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नस्लभेद की वजह से जर्मनी से छिटक रहे कुशल विदेशी कामगार

जर्मनी एक तरफ आर्थिक संकटों से जूझ रहा है और कुशल कामगारों की कमी है

नस्लभेद की वजह से जर्मनी से छिटक रहे कुशल विदेशी कामगार
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जर्मनी एक तरफ आर्थिक संकटों से जूझ रहा है और कुशल कामगारों की कमी है, तो दूसरी तरफ यहां विदेशियों के प्रति भेदभाव की भावना मजबूत हो रही है. ऐसे में विदेश से आने वाले कामगारों का जीवन कैसे प्रभावित हो रहा है?

यॉर्ग एंगलमान जर्मनी के केमनित्स में एक केमिकल इंजीनियरिंग कंपनी में मैनेजर हैं. वह बताते हैं कि विदेशों से आने वाले हुनरमंद कामगारों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने अपनी कंपनी में हरमुमकिन कोशिश की. लेकिन जर्मनी आने पर इन कामगारों को शहर में नस्ली टिप्पणियों और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है. इस वजह से कुछ कामगार वापस चले गए.

एंगलमान की कंपनी जर्मनी में मध्यम आकार की उन पांच कंपनियों में से एक है, जिन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि हाल ही में उनके कुछ विदेशी कर्मचारी आप्रवासियों के प्रति दुर्व्यवहार के कारण वापस लौट गए या दूसरे शहर जाकर रहने लगे. ऐसा तब है, जब यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश जर्मनी कुशल कामगारों की कमी से जूझ रहा है.

जर्मनी और नीदरलैंड्स की कई बड़ी कंपनियों ने आप्रवासी-विरोधी भावनाओं की वजह से भर्ती में आने वाली मुश्किलों पर चिंता जताई है. कुछ मालिकों ने तो यहां तक कहा कि इसकी वजह से उन्हें कर्मचारी खोने पड़ रहे हैं.

एंगलमान अपने परिवार के स्वामित्व वाली 'सीएसी इंजीनियरिंग जीएमबीएच' कंपनी चलाते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले 12 महीनों में उनके 40 विदेशी कर्मचारियों में से करीब पांच ने भेदभाव की वजह से काम छोड़ दिया. कंपनी ने रॉयटर्स को अपने पूर्व कर्मचारियों की जानकारी देने से इनकार कर दिया.

57 साल के एंगलमान कहते हैं, "हम जो कर सकते हैं, करते हैं. लेकिन हम बॉडीगार्ड नहीं बन सकते. समाज के कुछ लोग यह नहीं समझते कि ये कुशल विदेशी कामगार जर्मनी की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते हैं."

सीएसी ने भले जानकारी न दी हो, लेकिन जर्मनी के गृह मंत्रालय द्वारा दर्ज किए गए विदेशियों के प्रति नस्लभेदी अपराधों के मामले 2013 से 2022 के बीच तीन गुना बढ़कर 10,000 से भी ज्यादा हो गए हैं. एंगलमान कहते हैं कि महंगी ऊर्जा इससे भी बड़ी चुनौती है.

जर्मनी और कर्मचारियों का संकट

जर्मनी के आधिकारिक अनुमान के मुताबिक 2035 तक देश में 4.6 करोड़ कर्मचारी होंगे, जो कुशल कामगारों की जरूरत से 70 लाख कम होंगे. पूर्वी जर्मनी में माहौल ज्यादा द्वेषपूर्ण है, जहां साम्यवाद के पतन के बाद कई कारखाने बंद हुए और छंटनी हुई. इसकी वजह से बहुत सारे युवा पलायन कर गए और जन्मदर में कमी आई है.

चेक सीमा के पास सैक्सनी राज्य में स्थित केमनित्स कुशल कामगारों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है. एंगलमान की कंपनी कहती है कि विदेशी कर्मचारियों को यहां बसने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए वह उन्हें अस्थायी घर के साथ-साथ भाषा और ड्राइविंग सीखने में मदद करती है.

2018 के बाद से केमनित्स आप्रवासी विरोधी भावनाओं का केंद्र बन गया. शहर में आप्रवासी विरोधी प्रदर्शनों ने दंगों की शक्ल ले ली थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान केमनित्स पूरी तरह नष्ट हो गया था. फिर साम्यवाद के दौर में इसे 'कार्ल मार्क्स शहर' के रूप में दोबारा खड़ा किया गया. 20वीं सदी के अंत तक यह जर्मनी के सबसे अमीर शहरों में से एक बन गया था.

