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म्यांमार में लोकतंत्र बहाल करने के आंदोलन में उमड़ रहे सैनिक

म्यांमार में 1 फरवरी को हुए तख्तापलट के विरोध में सड़क पर उतरे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को गोली मारने के आदेश से तंग आकर अब अधिक से अधिक संख्या में सैनिक आंदोलन में शामिल होते जा रहे

म्यांमार में लोकतंत्र बहाल करने के आंदोलन में उमड़ रहे सैनिक
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म्यांमार । म्यांमार में 1 फरवरी को हुए तख्तापलट के विरोध में सड़क पर उतरे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को गोली मारने के आदेश से तंग आकर अब अधिक से अधिक संख्या में सैनिक देश में लोकतंत्र बहाल करने के आंदोलन में शामिल होते जा रहे हैं।

नागरिक समाज संगठन थानाखा ग्लोबल अलायंस द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन चर्चा में शामिल हुए दो पूर्व सैन्य अधिकारियों ने निर्दोषों को गोली मारने के आदेश का पालन करने से इनकार करने के बाद आंदोलन में शामिल हुए सैनिकों और अधिकारियों की रक्षा के लिए आंदोलन का आह्वान किया।

हालांकि परिवार के सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई होने के डर से अधिकारियों ने नाम न छापने को प्राथमिकता दी। चर्चा के दौरान एक ने बताया कि सिपाही से लेकर मेजर तक कम से कम 800 सैन्यकर्मी लोकतंत्र आंदोलन में शामिल हो हुए हैं। इनकी उम्र 20 से 35 के बीच में है। इससे पता चला है कि यहां सेना में किस कदर बैचेनी और सैन्य अधिग्रहण के बाद लोकतंत्र का क्रूर दमन किए जाने के बाद से ये कितने परेशान हैं।

अमेरिकी सेना के एक सेवानिवृत्त कर्नल डॉ. मिमी विन बर्ड, करेन राज्य-आधारित जातीय सशस्त्र समूह, करेन नेशनल यूनियन के एक सामरिक सलाहकार, नै मे ओ और म्यांमार के पूर्व सैन्य कप्तान न्या थूटा और लिन हेटेट आंग ने चर्चा में भाग लिया।

न्या थूटा ने आम जनता और सेना के बीच फूट डालने के लिए तात्पदौ को जिम्मेदार ठहराया। थूटा ने बर्मा के लोगों से सभी सैन्य कर्मियों से नफरत करने के लिए नहीं, बल्कि तानाशाही से लड़ने पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया।

उन्होंने इस बात का दावा किया कि म्यांमार की सेना के 400,000 सैनिकों में से केवल 20 प्रतिशत ही लोगों के खिलाफ हिंसा कर रहे हैं। थूटा ने यह भी बताया कि अगर सभी सैन्य कर्मियों और समस्त लोगों के बीच लड़ाई हुई, तो इसमें लोगों का काफी खून बहेगा और फिर जाकर यह लड़ाई खत्म होगी। इसे हमें किसी भी कीमत पर टाला जाना चाहिए।

थूटा आगे यह भी कहते हैं, इस सिस्टम के तहत सेना के रैंक-एंड-फाइल सदस्य और उनके परिवार के लोग भी उतने ही पीड़ित हैं, जितने कि बाकी लोग इससे जूझ रहे हैं। अगर सैन्य कर्मियों ने लोगों का साथ दिया, तो हम कम से कम नुकसान झेलकर जीत हासिल करने में सक्षम होंगे। इसलिए सैन्यकर्मियों को जनता से हाथ मिलाने की अनुमति देने के लिए चैनलों को खुला रखा जाना चाहिए।


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