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इतनी नफ़रत इतना ज़हर?

हमारे भारतीय समाज में धार्मिक सद्भावना की जड़ें इतनी गहरी हैं कि दुनिया भारत के इस सद्भवना पूर्ण इतिहास की मिसालें पेश करती है

इतनी नफ़रत इतना ज़हर?
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- तनवीर जाफ़री

ऐसे साम्प्रदायिकता वादियों और समाज में जहर घोलने वाले नफरत के सौदागरों को उनके इस छिछोरेपन का जवाब देने के लिये बातें तो बहुत की जा सकती हैं। परन्तु क्या यह बता सकते हैं कि 6 नवंबर 2005 को देश के सबसे बड़े मंदिरों में से एक दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन जिस समय अक्षरधाम मंदिर के प्रमुख द्वारा देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा कराया गया था उस समय यह नफ़रत के सौदागर कहां मुंह छुपाये बैठे थे ?

हमारे भारतीय समाज में धार्मिक सद्भावना की जड़ें इतनी गहरी हैं कि दुनिया भारत के इस सद्भवना पूर्ण इतिहास की मिसालें पेश करती है। भारत को 'अनेकता में एकता' रखने वाले देश के रूप में जाना जाता है। जिस देश में हिन्दू देवी देवताओं के प्रशंसक कवि रहीम,रसखान और जायसी जैसे अनेक कवि हों, जिस देश में अकबर के सेनापति मान सिंह और महाराणा प्रताप के सेनापति हाकिम ख़ान सूर रहे हों ,जिस देश में छत्रपति शिवाजी महाराज के कई सेनापति,नेवल कमाण्डर से लेकर उनके गुप्त दस्तावेज़ पढ़ने व उसका जवाब देने वाले मुस्लिम रहे हों,जिस देश की आज़ादी की लड़ाई में क़ुर्बान होने वाले लाखों हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई शहीदों के नाम से पोर्ट ब्लेयर जेल की दीवारें तथा नई दिल्ली के इण्डिया गेट की शिलायें पटी पड़ी हों, जिस देश की सेना में शहीद होकर ब्रिगेडियर उस्मान व वीर अब्दुल हमीद जैसे हज़ारों शहीदों ने अपनी राष्ट्रभक्ति व कर्तव्यपरायणता की मिसाल पेश की हो। जिस देश की मिसाइल व परमाणु सुरक्षा प्रणाली का जनक भारत रत्न मिसाइल मैन ए पी जे अब्दुल कलाम जैसा महान वैज्ञानिक हो, उसी देश में न$फरत और ज़हर से भरा हुआ संकीर्ण मानसिकता रखने वालों का एक छोटा सा वर्ग ऐसा भी है जो न केवल उपरोक्त तथ्यों को नज़र अंदाज़ करने की कोशिश करता रहता है बल्कि इसके विपरीत साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने तथा नफ़रत के प्रचार प्रसार के काम में भी व्यस्त रहता है।

आश्चर्य की बात तो यह है कि इन स्वयंभू राष्ट्रवादियों के पुरखों का न तो देश के स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान है न ही देश की आज़ादी के लिये लाठियां-गोलियां खाने वालों में इनका कोई ज़िक्र है। परन्तु दुर्भाग्यवश अंग्रेजों की जी हुज़ूरी करने वाले इसी मानसिकता के लोग नफ़रत और साम्प्रदायिक दुर्भावना के सहारे, ख़ासकर देश में हिन्दू-मुस्लिम के मध्य खाई गहरी कर सत्ता में ज़रूर आ गए हैं। और सत्ता में आते ही इनको यह एहसास हो गया है कि चूंकि हमारी सत्ता का आधार ही साम्प्रदायिकता है लिहाज़ा इसे निरंतर 'धार' देते रहना सत्ता में बने रहने के लिये जरूरी है। इसी मकसद के तहत कहीं जिलों, शहरों, कस्बों व स्टेशन्स के नाम बदले जा रहे हैं, मदरसों के खिलाफ कार्रवाइयां हो रही हैं, हलाल का मुद्दा उठाया जा रहा है,जिहाद,लव जिहाद,अज़ान और हिजाब जैसे विषय उछाले जाते हैं, इतिहास बदले जा रहे हैं। नये इतिहास गढ़े जा रहे हैं। हद तो यह है कि धार्मिक पहचान देखकर मॉब लिंचिंग की जाती है,ट्रेन में धर्म विशेष के यात्रियों को गोली मार दी जाती है,संतों जैसे दिखाई देने वाले व्यक्ति द्वारा मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करने की धमकी लाऊड स्पीकर पर दी जाती है।

पिछले दिनों ऐसी ही ग्रुण मानसिकता के मु_ी भर लोगों ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले के साम्या माता मंदिर में आयोजित शतचंडी यज्ञ के बाद अपनी नफरती हरकतों से विवाद खड़ा कर दिया। दरअसल उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के बलवा गांव के साम्या माता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस यज्ञ के मुख्य आयोजक पंडित कृष्ण दत्त शुक्ला थे जिन्होंने यज्ञ में स्थानीय समाजवादी पार्टी विधायक सैय्यदा खातून को यज्ञ आयोजन की मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था।