1990 में जर्मनी के एकीकरण के बाद केमनित्स की आबादी करीब 20 फीसदी घटकर ढाई लाख के आसपास रह गई थी. केमनित्स स्थित फॉग इंस्टिट्यूट फॉर मार्केट ऐंड सोशल रीसर्च के डेटा के मुताबिक, शहर में विदेशियों की तादाद 14 फीसदी हो गई है, जो साल 2000 में सिर्फ दो फीसदी थी.

आप्रवासियों के अनुभव

बीते सप्ताह करीब ढाई सौ लोगों ने शहर में हर सोमवार को निकलने वाली रैली में हिस्सा लिया. इस प्रदर्शन को जर्मनी की धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों में से एक बढ़ावा देती है, जिसकी सिटी काउंसिल में एक-चौथाई हिस्सेदारी है. हाल ही में एक आयोजन में लोगों ने राष्ट्रवादी गाने गाए, ढोल बजाए और सैक्सनी, जर्मनी और रूस के झंडे लहराए.

केमनित्स में रहने वाले 31 साल के फरीद मोकबिल मिस्र से हैं. वह विदेशियों को जर्मन पढ़ाने जर्मनी आए थे. मोकबिल कहते हैं कि वह शहर में खुश हैं. वह अक्सर नस्लभेद का सामना करते हैं, लेकिन इसे निजी तौर पर नहीं लेते.

मोकबिल अपना एक वाकया बताते हैं, "यहां आने के पहले हफ्ते जब मैं सुपरमार्केट में खरीदारी करने गया, तो एक बुजुर्ग महिला ने मेरी तरफ देखा. मुझे नहीं पता इसकी वजह मेरी पोशाक थी या कुछ और, लेकिन वह अचानक चीखने लगीं. ऐसी अजीब घटनाएं होती रहती हैं. कुछ दिनों पहले ट्राम में एक लड़का जोर से बोला कि यहां सिर्फ अफगान हैं, जो चोरी करना चाहते हैं."

अपनी पूरी जिंदगी केमनित्स में बिताने वाली 84 साल की क्रिस्टीन विलॉवर कहती हैं कि उन्हें लगता है कि जर्मनी में शरण चाहने वालों को ऐसे वित्तीय लाभ मिलते हैं, जो बुजुर्गों को नहीं मिलते. वह कहती हैं, "जब मैं शहर में होती हूं, तो कभी-कभी मुझे लगता है कि अब मेरी मातृभाषा बोलने वाले ज्यादा लोग नहीं हैं. मुझे पुराने तौर-तरीकों की याद भी आती है."

शहर के प्रवक्ता माथियास नोवाक ने कहा कि केमनित्स के ज्यादातर लोग चरमपंथ के खिलाफ हैं. उन्होंने यह भी कहा कि आप्रवासियों के बिना केमनित्स बिखर जाएगा, जैसे अस्पतालों में ही 40 फीसदी कर्मचारी आप्रवासी हैं.

'पुनर्वास'

आप्रवासी विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने वाली राजनीतिक पार्टियों में ऑल्टरनेट फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) भी शामिल है. अनुमान है कि एएफडी इस साल सितंबर में सैक्सनी समेत तीन राज्यों में चुनाव जीत सकती है.

एएफडी ने कहा है कि वह 2015 में बड़े पैमाने पर हुआ प्रवासन पलटना चहती है, यूरोपीय संघ के बाहर शरणार्थी केंद्र बनाना चाहती है, जर्मन सीमाओं पर कठोर नियम लागू करना चाहती है, समाज में पूरी तरह समाहित न होने वाले आप्रवासियों पर प्रतिबंध लगाना चाहती है और आर्थिक आप्रवासियों के वापस घर लौटने के लिए प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था बनाना चाहती है.

जर्मनी की घरेलू जांच एजेंसियों ने चरमपंथ के शक में एएफडी पर निगाह रखने की बात कही है. उनका कहना है कि एएफडी के पदाधिकारी 'ग्रेट रिप्लेसमेंट' जैसे नस्लभेदी सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, जिसमें कहा जाता है कि अभिजात्य राजनीतिक वर्ग जानबूझकर यूरोप की श्वेत आबादी को गैर-श्वेत आप्रवासियों से बदलने की कोशिश कर रहा है.

एएफडी के केमनित्स चैप्टर ने इस महीने अपने फेसबुक पेज पर एक लेख शेयर किया. एक आप्रवासी द्वारा कथित बलात्कार से जुड़े इस लेख का शीर्षक था, "जनसंख्या विस्थापन ने लड़कियों और महिलाओं को बनाया आसान शिकार." एएफडी केमनित्स के उपाध्यक्ष उलरिष ऊमे ने एक पोस्ट पर कमेंट किया, "सार्वजनिक जगहों पर हमारी महिलाओं और लड़कियों के लिए जीवन बहुत मुश्किल हो गया है और सामूहिक बलात्कार और चाकू से हमलों की चिंता बढ़ रही है."

