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स्मृति शेष : पत्रकारिता के पितामह, हर किरदार में कुलदीप नैयर रहे दमदार

आज किसी दल के विरोध का मतलब उसके नेता से लेकर कार्यकर्ता तक आपके विरोधी हो जाएंगे। एक शख्सियत ऐसी रही, जिसके विरोध ने भी राजनीतिक दलों के दिल में उनके लिए नफरत को जगह नहीं दी

स्मृति शेष : पत्रकारिता के पितामह, हर किरदार में कुलदीप नैयर रहे दमदार
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नई दिल्ली। आज किसी दल के विरोध का मतलब उसके नेता से लेकर कार्यकर्ता तक आपके विरोधी हो जाएंगे। एक शख्सियत ऐसी रही, जिसके विरोध ने भी राजनीतिक दलों के दिल में उनके लिए नफरत को जगह नहीं दी।

उनका नाम था, कुलदीप नैयर। भारतीय पत्रकारिता में कुलदीप नैयर बड़ा नाम रहे। उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के आपातकाल का विरोध किया, प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों के लिए आवाज तक उठाई। कुलदीप नैयर सिर्फ पत्रकारिता तक नहीं रहे, कई किताबें भी लिखी, जिनमें उनके दौर की सच्चाईयों से लेकर लोगों की परेशानियों का भी जिक्र था।

14 अगस्त 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में पैदा हुए कुलदीप नैयर की स्कूली शिक्षा सियालकोट में हुई। उन्होंने लाहौर से कानून की डिग्री ली और अमेरिका चले गए।

अमेरिका में पत्रकारिता की डिग्री ली और अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीति को समझा। पाकिस्तान में पैदा हुए कुलदीप नैयर की भारत कर्मभूमि रही।

उन्होंने विभाजन, स्वतंत्रता, महात्मा गांधी की हत्या, भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान युद्ध से लेकर आपातकाल तक को देखा। एक उर्दू प्रेस रिपोर्टर के तौर पर करियर शुरू करने वाले कुलदीप नैयर संपादक भी रहे। आपातकाल का विरोध करने पर जेल तक गए।

1990 में ब्रिटेन के उच्चायुक्त बनने वाले कुलदीप नैयर 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी थे। कुलदीप नैयर 1997 में राज्यसभा भी पहुंचे। उन्होंने कई भूमिकाओं का निर्वहन किया। उन्हें सबसे ज्यादा पत्रकारिता रास आई। उन्होंने खुद को हमेशा पत्रकार कहलाना ही पसंद किया।

एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "मुझे सबसे ज्यादा संतोष तब मिलता था, जब मैं रिपोर्टिंग करता था, मैं जो लिखता था, उसका असर होता था। इसे खुद इंदिरा गांधी ने स्वीकार किया था कि यह जो लिखता है, उसका असर मेरे और सरकार के कामकाज पर पड़ता है।"

कुलदीप नैयर ने लंबे समय तक पत्रकारिता की और स्वतंत्र लेखन से भी जुड़े। यह सिलसिला आखिरी समय तक चला। कुलदीप नैयर ने निजी तौर पर किसी नेता का विरोध नहीं किया। पत्रकार के नाते सरकारों और नेताओं पर सवाल उठाए। लेकिन, किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं रखी। आपातकाल में जेल जाने के बावजूद कांग्रेस से उनके अच्छे रिश्ते थे।

कुलदीप नैयर ने अपने जीवनकाल में कई किताबें लिखी। इनमें 'बियॉन्ड द लाइंस', 'विदआउट फियर : लाइफ एंड ट्रायल ऑफ भगत सिंह', 'इंडिया हाउस', 'द जजमेंट: इनसाइड स्टोरी ऑफ द इमरजेंसी इन इंडिया', 'इंडिया आफ्टर नेहरू' काफी लोकप्रिय हुईं। 'बियॉन्ड द लाइंस' कुलदीप नैयर की आत्मकथा है। इसमें उन्होंने पाकिस्तान में जन्म से लेकर भारत में पत्रकारिता करने और सियासी उथल-पुथल का जिक्र किया है।

कुलदीप नैयर ने 'बियॉन्ड द लाइंस' में पत्रकारिता से लेकर सांसद बनने और आपातकाल की कई घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने यह भी लिखा था कि लाल बहादुर शास्त्री उनकी खबर के कारण प्रधानमंत्री बने। कुलदीप नैयर ने 'विदआउट फियर : लाइफ एंड ट्रायल ऑफ भगत सिंह' किताब लिखी। इसमें शहीद भगत सिंह के जीवन और उनके जीवन दर्शन को समझाया गया है। यूके में हाई कमिश्नर रहने के बाद 'इंडिया हाउस' किताब लिखी थी।

'द जजमेंट : इनसाइड स्टोरी ऑफ द इमरजेंसी इन इंडिया' में कुलदीप नैयर ने आपाताकाल का जिक्र किया। 'इंडिया ऑफ्टर नेहरू' में भारतीय राजनीति में आए उतार-चढ़ाव को लिखा। कुलदीप नैयर ने अपने करियर के दौरान कई अखबारों के लिए कॉलम लिखे।

उन्होंने अपने करियर के दौरान 'डेक्कन हेराल्ड', 'द डेली स्टार', 'द संडे गार्जियन', 'द न्यूज़', 'द स्टेट्समैन', 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून', 'डॉन' समेत कई अखबारों के लिए कॉलम भी लिखे।

उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 23 नवंबर 2015 को उन्हें पत्रकारिता में आजीवन उपलब्धि के लिए 'रामनाथ गोयनका स्मृति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उन्होंने 'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' की स्थापना की थी। पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर का 23 अगस्त 2018 को नई दिल्ली में निधन हो गया था।


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