक

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जामिया हिंसा से संबंधित याचिकाओं में दिए गए कुछ बयानों पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि ये बयान राजनीतिक प्रकृति के हैं

सॉलिसिटर जनरल ने हाईकोर्ट से कहा, जामिया मामले में शाह के खिलाफ आरोप राजनीतिक
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नई दिल्ली। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जामिया हिंसा से संबंधित याचिकाओं में दिए गए कुछ बयानों पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि ये बयान राजनीतिक प्रकृति के हैं और इस तरह के बयान सार्वजनिक भाषणों में तो अच्छे लगते हैं, लेकिन किसी संवैधानिक अदालत के समक्ष पेश हलफनामे में इनका स्थान नहीं है। जामिया मिलिया इस्लामिया में पिछले साल दिसंबर में हुई हिंसा की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ सीधे आरोप लगाने वाला बयान गैर जिम्मेदाराना है।

मेहता ने जामिया और उसके आसपास हुई हिंसा से संबंधित याचिका में इस्तेमाल की जा रही कुछ भाषा को हटाने की मांग करते हुए कहा, यह एक विरोध स्थल पर दिया गया राजनीतिक बयान है और किसी अदालत के समक्ष पेश किया जाने वाला नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक याचिका में लगाए गए उन आरोपों पर ऐतराज जताया, जिसमें कहा गया था कि जामिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर अमित शाह ने लाठीचार्ज का आदेश दिया था।

मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की खंडपीठ के सामने मेहता ने कहा, इन याचिकाओं के पीछे एक उद्देश्य और एक छिपा हुआ एजेंडा है।

इसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस से पूछा कि "क्या वह उक्त दस्तावेज से आपत्तिजनक हिस्से को हटाना चाहते हैं? किसी पर व्यक्तिगत आरोप क्यों? हर कोई कानून पर इतनी अच्छी तरह से बहस कर रहा था।

इसके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने पीठ के समक्ष कहा कि मुद्दों की एक समेकित सूची बनाई जाएगी और कार्यवाही को बेहतर ढंग से चलाने के लिए यह अदालत को दी जाएगी।

इस मामले की आगे की सुनवाई अब 13 जुलाई को होगी।

दिल्ली पुलिस ने जामिया हिंसा में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका का भी विरोध किया। पुलिस ने कहा कि यह कोई छिटपुट घटना नहीं थी, बल्कि एक बड़ी साजिश थी।

दिल्ली हाईकोर्ट में पिछले साल दिसंबर में जामिया हिंसा मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए याचिका दायर की गई थी, जिस पर अदालत ने दिल्ली पुलिस से हलफनामा दायर करने के लिए कहा था।

पुलिस ने कहा, जांच से पता चला है कि स्थानीय नेता और राजनेता प्रदर्शनकारियों को उकसा रहे थे और बेहद उत्तेजक नारेबाजी कर रहे थे (जो बाद में गिरफ्तार किए गए थे)।

हलफनामे में पुलिस ने कहा कि यह स्पष्ट है कि हिंसा छिटपुट नहीं थी और बल्कि यह एक सुनियोजित घटना थी, जिसमें दंगाई पत्थरों, लाठियों, पेट्रोल बम, ट्यूब-लाइट आदि लिए हुए थे। पुलिस ने कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि भीड़ का इरादा क्षेत्र में कानून-व्यवस्था को बाधित करना था।

पिछले साल 15 दिसंबर को पुलिस और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच हुए हिंसक टकराव में पुलिसकर्मियों, आम नागरिकों और मीडिया को पेट्रोल बमों से निशाना बनाया गया था।


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