ऊमे ने रॉयटर्स से कहा कि उनका पोस्ट नस्लभेदी नहीं था, बल्कि वह 'स्थानीय लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर महसूस किए जा रहे मुद्दों' को संबोधित कर रहे थे. एएफडी ने ऊमे की टिप्पणी से सहमति जताते हुए कहा, "आप्रवासन संबंधी अपराधों से निपटना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि यह अक्सर परिवार या कुल की संरचना से जुड़ा होता है. सांस्कृतिक और भाषायी अंतर की वजह से भी मुश्किल होती है."

इस पोस्ट को लेकर फेसबुक की मालिक कंपनी मेटा से टिप्पणी मांगी गई, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. एएफडी का कहना है कि उनकी नीतियों से अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं होगा.

चढ़ गई है सियासी देग?

एएफडी ने रॉयटर्स को दिए बयान में जर्मनी के न्यूक्लियर पावर प्लांट बंद करने की वजह से और गहराए ऊर्जा संकट और नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी पहल का जिक्र किया. पार्टी ने कहा, "सरकार और सरकारी कंपनियां निश्चित और साफतौर पर घरेलू समस्याओं से ध्यान भटका रही हैं और एएफडी को बलि का बकरा बना रही हैं."

लेकिन जर्मनी के कॉरपोरेट अधिकारियों ने मीडिया के जरिए आप्रवासी विरोधी भावनाओं से पैदा होने वाले खतरों के बारे में आगाह किया है. इससे पहले जनवरी में खोजी पोर्टल 'करेक्टिव' ने पोट्सडाम में चंदा इकट्ठा करने वाली बैठक को उजागर किया था. इस बैठक में विदेशी मूल के लोगों को वापस उनके देश भेजने के 'मास्टरप्लान' पर चर्चा हुई थी, जिसे 'रीमिग्रेशन' नाम दिया गया है.

डुसलडॉर्फर फोरम नाम के समूह द्वारा आयोजित इस बैठक में एएफडी के चार वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी हिस्सा लिया था. इस बैठक के निमंत्रण पत्र पर लिखा गया था कि यह 'ऐसे लोगों का खास नेटवर्क है, जो देश का विनाश रोकने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने को तैयार हैं.' आयोजन के बाद बनाई गई एक माइक्रोसाइट पर आयोजक गेर्नोट मोरिष ने कहा कि रीमिग्रेशन केवल एक विषय था, जिस पर चर्चा हुई. उनसे टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं किया जा सका.

'आइडेंटिटेरियन मूवमेंट' के ऑस्ट्रियाई नेता मार्टिन जेलनर ने रॉयटर्स को बताया कि उन्होंने उस बैठक को संबोधित किया था. 'आइडेंटिटेरियन मूवमेंट' कहता है कि यह यूरोपीय पहचान को संरक्षित रखना चाहता है और यूरोप के बाहर से आप्रवासन का विरोध करता है.

उन्होंने कहा, "इस्लामवादी, अपराधी और धोखेबाज जैसे नागरिक, जो समाज में घुल-मिल नहीं पाए हैं, उन्हें मानकों और समावेशन की नीति के जरिए अनुकूलन के लिए प्रेरित करना चाहिए." जेलनर के मुताबिक, इन नीतियों में स्वैच्छिक वापसी के लिए प्रोत्साहन राशि का प्रावधान भी शामिल किया जा सकता है.

'संस्कृति की राजधानी'

वैसे द्वेष का यह माहौल सिर्फ केमनित्स तक सीमित नहीं है और इसके निशाने पर सिर्फ यूरोप के बाहर से आने वाले लोग ही नहीं हैं. पूर्वी जर्मनी के ही ड्रेसडन शहर में स्थित सोलर फर्म सोलरवाट के सीईओ डेटलेफ नॉयहाउस ने बताया, "हमारे दो विदेशी कर्मचारियों ने जर्मनी छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने कहा कि अब वे यहां सहज और सुरक्षित महसूस नहीं करते."

उन्होंने बताया कि उनमें से एक इंग्लैंड वापस लौट गया. "यह देश में बदलती जनभावना का सीधा नतीजा है." इस कंपनी ने भी रॉयटर्स को अपने पूर्व कर्मचारियों से मिलवाने से इनकार कर दिया.

केमनित्स स्थित कम्युनिटी4यू नामक कंपनी लुफ्तहांसा, बीएमडब्ल्यू और कॉमर्सबैंक जैसी दिग्गज कॉरपोरेट कंपनियों को फ्लीट और लीजिंग सॉफ्टवेयर मुहैया कराती है. इसने बताया कि इसके कुछ कर्मचारियों को छोड़कर जाना पड़ा, क्योंकि अब उन्हें स्वीकृत महसूस नहीं होता.

