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नेता नहीं, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर हैं भारत में नए चुनाव प्रचारक

भारत में अगले महीने होने वाले आम चुनाव के लिए प्रचार में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स प्रचार का माध्यम बन गए हैं.

नेता नहीं, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर हैं भारत में नए चुनाव प्रचारक
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भारत में अगले महीने होने वाले आम चुनाव के लिए प्रचार में नेता तो दौड़-भाग कर ही रहे हैं, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स प्रचार का बड़ा माध्यम बन गए हैं.

चांदनी भगत तीन साल से सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. वह इंस्टाग्राम पर वीडियो पोस्ट करती हैं. अपने धार्मिक वीडियो में वह अब राजनीतिक सामग्री भी मिला रही हैं. वह देश में होने वाले आम चुनाव में नई प्रचारक हैं.

भगत उन हजारों सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स में से हैं जो अप्रैल में होने वाले आम चुनाव से पहले राजनीतिक दलों का प्रचार कर रहे हैं. विभिन्न पार्टियां इन इंफ्लुएंसर्स के जरिए लोकसभा चुनाव 2024 में सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय देश के युवा वोटरों को लुभाना चाहती हैं.

18 साल की चांदनी भगत के दो लाख इंस्टाग्राम फॉलोअर्स हैं. वह उन सौ से ज्यादा सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स में से एक हैं जिन्हें पिछले साल भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के इंदौर में एक सम्मेलन में बुलाया था.

आमतौर पर हिंदू देवता शिव के बारे में पोस्ट करने वालीं भगत तब से अपने इंस्टा अकाउंट पर बीजेपी के पक्ष में पोस्ट डाल रही हैं. ये पोस्ट बीजेपी की अलग-अलग योजनाओं के बारे में हैं जैसे एक में वह ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य योजाना की बात कर रही हैं. एक अन्य पोस्ट में उन्होंने एक पूर्व बीजेपी मंत्री के साथ सेल्फी पोस्ट की है.

भगत कहती हैं, "मैं ऐसी चीजों के बारे में बात करती हैं, जो मेरे दर्शकों के लिए फायदेमंद होंगी.”

बीजेपी सबसे आगे

भारत सबसे अधिक इंटरनेट यूजर्स का देश है. यहां 80 करोड़ यूजर्स हैं और इंस्टाग्राम और यूट्यूब के सबसे ज्यादा उपभोक्ता भी. इसलिए राजनीतिक दल समझ रहे हैं कि इन इंफ्लुएंसर्स की ताकत कितनी ज्यादा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद पिछले एक साल में कई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स से बात या मुलाकात की है. ये सभी ऐसे लोग हैं जिनके इंस्टा या यूट्यूब पर फॉलोअर्स की बड़ी संख्या है. कुछ तो ऐसे हैं जिनके फॉलोअर्स करोड़ों में हैं. बीजेपी नेता और मंत्री मुख्यधारा के मीडिया को दरकिनार कर इन लोगों को इंटरव्यू दे रहे हैं. इनमें ट्रैवल, फूड, धर्म और टेक हर तरह के क्षेत्र के इंफ्लुएंसर्स शामिल हैं.

बीजेपी की चुनाव टीम के देवांग दवे कहते हैं, "पिछले साल हमने हर क्षेत्र के सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स का एक सम्मेलन बुलाया था जिसमें उन्हें बीजेपी की नीतियों और नौ साल में सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताया गया. उसके बाद उनसे इनके बारे में अपने अनुभवों को लेकर सामग्री बनाने और शेयर करने के बारे में कहा गया. अगर कोई तीसरा बात करता है तो इससे पार्टी की आवाज की विश्वसनीयता बढ़ती है.”

अन्य दल भी पीछे नहीं

इंफ्लुएंसर्स का फायदा उठाने की कोशिश सिर्फ बीजेपी ही नहीं कर रही है. सोशल मीडिया पर कांग्रेस के प्रचार-प्रसार का काम देखने वाले वैभव वालिया कहते हैं कि उनकी पार्टी भी इन इंफ्लुएंसर्स से जुड़ी हुई है.

वालिया बताते हैं, "हम समान विचारधारा वाले लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं और उनमें से बहुत से हमारे लिए सामग्री पोस्ट कर रहे हैं. अगर यह सीधे तौर पर कांग्रेस के बारे में नहीं है तो भी वे अपनी राय रख रहे हैं जो हमारी विचारधारा और रुख के अनुरूप है.”

पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भी ऐसे ही प्रयोग किए थे. दक्षिण में तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति ने राज्य चुनाव में अपने प्रचार के लिए करीब 250 इंफ्लुएंर्स को साथ लिया था.

दुष्प्रचार के खतरे

बेशक, सभी राजनीतिक दल इस ऑनलाइन प्रचार का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कुछ विशेषज्ञ इस चलन के खतरों से भी आगाह करते हैं. सबसे बड़े लोकतंत्र के सामने फेक न्यूज और दुष्प्रचार एक बेहद बड़ा खतरा है और इंटरनेट उसका सबसे बड़ा माध्यम है. ऐसे में पारदर्शिता का सवाल बेहद अहम हो जाता है.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक प्रतीक वाघरे कहते हैं, "हमें नहीं पता कि (इन इंफ्लुएंसर्स को) पैसा दिया गया है या अन्य कोई लाभ मिला है. इसलिए मामला संदिग्ध हो जाता है.”

भारत में दो करोड़ से ज्यादा ऐसे मतदाता हैं जिनकी उम्र 18 से 29 साल के बीच है. ये तो वे लोग हैं जिन्हें इंटरनेट पर सबसे सक्रिय माना जाता है. इसके अलावा भी भारत की बड़ी आबादी है जो वॉट्सऐप और फेसबुक रील्स की बड़ी उपभोक्ता है. इंफ्लुएंसर्स के जरिए राजनीतिक दल सीधे इन लोगों तक पहुंच रहे हैं.

अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जॉयजीत पाल कहते हैं कि भले ही ये सोशल मीडिया पोस्ट सीधा प्रोपेगैंडा हों, लेकिन इससे राजनेता ज्यादा मानवीय नजर आते हैं.


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