हालांकि यह आयोजन पूरी श्रद्धा के साथ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ और विधायक सैय्यदा ख़ातून ने भी इसमें पूरी श्रद्धा व सम्मान के साथ शिरकत की। परन्तु आयोजन समाप्ति के एक दिन बाद नियोजित तरीक़े से इसी आयोजन में नफ़रत का 'एंगल' साम्प्रदायिकतावादियों द्वारा ढूंढ कर इसे विवादित बना दिया गया। एक स्थानीय छुटभैय्ये भाजपा नेता द्वारा अपनी पार्टी व हिंदू संगठन के अपने चंद साथियों के साथ उसी साम्या माता मंदिर में पहुंचकर मंदिर को गंगाजल से धुलवाया गया। नफ़रत के इन सौदागरों का कहना था कि 'विधायक सैय्यदा खातून और उनके समाज को जब मंदिर से कुछ लेना-देना नहीं हैं तो फिर वह हमारे धार्मिक स्थल पर क्या करने आई थीं? हम लोग हर मंगलवार यहां पर पूजा करते हैं। वो लोग मांस खाने वाले हैं, पता नहीं क्या खाकर यहां आए और मंदिर को अपवित्र कर गए ?'

जबकि साम्या माता मंदिर में आयोजित शतचंडी यज्ञ के मुख्य आयोजक और मंदिर प्रमुख पंडित कृष्ण दत्त शुक्ला का इस विषय पर कहना है कि 'वह मंदिर मेरा है, और आज से नहीं सदियों से हिंदू और मुसलमान इस मंदिर में आते जाते थे। अलग-अलग धर्म के लोग आज भी मंदिर में जाते हैं। ये विवाद किस बात को लेकर फैला रहे हैं हम?' वे सवाल उठाते हैं, 'अगर एक मुसलमान के मंदिर जाने पर मंदिर अपवित्र हो जाता है तो हिंदू भी तो मुसलमानों के तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। तो उन्हें भी उनके स्थलों पर नहीं जाना चाहिए? ' पंडित कृष्ण दत्त शुक्ला कहते हैं, 'हमारे लिए कोई अपवित्र नहीं है. ग्रन्थों में भी यही लिखा है कि मंदिर में जात-पात का कोई भेदभाव नहीं होता है। मंदिर तो धार्मिक स्थल है, वहां कोई भी जाकर के अपना शीश झुका सकता है।' सपा विधायक के निमंत्रण पर 'कृष्णदत्त शुक्ला ने बताया कि जब मंदिर में हमने शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया तो हमारे डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में जितने भी प्रत्याशी थे हमने सभी को न्यौता दिया था। सबको न्यौता देने के बाद जो हमारे पास आया उसका हमने स्वागत किया।

पंडित शुक्ला ने स्पष्ट कहा कि -मंदिर हमारा है, हमारा था और हमारा ही रहेगा। वहां आने वालों में हिंदू और मुसलमान का कोई भेदभाव नहीं है। पहले भी जैसे लोग मंदिर आते-जाते थे, आगे भी वैसे ही आएंगे। उधर विधायक प्रतिनिधि सूर्य प्रकाश उपाध्याय का इस पूरे मामले पर कहना था कि साम्या माता के शतचंडी यज्ञ में विधायक को न्यौता दिया गया था। विधायक वहां गईं, वहां के पुजारियों ने विधायक का स्वागत सत्कार किया। फिर वहां कुछ दान करके वह वापस चली आईं। जबकि विधायक सैय्यदा ख़ातून इस विषय पर कहती हैं कि विवाद खड़ा करने वालों की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। सोशल मीडिया में और क्षेत्र की जनता के बीच शोहरत पाने के लिए वह ऐसा करते हैं। इन जैसे लोगों की बातों और काम पर मैं ध्यान नहीं देती। ऐसे लोगों को ज़्यादा तवज्जो देने की ज़रूरत नहीं है। विधायक ने कहा कि अगर मेरे क्षेत्र की जनता मुझे बुलाएगी तो मैं ज़रूर जाऊंगी। मेरे लिए मंदिर और मस्जिद, सब खुदा के घर हैं।

ऐसे साम्प्रदायिकता वादियों और समाज में जहर घोलने वाले नफरत के सौदागरों को उनके इस छिछोरेपन का जवाब देने के लिये बातें तो बहुत की जा सकती हैं। परन्तु क्या यह बता सकते हैं कि 6 नवंबर 2005 को देश के सबसे बड़े मंदिरों में से एक दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन जिस समय अक्षरधाम मंदिर के प्रमुख द्वारा देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा कराया गया था उस समय यह नफ़रत के सौदागर कहां मुंह छुपाये बैठे थे ? क्या उनकी अब भी दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर को शुद्ध करने की कोई योजना है ? दूसरी बात यह कि मंदिरों या हवन में प्रवेश करने व शामिल होने के लिये क्या शाकाहारी होना जरूरी है ? यदि जरूरी है,तो फितना फैलाने वाली इसी पार्टी व विचारधारा के तमाम नेता न केवल माँसाहारी हैं बल्कि गोभक्षक भी हैं। देश में सभी धर्मों व जातियों में तमाम मांसाहारी लोग पाये जाते हैं।

स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई माँसाहारी थे। देश के गृह मंत्री किरण रिजिजू तो गोभक्षक हैं। इन सबसे किसी को कोई तकलीफ नहीं ? भाजपाई मुस्लिम नेता किसी भी मंदिर में जाएँ तो कोई आपत्ति नहीं परन्तु सपा मुस्लिम नेता यज्ञ में गयीं तो आपत्तिजनक? इस अवसरवादी दोहरे चरित्र को देखकर अक्सर यह ख़याल आता है कि इतनी नफ़रत, इतना ज़हर यह लोग आख़िर लाते कहाँ से हैं ?


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