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सामाजिक तनाव और आर्थिक विकास एकसाथ संभव नहीं : कांग्रेस

कांग्रेस ने लोकसभा में सीएए से उत्पन्न हालात और गहराते आर्थिक संकट पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सामाजिक तनाव के कारण आर्थिक विकास संभव नहीं

सामाजिक तनाव और आर्थिक विकास एकसाथ संभव नहीं : कांग्रेस
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नयी दिल्ली। कांग्रेस ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से उत्पन्न हालात और गहराते आर्थिक संकट पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सामाजिक तनाव के कारण आर्थिक विकास संभव नहीं है।

कांग्रेस के मनीष तिवारी ने बजट पर चर्चा की शुुरुआत करते हुए गुरुवार को कहा कि सरकार सीएए, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) जैसे कानून लाएगी तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। देश की अर्थव्यस्था को बेहतर करने के लिए सरकार को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होगा। सामाजिक तनाव के साथ आर्थिक विकास की परिकल्पना करना संभव नहीं है।

तिवारी ने कहा कि सात दशक पहले संविधान को अपनाया गया जिसमें लोगों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय देने वादा किया था और सामाजिक एवं राजनीति न्याय तो कुछ हद तक मिल गया है लेकिन आर्थिक न्याय अब भी सही मायने में नहीं मिल पा रहा है। देश का 73 प्रतिशत धन एक प्रतिशत लोगों को पास है। देश के आर्थिक ढांचे को बेहतर करने के लिए गंभीरता से विचार करना चाहिए। सरकार ने 125 करोड़ देशवासियों के लिए जो आर्थिक ढांचा अपनाया है वह सही नहीं है इसलिए इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि सरकार 1990 के दशक के नवउदारवाद के सिद्धातों को पुन: अपनाकर अर्थव्यवस्था को ठीक करना चाहती है जबकि इसके जनक देश ने इस सिद्धांत को नकार दिया है। देश की अर्थव्यवस्था कोरोना जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में हैं और उसे जुकाम की दवाई देने की कोशिश की जा रही है। देश का सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) 11 साल के सबसे कम स्तर पर पहुंच गया है। इसी प्रकार कृषि, निवेश सभी क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गयी है।

तिवारी ने कहा कि देश की गाढ़ी कमाई से सार्वजनिक उपक्रमों को बनाया गया लेकिन सरकार अब इन उपक्रमों एक एक करके बेचने की योजना बना रही है ताकि वित्तीय घाटे को कम किया जा सके। सरकार को यह समझना होगा कि इन्हीं सार्वजनिक उपक्रमों ने आर्थिक मंदी के दौर से उबारा था और इन उपक्रमों की वजह से अर्थव्यस्था मजबूत बनी रही थी।

उन्होंने कहा कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक प्रोफेसर ने कहा कि बजट में दिया गया एक एक आंकड़ा झूठा है। उन्होंने कहा कि वह उनकी बातों से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं लेकिन अर्थशास्त्र की एक प्रोफेसर के द्वारा इस प्रकार की बात करना वैश्विक स्तर पर देश का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


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