इसी कंपनी के सीओओ लवीनियो चिरक्वीती इटली के रहने वाले हैं. 2021 में वह लाइपजिष रहने चले गए, क्योंकि वहां का माहौल उन्हें ज्यादा कॉस्मोपॉलिटन महसूस होता है. वह बताते हैं, "केमनित्स में मुझे कभी-कभी ऐसा महसूस होता था कि मुझे सतर्क रहना है, इस भावना का संबंध इस तथ्य से भी था कि मैं विदेशी हूं."

ऑटोनॉमस ड्राइविंग सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी एफडीटेक भी केमनित्स में स्थित है. इसके मैनेजिंग डायरेक्टर कार्सटन शुल्त्स ने बताया कि उन्हें भी नस्लभेद की वजह से अपने कर्मचारी खोने पड़े. उन्होंने कहा, "हां, हमारे यहां नस्लभेद की समस्या है. लेकिन यह सिर्फ सैक्सनी या केमनित्स तक सीमित नहीं है. यह पूरे जर्मनी की समस्या है, बल्कि पूरे यूरोप की समस्या है."

जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर

2023 में जर्मनी की अर्थव्यवस्था 0.3% सिकुड़ गई. यह दुनिया के बड़े देशों में वैश्विक स्तर पर सबसे कमजोर प्रदर्शन था. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने 2022 और 2023 में एक सर्वे कराया था. इसमें यह बात सामने आई कि जर्मनी विदेशी कामगारों के लिए आकर्षक देश बना हुआ है, लेकिन भेदभाव एक समस्या है.

ओईसीडी अगस्त 2022 से ऐसे 30,000 अत्यधिक कुशल कामगारों के करियर ट्रैक कर रहा है, जो बतौर प्रवासी कर्मचारी जर्मनी आना चाहते थे. सर्वे में पाया गया कि जो लोग पहले ही जर्मनी चले गए थे, उन्हें अब भी विदेश में रहने वालों की अपेक्षाओं की तुलना में ज्यादा भेदभाव महसूस हुआ.

एसेन में रहने वाले 30 साल के डेनिस अटेस 'हू मूव्स' नाम की रिक्रूटमेंट एजेंसी चलाते हैं, जो विदेशी आईटी कर्मचारियों पर ध्यान देती है. अटेस बताते हैं कि पिछले साल के अंत में उन्होंने भारत में आयोजित एक कार्यक्रम में गौर किया कि लोग जर्मनी के राजनीतिक माहौल को लेकर चिंतित थे. कुछ लोग यहां तक कह रहे थे कि अब वे जर्मनी को विकल्प के रूप में नहीं देखते हैं. अटेज बताते हैं, "नौकरी के लिए आवेदन कहां करना है, यह तय करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक है कि क्या मैं सुरक्षित महसूस करता हूं? क्या मैं स्वीकृत महसूस करता हूं?"

नई दिल्ली में वकील रोमी कुमार बताते हैं कि काम के सिलसिले में उन्हें साल के कई महीने यूरोप में रहना पड़ता है, लेकिन नस्लभेद के कारण उन्होंने यूरोप में बसने का फैसला अभी के लिए टाल दिया है. उन्होंने कहा, "यह जोखिम लेकर विमान पर चढ़ने और वहां जाकर कुछ करने की क्षमताओं को सीमित करता है. इसलिए मैं इसमें देरी कर रहा हूं और आकलन कर रहा हूं कि आगे क्या होने वाला है."

केमनित्स के प्रवक्ता नोवाक ने कहा कि 2018 से उन्होंने नस्लवाद विरोधी और लोकतंत्र समर्थक योजनाओं के लिए फंड बढ़ाया है. साथ ही, नस्लवाद से निपटने के लिए वह 'साइलेंट मिडल' को सक्रिय करने के लिए 2026 में संस्कृति की यूरोपीय राजधानी के रूप में अपनी आगामी भूमिका के लिए योजनाओं का उपयोग करना चाहते हैं.

धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों ने इसका विरोध करने की बात कही है. 'प्रो केमनित्स' नाम की एक पार्टी ने तो शहर को 'रीमिग्रेशन की राजधानी' बनाने का सुझाव दिया है. टेलिग्राम पर एक पोस्ट में पार्टी ने कहा, "2015 से जर्मनी में जिस तरह की संस्कृति की बाढ़ आई है, उतना बहुत हुआ. इसका पता लगाने के लिए आपको बस सिटी सेंटर का एक चक्कर लगाना है." रॉयटर्स ने पार्टी से टिप्पणी मांगी, जिसका पार्टी ने कोई जवाब नहीं दिया.


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